कह हुए भानुकुलभूष्ण वहाँ मौन क्षण भर | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |

  कह हुए भानुकुलभूष्ण वहाँ मौन क्षण भर, बोले विश्वस्त कण्ठ से जाम्बवान, “रघुवर, विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण, हे पुरुषसिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण, आराधन का दृढ़ आराधन से...