एड़ी ते सिखा लौ है अनूठियै अंगेर आछी | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद | - Rajasthan Result

एड़ी ते सिखा लौ है अनूठियै अंगेर आछी | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

एड़ी ते सिखा लौ है अनूठियै अंगेर आछी,

रोम रोम नेह की मैं रही री सनि ।

सहज सुछबि देखें दबि जाहि सबै बाय,

बिन ही सिंगार और बानक बिराजै बनि। 

गति लै चलनि लखें मति गति पंगु होति,

बरसति अंग रंग माधुरी बसन छनि । 

हँसनि-लसनि घनआनन्द जुन्हाई दाय,

लागै चौंध चेटक अमेट ओपी भौंहें तनि ।। (२८)

एड़ी ते सिखा लौ है

प्रसंग :— यह पद्य कविवर घनानन्द की रचना ‘सुजानहित’ से लिया गया है। हिन्दी काव्य में नख-शिख – सौन्दर्य वर्णन की प्राचीन परम्परा विद्यमान है। उसी के अन्तर्गत कवि ने इस पद्य में नायिका के हर अंग के सौन्दर्य का अलग-अलग तो नहीं; पर समग्र वर्णन अवश्य किया है। नायिका के अंग-सौष्ठव को निहार कवि कह रहा है

व्याख्या :— उस सुन्दरी नायिका की पैर से सिर तक के समस्त अंगों की दीप्ति और सुन्दरता बड़ी ही अनोखी है। उसे देखकर लगता है, मानो उसका रोम-रोम अपने प्रिय के प्रेम की सुन्दरता में रच-बस रहा हो। यानि प्रेम में डूबी नायिका का अंग-अंग, हर रोम सौन्दर्य की आभा से जगमगाता हुए सा प्रतीत होता है। उसकी स्वाभाविक सुन्दर शोभा को देखकर बड़ी-बड़ी सुन्दरियों का रूप-सौन्दर्य दबकर रह जाता है।

और सुन्दरियों की शोभा और सुन्दरता तो तरह-तरह शृंगार – सजावट, बिना किसी विशेष वेशभूषा के भी अद्भुत सुन्दरी दिखाई देती है। जब वह कुछ तेज होकर चलने लगती है, तो उसकी मस्ती भरी चाल को देखकर देखने वालों की बुद्धि की गति- दिशा भी मानों अपंग होकर रह जाती है। उसके हर अंग की सुन्दरता और चमक तन पर पहने वस्त्रों से छन कर चारों तफ के वातावरण पर छा, उसमें अजीब माधुर्य का संचार कर देती है।

घनानन्द कवि कहते हैं कि उस सुन्दरी नायिका की हँसी की शोभा को देखकर लगता है जैसे चारों ओर चाँदनी छा गई हो। उसके नयनों के घुमाव से तनी हुई भ्ज्ञौहों की चमक को देखकर देखने वाले की समूची चेतना पर एक जादू का-सा प्रभाव छाने लगता है। इस प्रकार नायिका की अंग-शोभा, साज- शृंगारहीन सुन्दरता, हँसी, चलने का ढंग आदि सभी कुछ अद्भुत सौन्दर्य से सम्पन्न एवं अनोखे सौन्दर्य की सृष्टि करने वाला है।

विशेष

1. इस पद्य में कवि ने विशेषकर सुन्दरी नायिका की शृंगार रहित शोभा, हँसी, चाल और तिरछी भौंहों के प्रभाव का चित्रण किया है।

2. समूचा चित्रण नख-शिख- वर्णन के परम्परागत ढंग का ही है।

3. पद्य में उपमा, उत्प्रेक्षा, विशेषोक्ति, अनुप्रास आदि कई अलंकार हैं ।

4. पद्य की भाषा माधुर्य गुणयुक्त, चित्रमयी, संगीतात्मक प्रवाहपूर्ण एवं सहज स्वाभाविक कही जा सकती है।

यह भी पढ़े 👇

  1. काहू कंजमुखी के मधुप है लुभाने जानै | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद | (२७)
  2. तरसि तरसि प्रान जान मनि दरस कौं | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद | (२६)
  3. निरखि सुजान प्यारे रावरो रूचिर रूप | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद | (२५)

 

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!