अंग-अंग सयाम-रंग-रस की तरंग उठै | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
अंग-अंग सयाम-रंग-रस की तरंग उठै, उमगनि भरि अति गहराई हिय प्रेम-उफनानि की| पूर- र – पानिय सुखर ढरि, मीठी धुनि करै ताप हरै अंखियानि की || महाछवि-नीर – तीर गए तैं नटर्यो जाय, मोहनता...
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