अति सूधो सनेह को मारग है | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | घनानंद |
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं। तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झझकें कपटी जे निसांक नहीं। घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तें दूसरो आँक नहीं। तुम कौन...
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं। तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झझकें कपटी जे निसांक नहीं। घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तें दूसरो आँक नहीं। तुम कौन...
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