स्याम घटा लपटी थिर बीज | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | घनानंद |
स्याम घटा लपटी थिर बीज कि सौहै अमावस-अंक उज्यारी। धूप के पुंज मैं ज्वाल की माल सी पै दृग-सीतलता-सुख-कारी। कै छवि छायो सिंगार निहारि सुजान-तिया-तन-दीपति प्यारी। कैसी फ़बी घनआनँद चोपनि सों पहिरी चुनि...
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