रीझि बिकाई निकाइ पै रीझि थकी | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
रीझि बिकाई निकाइ पै रीझि थकी गति हेरत हेरन की गति । जोबन घूमरे नैन लखें मति बौरा गई गति वारि के भोमति । बानी बिलानी सुबोलनि मैं अनचाहिनि – चाह जिबावति है...
रीझि बिकाई निकाइ पै रीझि थकी गति हेरत हेरन की गति । जोबन घूमरे नैन लखें मति बौरा गई गति वारि के भोमति । बानी बिलानी सुबोलनि मैं अनचाहिनि – चाह जिबावति है...
Recent Comments