आमेर के कछवाहा वंश का इतिहास | Kachhwaha Dynasty
आमेर के कछवाहा वंश का इतिहास के शासक स्वयं को भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज मानते हैं। यह सूर्यवंशी माने जाते हैं इस वंश के ध्वज में पांच रंग है जो निम्नलिखित हैं लाल पीला सफेद हरा नीला |
आमेर के कछवाहा वंश के राजचिहन मैं राधा कृष्ण को दर्शाया गया है जिसके नीचे लिखा है यतो धर्मस्ततो जय:
आमेर शिलालेख से इस वंश के प्रारंभिक शासकों की जानकारी मिलती है |
Table of Contents
आमेर के कछवाहा वंश का प्रथम शासक दुल्हराव कच्छवाह
मूल नाम तेजकरण |
यह नरवट के शासक सोडा सिंह के पुत्र थे और राजस्थान में कच्छवाह वंश के संस्थापक माने जाते हैं। इन्होंने बड़ गुर्जरों को पराजित कर दोसा पर अधिकार किया और उसे अपनी पहली राजधानी बनाया ।
दूल्हे राय ने जमुआ नामक स्थान पर रामगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया अतः यह स्थान जमुआ रामगढ़ कहलाया इसे ढूंढाड का पुष्कर भी कहा जाता है । कछवाहा वंश की आराध्य देवी अन्नपूर्णा देवी का मंदिर बनवाया जिसे जमवाय माता भी कहा जाता है ।
दूल्हे राय ने लालसोट के चौहान राजा राला हंशी या रालपसी की पुत्री सुजान कवर से विवाह किया इनके पुत्र का नाम कपिल देव था । कवि कल्लोल ने ढोला मारू रा दुआ की रचना की दूल्हे राय ने निम्नलिखित को पराजित किया ।
झोटा मीणा – झोटवाड
गेता मीणा – गेटोर
आलम सिह – आमेर
कोकिल देव -1170 – 1207
इतने भट्टो मीणा को पराजित कर आमेर पर अधिकार किया और उसे अपनी राजधानी बनाया।
नेरू नामक व्यक्ति ने आमेर के दक्षिण पूर्व में नरूका शाखा तथा कुवर शेखा ने शेखावाटी में शेखावत शाखा को प्रारंभ किया। परसरामपुरा में (झुंझुनू) कुवर शेखा की छतरी बनी है। इस छतरी के चित्र शेखावाटी के प्राचीनतम भित्ती चित्र माने जाते हैं |
कदमी महल का निर्माण किसने करवाया :— राजदेव -1227
राजदेव ने आमेर दुर्ग में कदमी पैलेस का निर्माण करवाया जिसमें कच्छवाह शासकों का राजतिलक होता था।
पृथ्वीराज कच्छवाह 1527
इसका विवाह बीकानेर का शासक लूणकरण की पुत्री बाला बाई से हुआ यह वैष्णव मत में विश्वास करती थी । इनके गुरु का नाम कृष्णदास पयहरि था। जिन्होंने गलता में रामानंदी पीठ की स्थापना की|
पृथ्वीराज ने आमेर में लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण करवाया | इसने अपनी रियासत को बारह प्रशासनिक केंद्रों में विभाजित किया जिन पर अपने बारह पुत्रों को नियुक्त किया इस व्यवस्था को बारह कोटडी व्यवस्था कहा जाता है |
बाला बाई का आग्रह पर अपने पुत्र पूरणमल को उत्तराधिकारी घोषित किया ।
खानवा के युद्ध में लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ।
भीमदेव
इसके भाई सांगा ने सांगानेर बसाया।
रतनसिह
इसने शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार की ऐसा करने वाला आमेर का प्रथम शासक था इसकी हत्या इसी के भाई आसकरण द्वारा की गई।
भारमल कच्छवाह
