रावण महिमा श्यामा विभावरी | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |
रावण महिमा श्यामा विभावरी, अन्धकार, यह रूद्र राम पूजन प्रताप तेजः प्रसार, इस ओर शक्ति शिव की दशस्कन्धपूजित, उस ओर रूद्रवन्दन जो रघुनन्दन कूजित, करने को ग्रस्त समस्त व्योम कपि बढ़ा अटल, लख...
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