हुमायूं (1530–40, 1555–56) का इतिहास
हुमायूं का शाब्दिक अर्थ भाग्यशाली होता है इतिहासकारों ने माना कि बाबर का जैसा कठिन संघर्ष था उस परिस्थिति में हुमायूं के बचपन का जीवन बहुत अनुकूलता से परवरिश किया गया बाबर जब पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी के विरुद्ध संघर्ष कर रहा था युद्ध के मैदान में एक सैनिक टुकड़ी का नेतृत्व एवं हुमायूं को भी दिया गया था।
जब बाबर की मृत्यु हुई तब हुमायूं संबलपुर का जागीरदार था हुमायू के विषय में कानून ए हुमायूंनी से तथा हुमायूंनामा से जानकारी प्राप्त होती है। कानून ए हुमायुनी का लेखक खुंदमीर था जिसे हुमायू ने अमीर-ए- अखवार की उपाधि दी थी। जबकि हुमायूंनामा की रचना उसकी बहन गुलबदन बेगम ने किया था यह ग्रंथ मुख्यतः दो भागों में विभाजित है एक बाग में बाबर की चर्चा है जबकि दूसरे भाग में हुमायूं की चर्चा है।
हुमायूंनामा में शादी की रस्मों के बारे में हरम के बारे में विवरण बाबर की 9 पत्नियों की चर्चा जिसमें एक पत्नी का नाम माहम बेगम था। इसी से हुमायूं का जन्म हुआ था इसी से हिन्दाल की कामरान से लड़ते हुए मृत्यु की सूचना प्राप्त होती है |
हुमायूं के इतिहास से रानी कर्णावती के मदद मांगने और राखी भेजने का संदर्भ जुड़ा है |
इसको शेर शाह सूरी ने 1539 में गंगा नदी के किनारे चौसा के युद्ध में पराजित किया था और हुमायूं को जान बचाकर भागना पड़ा इसी दौरान गंगा नदी पार कराने में निजाम नामक भिश्ती ने हुमायूं का साथ दिया था और हुमायूं ने नदी पार करते समय निजाम से कहा था कि अगर मैं दोबारा मुगल गद्दी प्राप्त करने में सफल हुआ तो मैं तुम्हें 1 दिन का बादशाह बनाऊंगा हुमायू जब दोबारा सत्ता प्राप्त किया तो उसने निजाम को एक दिन का बादशाह बनाया और इसके नाम से चमड़े का सिक्का चलाया।
1540 में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को कन्नौज/ विलग्राम के युद्ध अंतिम रूप से पराजित किया जिसके बाद से हुमायू को हिंदुस्तान छोड़कर ईरान के शासन के पास शरण लेनी पड़ी।
1555 सुरी वंश की सत्ता कमजोर पड़ने के बाद हुमायू दोबारा मुगल शासक बनने में सफल हुआ। 1556 में दिल्ली मैं दिनपनाह के अंतर्गत शेर मंडल नामक पुस्तकालय की सीढ़ियों से पैर फिसलने के कारण, गंभीर चोट के कारण हुमायूं की मृत्यु हो गई शेर मंडल की सीढी बास की बनी थी। हुमायू ज्योतिषी में गहरी आस्था रखता था दिन के हिसाब से रंग का निर्धारण करके कपड़ा पहनता था |
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