गांधी का दर्शन क्या है आइए इसके बारे में जानते है?
हमने इस लेख में गांधी का दर्शन की प्रासंगिकता, गांधी दर्शन का जीवन में महत्व, गांधी दर्शन की प्रमुख विशेषताएं, गांधी का अहिंसा दर्शन, गांधीवादी दर्शन, आज का युवा और गांधी दर्शन, गांधी दर्शन में समाजवाद का विकल्प है। हमने इन सभी विषयो पर चर्चा की है इसलिए आप अंत तक जरूर पढ़ें।
उद्देश्य
इस इकाई में आप हमारी मातृभूमि के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के दर्शन का अध्ययन करने जा रहे हैं
मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें संपूर्ण विश्व महात्मा के नाम से जानता है।
शब्द के सामान्य अर्थ में महात्मा गांधी दार्शनिक नहीं थे यह किसी ने भी किसी दार्शनिक तंत्र की स्थापना नहीं की थी तथापि शाब्दिक दृष्टिकोण से वस्तुओं के संश्लेषित परिप्रेक्ष्य को देखने में वह इतने मग्न थे कि उन्होंने जो कुछ कहा किया और लिखा वह स्पष्ट थे दार्शनिक था ।
उनके द्वारा प्रदत नया परिदृश्य हमें ज्ञान के एक नए और फलित मार्ग की ओर आत्मानुभूति की और मनुष्य के एक दूसरे के साथ और संपूर्ण वातावरण के साथ अंतर्संबंध की ओर ले गया यह तथ्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि संपूर्ण विश्व उनके विचारों की प्रासंगिकता को जानता है |
Table of Contents
गांधी का दर्शन की प्रस्तावना
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में हुआ था उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी पोरबंदर में ही हुई थी सन 1888 में उन्हें वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेजा गया वह सन 1891 में एक वकील के रूप में भारत लौटे भारत में बहुत थोड़े समय के लिए रुकने के बाद वह अप्रैल 1893 में दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी की परिषद का मार्गदर्शन करने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गए ।
अपने दक्षिण अफ्रीकी सामाजिक व राजनीतिक खोजों के साथ वह भारत को सत्याग्रह विधि द्वारा स्वतंत्रता दिलाने का प्रयास करने के लिए भारत आए 1920 से 1948 तक का महात्मा गांधी का जीवन लगभग विश्व विख्यात है जिसकी यहां पुणे उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है |
गांधी का दर्शन
एक व्रत साहित्य द्वारा इस महान व्यक्ति व उनके विचारों का अध्ययन किया गया है उसके अतिरिक्त उनकी अपनी रचनाएं भी प्रकाशित सामग्री के रूप में 100 वृहत खंडों में उपलब्ध हैं । वे सभी विभिन्न अवसरों पर विभिन्न संदर्भों में विभिन्न उद्देश्यों के साथ लिखे गए थे गांधीजी ने किसी एक शोध प्रबंध पर अपने विचार प्रस्तुत करने का प्रयास नहीं किया इसी कारण से कई लोगों को उनके दर्शन को स्पष्ट रूप से समझ पाना कठिन हो जाता है ।
तथापि उनका एक समग्र दृष्टिकोण था जिसे उन्होंने यांत्रिक रूप में नहीं प्रयोग किया बल्कि रचनात्मक रूप में किया अर्थात पहले वे संदर्भ को देखते हैं और जितना संभव हो उतनी विस्तृत रूप में उसे समझते हैं और धार्मिक ग्रंथों से प्राप्त नित्य सिद्धांतों की सहायता से उस पर प्रकाश डालते हैं ।
इस प्रक्रिया को किसी आंकड़े पर कोई सिद्धांत लगाने के समान नहीं समझा जाना चाहिए किसी सहानुभूति द्वंद वादी संबंध का सिद्धांत आंकड़ों को प्रकाशित करता है और आंकड़े सिद्धांत के प्रकाश में केंद्रित होते हैं इस प्रयोग से जो जीवन रूपांतरण या शांति की अवस्था परिणित होती है वह आगे दार्शनिक सिद्धांतों की अधिक गहन पकड़ को प्रकाशित करती है और उनके मूल्यों को सुदृढ़ करती है और दार्शनिक दृष्टिकोण को पुष्ट करती है हम गांधी के सत्याग्रह की अवधारणा से प्रारंभ करते हैं ।
