हित भूलि न आवसि है सुधि क्यौं | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

  हित भूलि न आवसि है सुधि क्यौं सु यों हूँ हमैं सुधि कीजत है। चित भूल तौ भूलत नाहिं सुजान जु चंचल ज्यौं कछु धीजत है। दृढ़ आस की पासनि कस तें फेरि...