आस लगाय उदास भए सुकरी जग मैं | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद | - Rajasthan Result

आस लगाय उदास भए सुकरी जग मैं | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

 

आस लगाय उदास भए सुकरी जग मैं उपहास कहानी।

एक बिसास की टेक गहाय कहा बस जौ उर और है ठानी।

एहो सुजान सनेही कहाय दई कित बौरत हौ बिन पानी ।

यौं उघरै घनआनन्द छाय के हाय परी पहचानि पुरानी ॥

आस लगाय उदास भए

प्रसंग :— यह पद्य कविवर घनानन्द की रचना ‘सुजान हित’ में से लिया गया है। जब प्रिय जान-बूझ कर या किसी दबाव वश अपने प्रेमी की ओर से मुँह मोड़ ले, तो सिवाय मजाक के उसे और कुछ नहीं मिलता। निराश प्रेमी के इसी प्रकार के भावों को प्रकट करते हुए इस पद्य में कवि कह रहा है

व्याख्या :— हे प्रिय ! पहले तो मेरे प्रेम का उत्तर अपने प्रेम से देकर तुमने मेरे मन में मिलन की आशा जगाई, लेकिन अब तुम मेरी ओर से एकदम उदासीन हो गए हो। इस प्रकार तुम्हारे व्यवहार ने हमारी प्रेम कहानी को संसार के सभी लोगों की नजरों में एक भद्दा मजाक बनाकर रख दिया है?

मेरे साथ प्रेम करके पहले तो तुमने मेरे प्रेम को विश्वास की टेक दी, अर्थात् आश्रय और आधार प्रदान किया, परंतु अब उस विश्वास को तोड़कर तुमने अच्छा नहीं किया। पता नहीं अपने हृदय में क्या सोचकर तुमने मेरे प्रेम और विश्वास को ठुकरा दिया हैं। हे सुजान अर्थात् ! चतुर प्राणप्रिय, मेरे प्रेमी कहलाकर भी अब मेरे जीवन को बिना पानी के ही डुबोकर कहाँ नष्ट कर देना चाहते हो ? हाय दैया। आखिर तुम्हारा यह कैसा और कितना निष्ठुर व्यवहार है कि जो तुम जीते जी मुझे विरह के अथाह सागर में डुबोकर मार डालना चाहते हो ।

कविवर घनानन्द कहते हैं कि प्रेम के आनन्द रूपी बादलों की तरह मेरे मन और भाग्य के आकाश पर छाकर यों एकाएक बादलों की तरह उमड़ भी जाओगे पता न था। मेरी तुम्हारी जो प्रेम के नाते एक पहचान थी, अपनापन था, तुम्हारे इस कठोर एवं निर्मोही व्यवहार के कारण वह सब भी अब एकदम पुराना पड़कर रह गया है। अर्थात् हमारा – तुम्हारा प्रेम मिलन अब भूली-बिसरी घटना बन कर रह गया है, इस कारण मेरा रूप हमेशा पीड़ित होकर हाय-हाय करता और कराहता रहता है|

विशेष

1. ‘उपहास – कहानी’, ‘बोरत हौ बिन पानी’, ‘और है ठानी’ जैसे पद विरह विदग्ध, मन की मानसिकता और पीड़ा को उजागर करने वाले हैं|

2. पद्य में उपालम्भ का मार्मिक भाव और पश्चाताप की पीड़ा भी स्पष्ट है|

3. पद्य में रूपक, असंगति, प्रश्न अनुप्रास आदि विविध अलंकारों का प्रयोग बड़ा ही स्वाभाविक बन पड़ा है|

4. भाषा माधुर्य गुण- प्रधान, मुहावरे और भावों के लालित्य को व्यंजित कर पाने में हर प्रकार से सक्षम कही जा सकती है। उसमें गेयता एवं संगीतात्मकता का तत्व एवं सहज प्रवाह भी यथेष्ठ है|

यह भी पढ़े 👇

  1. मेरोई जीव जौ मारत मोहि तौ प्यारे कहा | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
  2. हीन भएँ जल मीन अधीन कहा कछु | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनआनंद |
अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!