इतने मजनू खा की सहायता से 1556 में अकबर से दिल्ली में भेट की थी। 1562 में चगताई खान की सहायता से सांगानेर में अकबर से दूसरी बार भेट की थी | 1562 में ही सांभर नामक स्थान पर अपनी पुत्री हरका बाई का विवाह अकबर से किया था इसे मरियम उज़-ज़मानी की उपाधि दी गई। अकबर ने 5000 का मनसबदार बनाया तथा अमीर उल उमरा का पद प्रदान किया ।
भारमल ने आमेर दुर्ग में महलों का निर्माण प्रारंभ करवाया जिन्हें मानसिंह प्रथम ने पूरा करवाया।
भगवंत दास कच्छवाह 1574-1589
भगवत दास ने अपनी पुत्री मानबाई का विवाह अकबर के पुत्र सलीम से किया । मान बाई के पुत्र का नाम खुसरो था खुसरो ने जहांगीर के समय विद्रोह किया इसे अर्जुन देव ने भी आशीर्वाद दिया था अतः जहागीर ने अर्जुन देव की हत्या करवाई।
मानबाई ने सलीम के दुर्व्यवहार से दुखी होकर आत्महत्या कर ली थी ऐसी करने वाली इस वंश की प्रथम राजकुमारी थी।
भगवंत दास को 5000 का मनसब तथा अमीर उल उमरा का पद दिया था । वह इसे तीसरे दूत मंडल का नेतृत्व देकर प्रताप को समझाने हेतु मेवाड़ भेजा परंतु असफल हुआ।
मानसिह कच्छवाह 1589-1614
यह 1562 में 12 वर्ष की अवस्था में अकबर की सेवा में नियुक्त हुआ अकबर ने इसे फर्जंद अर्थात पुत्र के समान बताया | अकबर के समय मानसिंह मुगल दरबार में 7000 मनसबदार और प्रथम श्रेणी मनसबदार था इसके अतिरिक्त दूसरा 7000 मनसबदार मिर्जा अजीज कोका को बनाया गया था |
मानसिंह ने बंगाल बिहार उड़ीसा और काबुल पर विजय प्राप्त की और इसे मुगल साम्राज्य में मिला है ।
मानसिह के द्वारा प्रमुख निर्माण कार्य:-
1. आमेर के महल
2 मान महल पुष्कर
3 पंच महला बैराठ
4 राधा गोविन्द मंदिर
5 शीला माता आमेर –
शिला माता की अष्टभुजीमूर्ति मानसिंह द्वारा बंगाल के जस्सोर नामक स्थान से आमेर लाकर स्थापित की गई थी । आमेर के जलेब चोक में दक्षिण पश्चिम दिशा में यह मंदिर बना है मध्यकाल में नरबलि और पशु बलि की परंपरा विद्वान थी। इस मंदिर में कच्चा और पक्का दो प्रकार का प्रसाद मिलता है ।
6. जगत शिरोमणी मंदिर –
इस मंदिर का निर्माण मानसिंह की रानी कनकावती ने अपने दिवंगत पुत्र जगत सिंह की याद में करवाया था। इस मंदिर में भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति स्थित है जो चित्तौड़गढ़ से लाकर यहा स्थापित की गई थी।
7. अकबर नगर (बंगाल)
8. मान नगर (बिहार)
लाहौर से ब्लू पॉटरी कला को आमेर में लाने का श्रेय मानसिंह को दिया जाता है।
मानसिंह के प्रमुख दरबारी साहित्यकार व उनकी रचनाएं :-
- पुण्डरिक विठ्ठल —राग मंजरी , राम चन्द्रोदय , रागमाला , दुनी प्रकाश
- दलपत्र – पत्र प्रशस्ति , पवन पश्चिम
- मुरारी दान – मान प्रकाश
अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए दूसरे दूत मंडल का नेतृत्व देकर मानसिंह को भेजा था | अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध का नेतृत्व में मान सिंह को सौंपा था।
जहांगीर के समय मानसिंह को दूसरी श्रेणी का और बीकानेर के रायसिंह को प्रथम श्रेणी का मनसबदार बनाया गया |
दक्षिण अभियान से लौटते समय एलिचपुर नामक स्थान पर मान सिंह की मृत्यु हुई।