सत्याग्रह
महात्मा गांधी के अनुसार सत्याग्रह में 3 मौलिक मूल्य अंतर्निर्मित होते हैं सत्य अहिंसा और आत्म त्याग ।सत्याग्रह का उद्देश्य प्रेम और आत्मत्याग के द्वारा न्याय के भाव को जागृत करके कुकर्मी का हृदय परिवर्तन करके अन्याय का अंत करना है ।
पारंपरिक रूप से अन्याय पर विचार करने के दो मार्ग थे या तो व्यक्ति पीड़ित बना रहता था या फिर हिंसा द्वारा अन्याय उसका सामना करता था गांधी का नैतिक शांति वादी स्वभाव उन्हें निष्क्रिय नहीं होने देता उनका दृढ़ मत था कि अन्याय पीड़ित व्यक्ति और पाप कर्मी दोनों की आत्मा को दूषित करता है |
अतः कुछ भी न करना अनुचित है हिंसा से उसका विरोध करना भी उचित नहीं है क्योंकि हिंसा से हिंसा ही होती है आपसे इंसान में अन्याय का वास्तविक पाप कर्मी अब स्वयं को पीड़ित अनुभव करता है और इस प्रकार हिंसा के साथ उसका उत्तर देना उचित समझता है सत्याग्रह के पास इन दोनों का विकल्प है |
उन्होंने दक्षिण अफ्रीका और भारत दोनों स्थानों पर सत्याग्रह के साथ शोध किया उनके विभिन्न सत्याग्रह आंदोलनों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि उनके सत्याग्रह का एक निश्चित ढंग है यह सभी तथ्यों को सावधानीपूर्वक व्यवस्थित करते हुए संधि वार्ता की और संभवत है मध्यस्था की ओर बढ़ता है ।
प्रत्येक पक्ष विचारों के आदान-प्रदान के लिए खुला होता है क्योंकि झगड़े में प्रत्येक व्यक्ति का केवल एक आंशिक विचार ही होता है प्रत्येक पक्ष को अन्य पक्ष से आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य की आवश्यकता होती है ताकि सत्य को सत्य से अलग किया जा सके यदि मध्यस्था सफल हो जाती है तो सत्याग्रही बिना हिंसा का प्रयोग किए समूह को सीधी प्रतिक्रिया के लिए तैयार करता है ।
सत्याग्रही को भावनात्मक और शारीरिक हिंसा के बदले में प्रेम दिखाना होता है अब अपनी सीधी प्रतिवाद प्रक्रिया की घोषणा करने के बाद सत्याग्रही सभी विपत्तियों को स्वीकार करता हुआ तब तक कर में लीन रहता है जब तक की समस्या आपसी सहमति पर पहुंच जाए इस प्रकार सत्याग्रह एक नए ढंग से विरोध ओ का समाधान करना है |
जिसे राष्ट्रों के बीच पीड़ित अल्पसंख्यकों और उनकी सरकार के बीच सामाजिक समूहों और व्यक्तियों के बीच के विरोध में पर भी लागू किया जा सकता है गांधीजी के सत्याग्रह व हिंसा का उद्देश्य है जिनके कारण इंग्लैंड और भारत के बीच एक शासक से एक शासित को शक्ति का शांतिपूर्ण स्थानांतरण मानव इतिहास में सबसे मैत्रीपूर्ण ढंग से हुआ |
सत्य
महात्मा गांधी सत्यवादी होने के अर्थ में सत्य के प्रति समर्पित थे क्योंकि वे जानते थे कि सत्य सभी नैतिक कर्मों में व्याप्त है अनैतिक कार्य सत्य का उसी प्रकार हनन करता है जैसे कि गलत कथन करता है क्योंकि ज्ञानमीमांसीय रूप से सत्य ईश्वर से अधिक निश्चित प्रतीत होता है |
को सत्य ईश्वर है मैं परिवर्तित कर दिया क्योंकि मनुष्य सीमित प्राणी है अतः वह सत्य के वास्तविक स्वरूप के विषय में पूरी तरह से निश्चित नहीं हो सकता है उन्होंने जैन दर्शन के अनेकांतवाद को स्वीकार किया और विस्तृत सोच और आत्म शोध की आवश्यकता पर बल दिया कठिन परिस्थितियों में वे अपने अंतर्मन की आवाज पर विश्वास रहे जिसके अत्यधिक अभ्यास से सत्य की घोषणा से सामंजस्य स्थापित हुआ |
प्रेम
