प्रमुद – करन, सब भय-हरन | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |
प्रमुद – करन, सब भय-हरन, नाम चंडिका जासु ।
रचौं चरित्र विचित्र तुअ, करौ सुबुद्धि प्रकासु ॥ 5 ॥
प्रमुद – करन
प्रसंग : प्रस्तुत पद्य दशम गुरु गोविंद सिंह विरचित काव्य ‘ चण्डी-चरित्र’ में से लिया गया है। अपने इस काव्य में कवि ने अनेक नाम-रूपों वाली चण्डी देवी के समस्त कार्यों, व्यवहारों और चरित्र का व्यापक एवं काव्यमय चित्रण किया है। माँ चण्डी को भव-भय-हारिणी और आनन्दकारिणी बताते हुए कवि कह रहा है
व्याख्या : जिस आद्या शक्ति देवी का नाम चण्डी है, वह अपने भक्तों के सुख-शान्ति और आनन्द का कारण है। अर्थात् उसका चरित्र और व्यवहार सभी को आनन्द प्रदान करने वाला है। वह अपने नाम और चरित्र के प्रभाव से अपने भक्तों के सब प्रकार के भय और उनके कारणों के समाप्त करने वाली है।
हे मां चण्डिके! अपनी असीम कृपा और प्रभाव से मेरी काव्य सृजनात्मक प्रतिभा का विकास कुछ इस प्रकार से, इस सीमा तक कर दो कि मैं निर्विघ्न रूप से और सफलतापूर्वक तुम्हारे अद्भुत चरित्र को प्रकाशित करने वाला काव्य-रच पाने में समर्थ हो सकूं। भाव यह है कि इस संसार का छोटा-बड़ा हर कार्य माँ चण्डी की कृपा से ही सम्भव एवं सम्पन्न हुआ करता है। अतः उसी की शरण में जाना चाहिए ।
विशेष
1. कवि ने अपनी सफलता के लिए देवी – कृपा की याचना की है।
2. देवी चण्डिका को दुख-भय-नाश और सुख – आनन्द की सर्जक कह कर स्तुति पाठ किया है।
3. रचना-प्रक्रिया परम्परागत है।
4. उल्लेख अलंकार और दोहरा (दोहा) छंद है ।
5. भाषा-शैली सहज, सरल एवं कथात्मक है।
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