Maa Mahagauri Katha: दुर्गा मां का 8वां स्वरूप हैं महागौरी, पढ़ें मां की पौराणिक कथा - Rajasthan Result

Maa Mahagauri Katha: दुर्गा मां का 8वां स्वरूप हैं महागौरी, पढ़ें मां की पौराणिक कथा

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Maa Mahagauri Katha नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। ये दुर्गा मां का आठवां स्वरूप हैं। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि मां का वर्ण गौर है। मां की उपमा शंख चंद्र और कुंद के फूल से दी जाती है।

Maa Mahagauri Katha

नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। ये दुर्गा मां का आठवां स्वरूप हैं। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि मां का वर्ण गौर है। मां की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी जाती है। मां के सभी वस्त्र और आभूषण सफेद हैं। मान्यता है कि अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी मां की आयु 8 वर्ष की मानी गई है। यही कारण है कि इन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। मां की 4 भुजाएं हैं। मां का वाहन वृषभ है। अत: मां को वृषारूढ़ा भी कहा गया है।

मां महागौरी की 4 भुजाएं हैं। मां के ऊपर वाला दाया हाथ अभय मुद्र में है। मां के नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे वाला बायां हाथ वर मुद्रा में है। मां बेहद ही शांत मुद्रा में हैं। मां भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं जिसके चलते इन्होंने बेहद कठोर तपस्या की थी। यही कारण है कि मां का शरीर इतनी कठोर तपस्या से काला पड़ गया था। फिर मां ने अपने काले रंग को गौर वर्ण का करने के लिए तपस्या की। मां की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनके वर्ण को कांतिमय बना दिया। इससे मां का रूप फिर से गौर हो गया। यही कारण है कि मां के इस रूप को महागौरी कहा जाता है।

मां महागौरी अमोघ फलदायिनी हैं। मां की पूजा करने से भक्तों कें कल्मष धुल जाते हैं। साथ ही सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं। सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से अगर महागौरी की पूजा-अर्चना, उपासना-आराधना की जाए तो यह बेहद कल्याणकारी होता है। मां की कृपा अपने भक्तों पर हमेशा ही बनी रहती है और इनकी कृपा से ही भक्तों को अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।

महागौरी

महागौरी

इस तरह मां का नाम पड़ा महागौरी

देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती का जन्म राजा हिमालय के घर हुआ था। देवी पार्वती को मात्र 8 वर्ष की उम्र में अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का आभास हो गया है और तब से ही उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी। अपनी तपस्या के दौरान माता केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं। बाद में माता केवल वायु पीकर तप करना आरंभ कर दिया। तपस्या से देवी पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ था इसलिए उनका नाम महागौरी पड़ा। इस दिन दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।

कल्याणकारी हैं मां महागौरी

माता की तपस्या की प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे गंगा स्नान करने के लिए कहा। जिस समय मां पार्वती स्नान करने गईं तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाईं और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, जो महागौरी कहलाईं। गौरी रूप में मां अपने हर भक्त का कल्याण करती हैं और उनको समस्याओं से मुक्त करती हैं। जो व्यक्ति किन्हीं कारणों से नौ दिन तक उपवास नहीं रख पाते हैं, उनके लिए नवरात्र में प्रतिपदा और अष्टमी तिथि को व्रत रखने का विधान है। इससे नौ दिन व्रत रखने के समान फल मिलता है।

ऐसा है मां का स्वरूप

देवीभागवत पुराण के अनुसार, महागौरी वर्ण पूर्ण रूप से गौर अर्थात सफेद हैं और इनके वस्त्र व आभूषण भी सफेद रंग के हैं। मां का वाहन वृषभ अर्थात बैल है। मां के दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाला हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशुल है। महागौरी के बाएं हाथ के ऊपर वाले हाथ में शिव का प्रतीक डमरू है। डमरू धारण करने के कारण इन्हें शिवा भी कहा जाता है। मां के नीचे वाला हाथ अपने भक्तों को अभय देता हुआ वरमुद्रा में है। माता का यह रूप शांत मुद्रा में ही दृष्टिगत है। इनकी पूजा करने से सभी पापों का नष्ट होता है।

भोग में मां को चढ़ाएं यह चीज

नवरात्र की अष्टमी तिथि को मां को नारियल का भोग लगाने की पंरपरा है। भोग लगाने के बाद नारियल को या तो ब्राह्मण को दे दें अन्यथा प्रशाद रूप में वितरण कर दें। जो भक्त आज के दिन कन्या पूजन करते हैं, वह हलवा-पूड़ी, सब्जी और काले चने का प्रसाद विशेष रूप से बनाया जाता है। महागौरी को गायन और संगती अतिप्रिय है। भक्तों को पूजा करते समय गुलाबी रंग के वस्त्र पहनना चाहिए। गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है। एक परिवार को प्रेम के धागों से ही गूथकर रखा जा सकता हैं, इसलिए नवरात्र की अष्टमी को गुलाबी रंग पहनना शुभ माना जाता है।

मां का ध्यान मंत्र

श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

 

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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पूजा करने से होती है सौभाग्य की प्राप्ति

जो भक्त इस दिन कन्या पूजन करते हैं, वह माता को हलवा व चना के प्रसाद का भोग लगाना चाहिए। इस दिन कन्याओं को घर पर बुलाकर उनके पैरों को धुलाकर मंत्र द्वारा पंचोपचार पूजन करना चाहिए। रोली-तिलक लगाकर और कलावा बांधकर सभी कन्याओं को हलाव, पूरी, सब्जी और चने का प्रशाद परोसें। इसके बाद उनसे आशीर्वाद लें और समार्थ्यनुसार कोई भेंट व दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। ऐसा करने से भक्त की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मां का यह रूप मोक्षदायी है इसलिए इनकी आराधना करने से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।

 

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