महात्मा गांधी के अनुसार प्रेम सद्गुण है जो सत्य की शुश्रूषा करता है यदि व्यक्ति के कर्म सभी के प्रति प्रेम से प्रोत्साहित हो तो वह कर्म सर्वोच्च सुख की प्राप्ति में सहायक होते हैं गांधी के अनुसार अहिंसा का अर्थ मात्र दूसरों को हानि पहुंचाने से बचना मात्र नहीं है बल्कि सकारात्मक रूप से उनके हित को बढ़ाना या उससे अधिक उन्हें प्रेम करना है।
वास्तविक प्रेम अहंकार रहित होता है जो कि सर्वोच्च व्यक्तिगत गुण है यह निष्काम कर्म है कर्म के फल की कामना से रहित होकर कर्म करना है जो कि प्रेम और आत्मसमर्पण को परिलक्षित करता है महात्मा गांधी अत्यधिक विनर वहीं कर रही थे जिन्होंने कोई संपत्ति नहीं रखी |
समाज सुधार
महात्मा गांधी के समाज सुधार से उद्देश्य समाज का रूपांतरण करना था जो कि दो मुख्य धारणाओं पर आधारित था एक सभी मनुष्य भाई हैं क्योंकि उनमें एक ही आत्मा विद्वान है अतः किसी अन्य को पीड़ित करना स्वयं के प्रति हिंसा करना है I
दूसरा सभी मनुष्य मूल रूप से शुभ हैं इन धारणाओं को देखकर कोई भी यह समझ सकता है कि क्यों गांधी न्याय और समानता के प्रतिबद्ध थे वह नारियों और हिंदू समाज के अंतर्गत हरिजनों की समानता के लिए लड़े उनका उद्देश्य सर्वोदय अर्थात प्रत्येक व्यक्ति का विकास करना था।
उन्होंने अनेकों आश्रम की स्थापना की जिनमें उन्होंने विभिन्न जातियों और धर्मों के नर और नारी को एकत्रित किया और उन्हें सरलता का जीवन व्यतीत करने के लिए प्रोत्साहित किया |
धर्म
महात्मा गांधी सभी धर्मों की समानता में विश्वास करते थे क्योंकि सभी मूल धर्म समान वह सत्य है सभी धर्मों का सार हठधर्मिता और सिद्धांत नहीं है बल्कि आत्म हत्या पर आधारित नैतिक कर्म है |
अर्थशास्त्र
महात्मा गांधी के आर्थिक विचार रूढ़िवादी नहीं थे परंतु वह अनियंत्रित आर्थिक उदारवाद और मानव मूल्यों की कीमत पर भौतिक समृद्धि के विरोधी थे आर्थिक पद्धति द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस संसार में कोई भी भूखा या बेघर नहीं हो l
उन्होंने हथकरघा उद्योगों और गांवों में सहकारी संस्थाओं के निर्माण के लिए कार्य किया चरखा सरलता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था वह अत्यधिक दया के सिद्धांत के भी विरोधी थे किसी भी समर्थ व्यक्ति को दया पर निर्भर नहीं रहना चाहिए प्रत्येक व्यक्ति को जीविकोपार्जन के लिए अत्यधिक मेहनत अवश्य करनी चाहिए।
परंतु वह अमीर व्यक्ति के धन का स्वामित्व छीनने के पक्ष में नहीं थे क्योंकि उनसे हिंसा होगी अतः उन्होंने न्यासिकता का सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसमें अमीर व्यक्ति अपने धन के न्यासी के रूप में कार्य करता है जिसका प्रयोग व सामाजिक उत्थान के लिए करता है |
राजनीति
वह शक्ति के विकेन्दण में विश्वास करते थे जिसमें राजनीतिक शक्ति का आधार ग्राम पंचायत की व्यवस्था पर आधारित छोटे सामुदायिक समूह होने चाहिए राज्य को सर्वोदय के लक्ष्य सार्वभौम आत्म अनुभूति के अनुरूप कम से कम शक्ति होनी चाहिए अहिंसा सभी धर्मों का मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए |
ईश्वर
महात्मा गांधी प्रारंभ में ईश्वर में आस्था रखते थे मैंने ईश्वर के प्रति सार्वभौमिक आस्था को बना लिया है I और वह ऐसी आस्था को अनुभव तक ले जाते हैं और कहते हैं कि मैं ईश्वर के अस्तित्व को लेकर ठीक उसी प्रकार निश्चित हूं जैसे कि मेरे और तुम्हारे इस कमरे में बैठे हुए के प्रति हूं |
उन्होंने उस आस्था को यह कहकर प्रमाणित किया मैं हवा और पानी के बिना जीवित रह सकता हूं किंतु ईश्वर के बिना नहीं I तुम मेरी आंखें निकाल सकते हो लेकिन मैं इससे मरूंगा नहीं |तुम मेरी नाक काट सकते हो परंतु यह भी मुझे मार नहीं सकता परंतु ईश्वर में मेरी आस्था को समाप्त कर दो और मैं मर गया l