भावसिह 1614 – 21
जहांगीर ने भावसिंह को प्रारंभ में 2000 का मनसबदार बनाया बाद में इसे बढ़ाकर 3000 का कर दिया |
मिर्जा राजा जयसिह 1621- 67
यह तीन मुगल बादशाहों के समकालीन था जहांगीर शाहजहां और औरंगजेब ।
कंधार अभियान पर जाते समय जय सिंह को शाहजहां मिर्जा राजा की उपाधि प्रदान की थी | शाहजहां के चारों पुत्रों के बीच उत्तराधिकारी संघर्ष के समय जयसिंह की मनसब में वृद्धि करके 6000 कर दी गई ।
औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी के विरुद्ध भेजा इसमें शिवाजी को पुरंदर की संधि के लिए बाध्य किया |
पुरंदर की संधि 1665
इस संधि के अनुसार शिवाजी ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की | मिर्जा राजा जयसिंह और उसके पुत्र राम सिंह के आश्वासन पर शिवाजी ने आगरा दुर्ग में औरंगजेब से भेंट की थी | औरंगजेब ने जय सिंह के पुत्र पृथ्वी सिंह की हत्या विश्व के माध्यम से करवाई |
जयगढ दुर्ग – जयसिंह ने चिल्ह का टोला नामक पार्टी पर जयगढ़ दुर्ग बनवाया I
दरबारी साहित्यकार –
कवि बिहारी – बिहारी सतसयी
राय कवि – जयसिह कल्प द्रुम
दक्षिण अभियान से लौटते समय बुरहानपुर नामकस्थान पर जय सिंह की मृत्यु हुई औरंगजेब ने विष के माध्यम से इनकी हत्या करवाई थी |
रामसिह 1667-82
औरंगजेब ने राम सिंह को कोई भी महत्वपूर्ण जाए तो नहीं दिया था |
विशन सिह 1682-1700
आमेर की किलेबंदी करने वाला यह प्रथम कच्छवाह शासक था | औरंगजेब ने इसके पुत्र विजय सिंह का नाम बदलकर जयसिंह किया और उसे सवाई की उपाधि प्रदान की |
सवाई जयसिंह द्वितीय 1700—43
इसमें सात मुगल बादशाहों के काल में अपनी सेवा दी औरंगजेब, बहादुर शाह प्रथम, जहांदार शाह, फर्रूखसियर रफी उद धर जात, रफी उद दर दोला, मोहम्मद शाह (रंगीला)
प्रमुख निर्माण कार्य
- 18 नवंबर 1727 को जयपुर बसाया
- वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य
- नीव रखने वाला पंडित जगन्नाथ
- जल निकासी और मैदानी भाग का वास्तुकार मेलकम स्पीड
जयपुर शहर जर्मनी के शहर द एर्लग की डिजाइन पर बना है यह चौपड़ पद्धति पर आधारित है। इसकी चारदीवारी की तुलना मास्को में क्रेमलिन की दीवार से की जाती है भक्त राम द्वारा लिखित बुद्धि विकास ग्रंथ में जयपुर के वास्तु का उल्लेख मिलता है।
सी वी रमन ने जयपुर को ग्लोरी ऑफ आईलैंड कहा अर्थात वैभव का द्वीप |
1729 में जयपुर का निर्माण पूर्ण हुआ वह आमेर से अब राजधानी जयपुर आ गई।
2. सीटी पैलेस
इसमें 7 मंजिलें और यह महाराजा का निवास स्थान था इसके नाम निम्नलिखित हैं
प्रीतम, शोभा, सुख, छवि, शिश, श्री, मुकुट, महल
3. नाहरगढ 1734
मराठा से सुरक्षा हेतु 1734 में नाहरगढ़ का निर्माण करवाया इसका मूल नाम सुदर्शनगढ़ था बाबा नाहरसिंह भोमिया के नाम पर इसका नाम नाहरगढ़ रखा गया |
4. जंतर मंतर
यह वेधशालाए हैं जहां नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता है यह पांच स्थानों पर बनाई गई थी :-
- दिल्ली प्रथम वेध शाला
- मथुरा
- बनारस
- उज्जैन
