उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) - Rajasthan Result

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO)

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उत्तर अटलांटिक संधि संगठन :- द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात पश्चिमी यूरोप के देशों को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की चिंता थी विशेषकर सोवियत संघ के कठोर वैचारिक प्रतिरोध के संदर्भ में यह देश चिंताजनक स्थिति में थे।

NATO headquarter :- नॉर्थ ऍटलाण्टिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन, नाटो ) एक सैन्य गठबन्धन है, जिसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है।

उत्तर अटलांटिक संधि ( नाटो) का प्रमुख उद्देश्य क्या था?

यूरोप पर आक्रमण के समय अवरोधक की भूमिका निभाना। पश्चिम यूरोप के देशों को एक सूत्र में संगठित करना। … इस प्रकार NATO का उद्देश्य स्वतंत्र विश्व’ की रक्षा के लिए साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए एवं यदि संभव हो तो साम्यवाद को पराजित करने के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता माना गया।

 

जर्मनी जो कि दोनों विश्व युद्धों के लिए उत्तरदाई माना जाता है उस पर भी अंकुश रखना था। 4 अप्रैल 1949 में बेल्जियम कनाडा फ्रांस लक्जमबर्ग इटली नार्वे पुर्तगाल ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका ने उत्तर अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर किए।

इसके द्वारा पश्चिमी यूरोप के लिए विशेष सुरक्षा प्रबंध के रूप में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन नाटो की स्थापना की गई। पाश्चात्य गुट के सदस्य के रूप में पश्चिमी जर्मनी ने भी 1955 में नाटो की सदस्यता ग्रहण की तथा 1982 में स्पेनिश में शामिल हुआ। फ्रांस कुछ समय के लिए 1960 के दशक में नाटो के सक्रिय सदस्यता से अलग हो गया था।

वह 1990 के दशक में वापस आ गया चाहे वह अब इतना उत्साहित नहीं रहा जितना प्रारंभ में था नाटो ने पूर्वी यूरोप में 1999 में अपना विस्तार करना आरंभ किया जब उसमें तीन पूर्व साम्यवादी जो कि अब लोकतांत्रिक देश पोलैंड हंगरी तथा चेक गणराज्य की सदस्यता स्वीकार की गई।

1989 में बर्लिन की दीवार के गिरा दिए जाने पर तथा 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो जाने पर जब पश्चिमी यूरोप तेजी से आर्थिक एकीकरण की ओर बढ़ने लगा उस समय नाटो ने अपनी रणनीतिक अवधारणा व्यक्त की ताकि वह यूरोपीय सुरक्षा की अपनी नीति को नया रूप दे सके।

यह व्यवस्था 1994 से शांति के लिए भागीदारी कार्यक्रम की सहायता करती रही है ताकि यह अपने पूर्व सोवियत संघ के नवोदित गण राज्यों तथा फिनलैंड आयरलैंड तथा स्वीडन जैसे तटस्थ देशों के मध्य विश्वास स्थापित करके सहयोग को बढ़ावा दे सके। नाटो अब रूस के साथ सामान्य रूप से बैठकर करता है इन बैठकों का आरंभ नाटो रूट स्थाई संयुक्त परिषद से हुआ था।

अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 के आतंकवादी आक्रमण के पश्चात स्थाई संयुक्त परिषद के स्थान पर मई 2002 में नाटो रूस परिषद की स्थापना की गई। यह आशा व्यक्त की गई कि यह परिषद नाटो रूस वार्ता को अधिक उपयोगी बनाने में सहायक होगी।

नाटो ने 1994 में भूमध्य सागर क्षेत्र के देशों के साथ विचार विमर्श का आरंभ किया सन 2000 में नाटो ने यूक्रेन के साथ सामान्य बैठकर आरंभ की तथा उसने बाल्कन देशों के साथ दक्षिण पूर्वी यूरोप पहेल के माध्यम से वार्ता शुरू की। यह संस्था दक्षिण पूर्वी यूरोप स्थायित्व समझौते के साथ मिलकर कार्य करती है।

नाटो ने 1999 में रक्षा क्षमता पहल आरंभ की ताकि बदलते सुरक्षा परिवेश को दर्शाया जा सके तथा सदस्य देशों की सैनिक क्षमता का विकास हो सके इसके केंद्र में 1990 के दशक में पश्चिमी यूरोप का वह प्रयास है जिससे वे अपने यूरोपीय सुरक्षा एवं रक्षा पहचान बना सके। यह कार्य पहले पश्चिमी यूरोपीय संघ व यूरोपीय क्रियाशील तीव्र बंद तथा यूरोपीय संघ की विकासशील सांझा विदेश एवं सुरक्षा नीति के साथ मिलकर किया गया।

सन 2003 में यूरोपीय संघ के अपने तीव्र प्रतिक्रिया बल की स्थापना होनी थी जो शांति निर्वहन संक्रिया चलाएगा यह बल नाटो के सहयोग से कार्य करेगा। यूरोपीय सुरक्षा एवं रक्षा पहचान ने मिले-जुले संयुक्त कार्य बल की स्थापना में भी सहायता की यह एक बहुराष्ट्रीय सैन्य बल और कमान है जिसमें पश्चिमी यूरोप के तथा गैर नाटो यूरोपीय देश शामिल हैं आशा व्यक्त की गई थी कि यह बल तैनाती के लिए 2004 तक तैयार हो जाएगा।