गांधी इस तथ्य पर बल देते हैं कि हम में से कई उस सूक्ष्म आवाज के प्रति अपने कान बंद कर लेते हैं हम अपने सामने के आग के स्तंभ को देख कर अपनी आंखें बंद कर लेते हैं उन्होंने उसकी सर्वविद्यमानता को अनुभव किया |
अत्याधिक अंधकार में निराशा में भी जहां इस विशाल संसार में कोई सहायता करने वाला प्रतीत नहीं होता कोई आराम अनुभव नहीं होता उसका नाम हमें शक्ति से प्रोत्साहित करता है और सभी निराशाओ और संदेहों को दूर करता है |
महात्मा गांधी यह स्वीकार करते हैं कि ईश्वर की सत्ता को तर्क द्वारा सिद्ध करने के लिए उनके पास कोई तर्क नहीं है क्योंकि ईश्वर में आस्था तर्क के पड़े हैं हम यदि चाहे तो उसका अनुभव कर सकते हैं जबकि हम इंद्रियों से स्वयं को अलग कर लें दिव्य संगीत निरंतर हमारे भीतर चल रहा है परंतु तीव्र इंद्रियों ने उस मधुर संगीत को दबा दिया है।
जो कि हमारी इंद्रियों द्वारा देखी गई यह सुनी गई चीजों से भिन्न और अनंत रूप से श्रेष्ठ है भाई यह रूप से भी हम यह अनुभव कर सकते हैं की एक ऐसी अपरिभाषित रहस्यमई सकती है जो सभी वस्तुओं पर व्याप्त है यही वह अदृश्य शक्ति है जो स्वयं अनुभूत करवाती है।
और तब भी सभी प्रमाणों को स्वीकार करती है मैं धुंधले रूप में यह देखता हूं कि जब मेरे चार और सभी वस्तुएं सदैव परिवर्तनशील है निरंतर मरण सील हैं उन सभी परिवर्तनों में एक ऐसी जीवंत शक्ति विद्वान है जो अपरिवर्तनीय है सभी को एक साथ बांधे हुए हैं जो उत्पन्न करती है विनाश करती है और पुणे उत्पत्ति करती है यह शक्तियां आत्मा ईश्वर है और जो कि मात्र वह जो इंद्रियां देख सकती हैं या देखेंगी के अतिरिक्त में कुछ नहीं देख सकता अतः केवल ईश्वर का ही स्थित है I
1. ईश्वर सत्य है और सत्य ईश्वर है यह तार्किक अमूर्त सत्य नहीं बल्कि आध्यात्मिक व तार्किक सत्य है सत्य वह नियम है जो मानव और विश्व को आधार प्रदान करता है ईश्वर नियम और नियम दाता दोनों है |
2. ईश्वर स्वयं प्रेम है क्योंकि ईश्वर अनुरागी और स्वभाव से भावात्मक है |
3. सत्य किसी के गलती पर और दो पक्षों के बीच के प्रत्येक विरोध की अनुचितता पर विजय प्राप्त करता है |
4. प्रत्येक व्यक्ति को सत्य के लिए उपवास करना चाहिए तभी वह सत्य द्वारा सहायता प्राप्त कर पाएगा असत्य असत्य की ओर ले जाती है |
5. सत्य के समान ईश्वर और प्रेम भी समान है व्यक्ति को प्रेम का आचरण करना चाहिए l
6. व्यक्ति को अहिंसा के मार्ग का पालन करना चाहिए प्रेम की विरोधी हिंसा है |
7. मनुष्य सीमित है ईश्वर नहीं व्यक्ति की शक्ति ज्ञान और संकल्प सीमित है व्यक्ति अपनी धारणा में गलत हो सकता है |
8. सत्य के लिए व्यक्ति को दूसरों के कष्ट नहीं करना चाहिए |
9. जब सत्य की विजय होती है तब असत्य का नाश हो जाता है यदि दो पक्षों में प्रेम हो तो नाश गलत धारणाओं का होगा |
10. केवल ईश्वर को नाश करने का अधिकार है ईश्वर अपने असीम ज्ञान से जानता है कि क्या सत्य है और क्या सत्य है जब ईश्वर नाश करता है तो वह प्रेम से करता है ना कि घृणा से एक सीमित प्राणी होने के नाते हम नहीं सकते के विषय में निश्चित हो सकते हैं और नहीं प्रेम में होते हुए नाश कर सकते हैं गृह ना आसान है परंतु प्रेम कठिन है हमारा कर्तव्य प्रेम के मार्ग पर चलना है जब हम प्रेम के मार्ग पर चलेंगे तो हम ईश्वर एक नियम आधार हमारे अस्तित्व के आधार के समान बन सकेंगे |
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