अशोक मेहता प्रवन्ध समिति प्रतिवेदन (1978)
अशोक मेहता प्रवन्ध समिति प्रतिवेदन (1978) इस समिति ने ‘प्रजातांत्रिक प्रबन्ध की विचाराधारा’ का प्रतिपादन किया। इसके प्रतिवेदन में यह स्वीकार किया गया कि बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों के फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ विकास अवश्य हुआ है, लेकिन अभी भी विकास के और उच्च सोपान पर प्रगति के उद्देश्य से बहुत कुछ किया जाना शेष है।
अशोक मेहता प्रवन्ध समिति
बलवंत राय मेहता समिति का विकेन्द्रीकरण की पद्धति से आगे बढ़ते हुए ‘प्रजातांत्रिक प्रबंध व्यवस्था (Democratic Management System) को अंगीकार करना है। बलवंत राय मेहता समिति द्वारा सुझाई त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के स्थान पर अशोक मेहता समिति ने द्वि-स्तरीय व्यवस्था की पुरजोर सिफारिश की।
अशोक मेहता समिति ने अपने प्रतिवेदन में यह स्वीकार किया कि पंचायती राज की कहानी उतार-चढ़ावों की कहानी है जो तीन चरणों से होकर गुजरी है। सन् 1958 से 1964 तक विकास का चरण, 1965 से 1969 तक ठहराव का चरण और 1969 से 1977 तक पतन का चरण।
अशोक मेहता प्रवन्ध समिति का मानना था कि आमतौर पर पंचायती राज संस्थाओं का काम निराशाजनक रहा है स्टैर उसके पीछे कमियाँ और विफलताएं रही हैं। इन संस्थाओं में समाज के आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से दबदबे वाले लोग हावी रहे हैं जिसके कारण कमजोर वर्गों तक लाभ नहीं पहुंच पाया है।
राजनीतिक गुटबंदी के कारण भी उनके कामकाज में विकृति आई है और विकास कार्य अवरूद्ध या कमजोर हुआ है। भ्रष्टाचार अकुशलता, नियमों की अवहेलना, दैनिक कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप गुटबंदी, स्वार्थ- प्रेरित कार्यवाही सेवा भावना की जगह अधिकारों पर कब्जा इन तमाम कारणों से औसत ग्रामीण के लिए पंचायती राज की उपयोगिता सीमित हो कर रह गई हैं।
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, अशोक मेहता प्रवन्ध समिति ने पंचायती राज की त्रि-स्तरीय के स्थान पर द्वि-स्तरीय मॉडल अपनाने की वकालत की। समिति की मान्यता थी कि पंचायत समितियां समुचित रूप से प्रभावशाली नहीं हैं, इस कारण इनके स्थान पर मण्डल पंचायतों का गठन करना श्रेयस्कर रहेगा। मण्डल पंचायतें एक प्रकार से पंचायत समिति और जिला परिषद के बीच की संस्था है। इस प्रकार अशोक मेहता समिति की यह मान्यता थी कि मण्डल पंचायतें और जिला परिषदों का गठन करके विकास कार्यो को दुतगति प्रदान की जा सकती हैं।
इस समिति ने ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के प्रबंधन पर जोर देते हुए कहा कि केन्द्र और राज्यों के मध्य शक्तियों के वितरण की वर्तमान योजना पर पृथक से विस्तृत विचार किया जाना उचित होगा। महाराष्ट्र के पंचायती राज की सफलता से प्रभावित होकर अशोक मेहता समिति ने ‘महाराष्ट्र मॉडल की तरफ झुकाव दर्शाया है। दूसरी ओर इसे पंचायत समिति के स्थान पर मण्डल पंचायत अधिक उपयुक्त जान पड़ी। पंजाब के डवलपमेंट क्लस्टर्स’ (Development Clusters ) की उपलब्धियों से प्रभावित होकर इसे स्वीकार करने की बात कही है।
इस समिति ने यह माना कि भारतीय किसान पहले की तुलना में समृद्ध हुए हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में काफी मात्रा में विकास हुआ है। विकास की द्रुतगति प्राप्त करने के लिए इस समिति ने कहा कि हमें एक ऐसे मण्डल केन्द्र की स्थापना करना है जहां किसानों को खाद, बीज, ट्रैक्टर के कलपुर्जे तथा किसानों के मतलब के अन्य साधन एक ही जगह मिलने लगे।
इससे किसानों को बहुत सहायता होगी। किसानों को एक-एक चीज के लिए इधर-उधर भटकना नही पड़ेगा। इस समिति ने जहां पंचायत समिति की भूमिका को नकारा है वही ग्रामीण स्तर पर प्रबंधव्यवस्था’ विकसित करने पर जोर दिया है।
एक और महत्वपूर्ण सिफारिश अशोक मेहता प्रवन्ध समिति की थी कि पंचायती राज संस्थाओं में राजनैतिक दलों को सक्रिय भागीदारिता का निर्वाह करना चाहिए। यह पहला सरकारी दस्तावेज था जिसने दलविहीन व्यवस्था के स्थान पर स्पष्ट तौर पर दलीय भागीदारी पर जोर दिया। सिद्धराज ढढा ने, जो कि इस समिति के सदस्य थे, इस समिति में अपनी मिति दर्ज करायी। सर्वोदयी विचारक होने के कारण सिद्धराज को राजनैतिक दलों की सक्रीय भागीदारिता अनुपयुक्त लगी और साथ ही वे ग्राम सभा को अधिक सशक्त वनाना चाहते थे वो भी समिति ने नहीं माना।
अशोक मेहता समिति प्रतिवेदन राजनीति की भेंट चढ़ गई। जनता पार्टी, जिसने इस समिति की नियुक्ति की थी, थोड़े समय के पश्चात ही विघटित हो गई और उसके स्थान पर कांग्रेस दल की सरकार बनने के कारण इस प्रतिवेदन के संघीय सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया।
आगे चलकर हेगड़े के नेतृत्व में बनी कर्नाटक सरकार ने मूल रूप से और कस में तेलगूदेशम सरकार ने राजनैतिक उद्देश्य के कारण मिश्रित रूप से पंचायती राज के ‘मण्डल मॉडल’ को अपनाया। कर्नाटक में थोड़े समय पश्चात कांग्रेस के सत्ता में आने पर द्रि-स्तरीय के पर पुन: त्रि-स्तरीय पंचायती राज को अपना लिया गया।
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