पाट महादेड़ हिएं न हारू समुझि जीउ | संदर्भ सहित व्याख्या | मलिक मोहम्मद जायसी
पाट महादेड़ हिएं न हारू समुझि जीउ चित-चेतु संभारू। 1।
भंवर कंवल संग होइ न परावा। संवरि नेह मालति पहं आवा। 2।
पीउ सेवाति सौं जैस पिरीती। टेकु पियास बांबु जिय बीती 3
धरती जैस गंगन के नेहा। पलटि भरै बरखा रितु मेहा। 4।
पुनि बसंत रितु आव नवेली । सो रस सो मधुकर सो बेली | 5 |
जनि अस जीउ करसि तूं नारी | दहि तरिवर पुनि उठहिं संभारी। 6 ।
दिन दस जल सूखा का नंसा । पुनि सोइ सरवर सोई हंसा | 7 |
मिलहिं जो बिछुरै साजना गहि गहि भेंट गहंत। तपनि मिरगिसिरा जे सहहिं अद्रा ते पलुहंत ॥
पाट महादेड़ हिएं
प्रसंग : यह पद मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पदमावत’ के ‘नागमती वियोग खण्ड’ से लिया गया है। नागमती के विरह अनुभूतियों का वर्णन किया गया है।
व्याख्या : नागमती को समाश्वासन देते हुए उसकी सखियाँ कहने लगी कि हे रानी! आप इस प्रकार हिम्मत मत हारिए अपितु हृदय में सोच-विचार कर अपने चैतन्य की रक्षा कीजिए अर्थात् अपने होशहवाश मत खोइए ।
हे महारानी आप यह विश्वास रखिए कि जिस प्रकार भ्रमर कमल के समीप जाकर भी अंततः मालती के प्रेम का स्मरण करके उसके समीप लौट आता है उसी प्रकार आपके प्राणेश्वर भी पदमावती – रूपी कमल के पास जाकर भी अंततः आपके समीप लौट आएंगे।
सुप्राणेश्वर रूपी स्वाति नक्षत्र के प्रति आपका जैसा दृढ़-प्रेम भाव है, उसको ध्यान में रखते हुए अपनी काम- पिपासा को वशवर्तिनी रखिए, और प्रियतम के लौटने की आशा का सहारा लेकर अपने हृदय में धैर्य धारण रखिए।
जिस प्रकार पृथ्वी आकाश के प्रेमभाव में निमग्न रहती है तो आकाश उसको वर्षाऋतु में जल से ओत-प्रोत कर देता है, उस पर स्नेह की वर्षा करता है, उसी प्रकार तुम भी अंततः स्व-पति का स्नेह प्राप्त करोगी।
इसी प्रकार तुम्हारे जीवन में पुनः वहीं वसन्तऋतु आएगी, जिसमें समस्त प्रकार के सुख-भोग होंगे, और तुम्हारे पति-रूप भ्रमर द्वारा लता – रूप तुम्हारा मकरन्द पान किया जाएगा। हे महारानी! आप अपना हृदय इस प्रकार क्यों दुखी और खट्टा कर रही हैं।
आप यह सोचकर धैर्य क्यों नहीं धरा करतीं कि ग्रीष्मऋतु में दग्ध हुए वृक्ष वसन्तऋतु के आगमन से पुनः हरे हो उठते हैं उनमें नयी नयी कोंपल फूट पड़ती हैं। यदि दस दिवस तक जल सूख भी जाता है, अर्थात् यदि आपका स्व-पति से कुछ दिनों के लिए मिलन नहीं भी हो पाता है, तो क्या हुआ, क्योंकि बाद में तो वही सरोवर और वे ही हंस होंगे अर्थात् तुम्हारा मिलन होकर ही रहेगा।
हे महारानी आप इस तथ्य को भी विस्मृत मत कीजिए कि वियोग के पश्चात मिलन की आशा बहुत अधिक बढ़ जाया करती है और बिछुड़े हुए पति बड़े ही उल्लासपूर्वक मिलते और आलिंगन करते हैं वे ही आर्द्रा नक्षत्र की घोर वर्षा में पल्लवित पुष्पित हुआ करते हैं उन्हीं पर पति- प्रेम की घोर वर्षा हुआ करती है। पाट महादेड़ हिएं पाट महादेड़ हिएं
विशेष : उक्त पद में रूपक, अर्थान्तरन्यास तथा उपमा अलंकार हैं।
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