ये अश्रु राम के | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |

  ये अश्रु राम के  आते ही मन में विचार, उद्वेल हो उठा शक्ति खेल सागर अपार, हो श्वसित पवन उनचास पिता पक्ष से तुमुल, एकत्र वक्ष पर बहा वाष्प को उड़ा अतुल, शत...