है अमानिशा, उगलता गगन घन अन्धकार | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | राम की शक्ति पूजा |
है अमानिशा, उगलता गगन घन अन्धकार,
खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन-चार,
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल,
भूधर ज्यों ध्यानमग्न, केवल जलती मशाल।
है अमानिशा
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने राम के हृदय की उद्वेगावस्था का वर्णन किया है| ……………………..
व्याख्या – अमावस्या की अंधकारमयी रात्रि है चारों और सघन अंधकार छाया हुआ है। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो आकाश घना अंधकार उगल रहा है और अंधकार को उगल- उगलकर चारों ओर फैला रहा है। अतीत अंधकार पूर्ण वातावरण के कारण दिशाओं का ज्ञान खो गया है। भाव यह है कि घोर अंधकार के कारण यह ज्ञात नहीं हो पा रहा है कि कौन सी दिशा किस ओर है पवन का प्रवाहित होना रुक गया है।
जबकि पर्वत के पीछे सागर गंभीर अवस्था में निरंतर गरज रहा है। वह पर्वत भी जिस की चोटी पर राम और उसकी सेना पड़ाव डाले हुए थी, इतना शांत है कि मानो वह ध्यानावस्था में निश्चल बैठा हुआ है वहां पर मात्र एक मशाल ही जलती दिखाई दे रही है |
विशेष
1. कवि ने यहां ऐसी शब्द योजना का आश्रय लिया है कि भयावह प्राकृतिक पृष्ठभूमि साकार हो उठी है।
2. यह वर्णन राम की तत्कालीन मनोदशा से साम्य रखता है कवि की युक्ति है कि पर्वत भी राम की भाती शांत बैठा हुआ था|
3. पीछे गरजते हुए सागर को रावण का प्रतीक माना जा सकता है जिसके प्रकाश में कवि का इंगित यह है कि राम तो पर्वत के समान शांत बैठे हुए थे जब की रावण सागर की भाति विजयोन्माद मैं गरज रहा था|
4. गरजते हुए सागर को राम की विक्षुब्ध मनोदशा का भी प्रतीक माना जा सकता है इस अर्थ में पर्वत की तरह शांत होना राम की बाह्य दशा मानी जाएगी। है अमानिशा है अमानिशा है अमानिशा
5. इन पंक्तियों में निराला की संघर्षशीलता कि और भी परोक्ष संकेत मिलता है महादेवी वर्मा के अनुसार ‘अन्याय जिधर है शक्ति’ इसका ज्ञान होते हुए भी निराला ने हारना स्वीकार नहीं किया अविराम संघर्ष और निरंतर विरोध का सामना करने से जो एक आत्मनिष्ठा उत्पन्न हो गई थी उसी का परिचय हम उनकी इस दृष्टि में पाते हैं ‘जलती मशाल ’ निराला की उसी तृप्त भावना का प्रतीक है |
6. जिस विशाल चित्रफलक पर प्रसंग की योजना की गई है तथा जिस उदात्त और विराट चित्र वाली शैली का प्रयोग किया गया है वह वस्तुतः महाकाव्य की गरिमा के अनुकूल है निराशा और खिन्नता की मनः स्थिति चित्रित करने के लिए यह पृष्ठभूमि अत्यंत समीचीन है |
7. भूधर ध्यानमग्न के रूप में कवि ने समाधिस्थ साधक का सुंदर बिंब प्रस्तुत किया है।
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