- जयपुर सबसे बड़ी वेधशाला।
5. जल महल
यह दो मंजिला भवन है तथा मानसागर झील के मध्य स्थित है इसी जेल में सवाई जयसिंह ने पुंडरीक रत्नाकर के नेतृत्व में अश्वमेध यज्ञ किया था जयसिंह में दो बार अश्वमेध यज्ञ किया | यह यज्ञ करने वाला जय सिंह अंतिम हिंदू शासक था।
6. जयबाण तोप
जयगढ़ दुर्ग में है यह अष्ट धातु से बनी है इसकी नाल की लंबाई 20 फिट है इसमें 50 किलोग्राम का गोला प्रयोग किया था तब यह गोला चाकसू में गिरा जहां वर्तमान में गोलेराब तालाब स्थित है | तोप डालने का कारखाना जयगढ़
स्टेण्डी की पुस्तक ‘द राँयल ऑफ द इण्डियन ‘ मैं सबसे पहले पिंक सिटी कहां है l
जयसिंह द्वितीय ने मोहम्मद रंगीला से आग्रह करके जजिया कर को बंद करवाया ।
हुरडा सम्मेलन 17 जुलाई 1734 के आयोजन में सर्वाधिक भूमिका जयसिंह द्वितीय के थी सवाई जयसिंह के समय मुगल बहादुर शाह प्रथम ने आमेर पर आक्रमण करके उस पर अधिकार किया और आमेर का नाम बदलकर मोमीनाबाद कर दिया |
जय सिंह के द्वारा रचनाएं
जयसिंह ने नक्षत्रों के शुद्ध सारणी (जीज मोहम्मद शाहि ) की रचना की जिसमें ज्योतिषीय खगोल विज्ञान का उल्लेख है।
अन्य ग्रंथ – जयसिह कारिका
ईश्वरी सिह 1743 – 50
यह जयसिंह द्वितीय का पुत्र था ईश्वर सिंह के साथ इसके भाई माधोसिंह ने सिंहासन प्राप्त करने हेतु राज महल का युद्ध किया परंतु पराजित हुआ इस युद्ध में माधोसिंह का साथ कोटा (दुर्जन शाह) बूंदी (दलेल सिंह) वह मराठा सरदार मल्हार राव होलकर ने दिया |
इस युद्ध विजय के बाद ईश्वर सिंह ने जयपुर के किशनपोल बाजार में विजय स्तंभ का निर्माण करवाया जिसे सरगासुली या ईसर लाट भी कहा जाता है यह अष्टकोण स्तंभ है ।
1748 में बगरू का युद्ध में माधोसिंह से पराजित हुआ 1750 ईस्वी में मराठा सरदार मल्हार राव होलकर के दबाव में ईश्वर सिंह ने आत्महत्या की |
माधोसिह 1750 -68
निर्माण कार्यः- चाकसू में शीतला माता मंदिर और जयपुर में मोती डूंगरी के महल का निर्माण करवाया।
माधोसिंह ने 5000 से अधिक मराठों सैनिकों का नरसंहार करवाया 1759 में काकोड के युद्ध में मल्हार राव होलकर को पराजित किया |
भटवाडा का युद्ध 1761 :- इस युद्ध में कोटा के राजा शत्रु पाल ने माधोसिंह को पराजित किया युद्ध का मुख्य कारण मुगल बादशाह अहमद शाह द्वारा माधोसिंह को रणथंबोर सोपना था |
1765 में माधोसिंह में सवाई माधोपुर बसाया।
मालवा-मण्डोली का युद्ध 1767 :- इस युद्ध में भरतपुर के शासक जवाहर सिंह को माधोसिंह ने पराजित किया |
सवाई प्रतापसिह 1768 – 1803
इन के दरबार में 22 संगीतज्ञ व 22 ज्योतिषी व 22 साहित्यकार थे जिन्हें गंधर्व बाईसी या गुणिजन खाना भी कहा जाता है प्रताप सिंह ने राधा गोविंद संगीत सार नामक पुस्तक की रचना करवाई ।
प्रमुख दरबारी चित्रकार साहिब राम था इसमें ईश्वरी सिंह का आदमकद चित्र बनाया |
प्रताप सिंह ने 1799 ईसवी में हवामहल का निर्माण करवाया यह पांच मंजिला इमारत है जिसमें 953 खिड़कियां बनी है परंतु एक भी कक्ष नहीं है। हवा महल में पांच मंजिला हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं :-