नाटो ने 1994 — 95 में अपने इतिहास में पहली बार आक्रामक संक्रिया अपनाई जब इसने बोस्निया में चल रहे युद्ध में हवाई बमबारी की। नाटो ने 1995 में प्रथम भूमि मिशन चलाया जब इसके 60,000 शांति रक्षकों को बोस्निया में तैनात किया गया ताकि यह क्रियात्मक बल के रूप में कार्य कर सकें नाटो की सेना 2003 में भी 1995 के डेटन शांति समझौते का पालन करवाने के लिए स्थापित बल के रूप में कार्य कर रही थी अप्रैल 1999 में नाटो ने ऑपरेशन एलाइड फोर्स के नाम से यूगोस्लाविया के विरुद्ध कार्यवाही की तथा वह कोसोवो में अल्बानिया मूल के लोगों के विरुद्ध अत्याचार बंद करें।

इससे पूर्व अगस्त 2001 में भी 3500 नाटो सैनिकों को युगोस्लाविया के पूर्व गणराज्य में शोर दुनिया में 30 दिन के लिए भेजा गया था ताकि वह अल्बानिया के छापा मारो को निरस्त्र कर सके मेसेडोनिया में अल्बानिया मूल के लोगों के अधिकारों में सुधार लागू करवाने के लिए 700 सैनिकों को कुछ समय के लिए वही छोड़ दिया गया था।

1999 से लगभग 10 देश नाटो के सैनिक सहायता कार्यक्रम के अंतर्गत सहायता लेते रहे ताकि उनके अपने सशस्त्र बलों की शक्ति नाटो बलों जैसी हो जाए। परंतु इन सभी देशों को एक साथ इस कार्यक्रम की सदस्यता नहीं मिल सकेगी बाल्टिक प्रदेश के देश तथा इस लोवेनिया भी इस कार्यक्रम की सदस्यता के लिए तैयार है। वे 2004 में यूरोपीय संघ के सदस्य भी बनने वाले हैं लिथुआनिया ने अपने सैन्य बलों का आधुनिकीकरण किया है।

वह अपनी एक टुकड़ी नाटो बल के लिए दे सकता है वह तीव्र प्रतिक्रिया बल में 2006 तक सहयोग करने की स्थिति में होगा अक्टूबर 2001 में तालिबान के विरुद्ध अमेरिकी या कार्यवाही की सदस्यता के लिए बलगारिया तथा रूमानिया ने अपनी वायु सीमा और अड्डों का प्रयोग करने की सुविधा अमेरिकी बलों को दी थी इनके बदले में उन 2 देशों को नाटो की सदस्यता मिलने की आशा है।

गिरीश और टर्की यह चाहते हैं कि बाल्कन क्षेत्र की बेहतर सुरक्षा के लिए बुलगारी या और रुमानिया को शामिल कर लिया जाए। सितंबर 2001 के आतंकवादी आक्रमण के बाद बदले सुरक्षा परिवेश में नाटो अपनी सैनिक क्षमता में सुधार करना चाहता है इस कार्य के लिए उसे अपने तीव्र प्रतिक्रिया बल की और सशक्त बनाना होगा |

महत्वपूर्ण बातें

1. नाटो में कितने देश है?

नाटो में 31 सदस्य देश हैं। इसका उद्देश्य इसके सदस्य राष्ट्रों की राजनीतिक स्वतंत्रता और सैन्य सुरक्षा बनाए रखना है। विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए नाटो प्रतिबद्ध है, यदि राजनयिक कोशिशें फेल हो जाती हैं तो यह समाधान करने के लिए सैन्य शक्ति का सहारा भी लेता हैं। 31 वा सदस्य फिनलैंड बना है

2. नाटो और वारसा संधि क्या है?

नाटो के जवाब में सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों के गठबंधन ने सन् 1955 में वारसा संधि की। इसमें ये देश सम्मिलित हुए – सोवियत संघ, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, चैकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और बुल्गारिया। इसका मुख्य काम था -नाटो में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना।

3. भारत नाटो का सदस्य क्यों नहीं है?

एक गुट निरपेक्ष देश, वारसा संधि के दो सदस्य देश। एक अंकीय उत्तर :- 1. … भारत किसी भी महाशक्ति के गुट का सदस्य नहीं बनना चाहता था। स्वतंत्र नीति बनाए रखने के कारण भारत सीटो, नाटो जैसी सैनिक संधियों में शामिल नहीं।

4. NATO का फुल फॉर्म क्या होता है?

NATO Full Form In Hindi : NATO का full form रूप उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन [ North Atlantic Treaty Organization ] है। नाटो को 4 अप्रैल 1949 को सामूहिक रक्षा के लिए बनाया गया था, जिसका अर्थ है कि इसके किसी भी सदस्य राष्ट्र पर आक्रमण को उसके सभी सहयोगियों पर हमले के रूप में देखा जाएगा।

यह भी पढ़े 👇

  1. लुथर गुलिक का सिद्धांत Luther Gulick

 

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