है अमानिशा, उगलता गगन घन अन्धकार | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | राम की शक्ति पूजा |
है अमानिशा, उगलता गगन घन अन्धकार, खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन-चार, अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल, भूधर ज्यों ध्यानमग्न, केवल जलती मशाल। है अमानिशा प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि...
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