- प्रताप मंदिर/ शरत मंदिर
- रतन मंदिर
- विचित्र मंदिर
- प्रकाश मंदिर/ सूर्य मंदिर
- हवा मंदिर
तुमा का युद्ध 1787 :- इस युद्ध में सवाई प्रतापसिंह ने मराठा सरदार महादजी सिंधिया को पराजित किया इस समय महादजी सिंधिया ने कहा था कि यदि में जीवित रहा तो जयपुर को धूल में मिला दूंगा l
पाटन का युद्ध 1790 :- इस युद्ध में महादजी सिंधिया ने प्रताप सिंह को पराजित किया ।
जगत सिंह द्वितीय 1803 से 1819
रसकपूर गणिका से संबंध होने के कारण बदनाम राजा कहा जाता है जगत सिंह द्वितीय और मारवाड़ के राजा मानसिंह के बीच महाराणा भीम सिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी के साथ विवाह को लेकर गिंगोली का युद्ध हुआ 1907 मे परबतसर नागौर में |
जगत सिंह ने 1818 ईसवी में अंग्रेजों के साथ सहायक संधि की और उनकी अधीनता स्वीकार की ।
सवाई जय सिंह तृतीय 1819 – I835
इनके काल में जयपुर के अंग्रेज अधिकारी कैप्टन ब्लैक की हत्या कर दी गई ।
सवाई रामसिंह द्वितीय 1835 – 1880
सरक्षक जॉन लुडलो
जॉन लुडलो ने कन्या वध, दहेज प्रथा, सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया | रामसिंह द्वितीय ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का साथ दिया था अंग्रेजों ने इन्हें सितार ए हिंद की उपाधि व कोटपुतली की जागीर प्रदान की |
गवर्नर जनरल मेंयो ने जयपुर की यात्रा कि और मेयो महाविद्यालय का स्थापित करवाया ।
रामसिंह द्वितीय के प्रमुख निर्माण
रामनिवास बाग रामबाग पैलेस रामगढ़ बांध महाराजा महाविद्यालय संस्कृत विद्यालय मौज मंदिर व अल्बर्ट हॉल का प्रारंभ करवाया ।
जयपुर स्कूल ऑफ आर्ट्स की स्थापना भी रामसिंह द्वितिय द्वारा करवाई गई |
ब्रिटेन के प्रिंस अल्बर्ट के जयपुर आगमन के अवसर पर अल्बर्ट हॉल का निर्माण करवाया गया यह भवन पिरामिडाकार है और अपने भित्ति चित्र के लिए जाना जाता है इसके निर्माण में यूरोपियन मुगल और हिंदू वास्तुकला का उपयोग किया गया है।
सवाई रामसिंह द्वितीय ने प्रिंस अल्बर्ट का आगमन के अवसर पर जयपुर को गुलाबी रंग से रंग आया | रामसिंह द्वितीय के समय राम प्रकाश थिएटर स्थापित किया गया जो राजस्थान का पहला थिएटर माना जाता है ।
माधोसिंह द्वितीय 1880-1922
माधोसिंह द्वितीय ने नाहरगढ़ दुर्ग में अपनी 9 पासवानो के लिए नौ महल बनवाएं माधोसिंह द्वितीय ने विदेशी अतिथियों के ठहरने के लिए मुबारक महल बनवाया जिसमें यूरोपियन व भारतीय स्थापत्य शैली का प्रयोग किया गया है ।
माधोसिंह द्वितीय ने विशाल चांदी के पात्रों का निर्माण करवाया जो वर्तमान में सिटी पैलेस में स्थित हैं माधोसिंह द्वितीय के द्वारा 1904 में डाक टिकट जारी किए गए ऐसा करने वाली जयपुर प्रथम रियासत थी ।
माधोसिंह द्वितीय ने अल्बर्ट हॉल का निर्माण पूरा करवाया
मानसिह द्वितीय 1922 – 47 तक
आमेर के कछवाहा वंश का इतिहास खत्म होता है। इसके बाद भारत स्वतंत्र हो गया और जयपुर का विलय भारत में हुआ |
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