अरे अरे तालाब के आस-पास | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | गजानन माधव मुक्तिबोध |
अरे अरे तालाब के
अरे ! अरे !! तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्ष चमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानक वृक्षों के शीशे पर नाच-नाच उठती हैं बिजलियाँ, शाखाएँ, डालियाँ झूमकर झपटकर चीख, एक दूसरे पर पटकती हैं सिर कि अकस्मात् – वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एक तिलस्मी खोह का शिला-द्वार खुलता है धड़ से
घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी अंतराल – विवर के तम में लाल-लाल कुहरा, कुहरे में, सामने, रक्तालोक-स्नात पुरुष एक, रहस्य साक्षात् !!
अरे अरे तालाब के आस-पास
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ मुक्तिबोध की ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ शीर्षक काव्य-संकलन की ‘अंधेरे में’ शीर्षक कविता से उद्धृत की गई हैं। पूर्ववर्ती पंक्तियों में उठाई गई फंतासी को आगे बढ़ाते हुए कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में भी उस स्थिति का अंकन किया है जिसमें उसकी अस्मिता बड़ी तेजी से उभरा करती है। इन पंक्तियों में कवि ने बड़े ही रहस्य रोमांचपूर्ण वातावरण की सृष्टि की है।
व्याख्या : कवि आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहता है – अरे ! यह क्या ? तालाब के आस-पास छाए गहरे अन्धेरे में घने-गहरे, हरे-हरे जंगली वृक्ष एकाएक चकम उठते हैं। उन वृक्षों की चोटियों पर जैसे क्षणिक आलोक देने वाली बिजलियाँ रह-रहकर नाच उठती है। वृक्षों की शाखायें जैसे तेज आँधी के आवेग से घूमती हुई, जैसे परस्पर झपटती हुई अचानक एक-दूसरे पर अपने सिर से पटकने लगी है। तभी उन वृक्षों के गहरे अंधकार में छिपी हुई एक तिलस्म गुफा का पत्थरों से बना द्वार घड़-घड़ाकर सहसा खुल जाता है।
उसमें एक सजीव – सी लाल मशाल धंसती हुई दिखाई देने लगती है। उस गुफा के छेद या भीतरी भाग में लाल-लाल कुहरा छा रहा है। उस कुहरे में खून के प्रकाश से नहाया हुआ एक पुरुष सहसा दिखाई देता है। इस प्रकार सारा वातावरण और उसमें वह रक्त रंजित पुरुष सभी कुछ एक अजीब से रहस्य को मूतिमान कर रहा है। भाव यह है कि कवि को ऐसे अचानक ही चमक उठें हैं उन वृक्षों की चोटियों पर बिजली नृत्य करने लगती है-बिजली क्रान्ति, प्रकाश या आशा का प्रतीक है।
ऐसा भयंकर जोर झंझावत चलने लगा है कि वृक्षों की डालियाँ झूमती हुई झपट-झपट करके, से चीखती हुई एक-दूसरे पर सिर पटक रही हैं। तभी अचानक ही वृक्षों के अन्धकार में छिपी हुई किसी जादुई गुफा का द्वार धड़ाके से खुल उठता है। इस जादुई गुफा के अन्धकारपूर्ण गहवर में लाल-लाल मशालें जलने लगती हैं। इस लाल कुहरे में मुझे लाल प्रकाश में स्नात एक रहस्यमय व्यक्ति का साक्षात्कार होने लगता है- मुझे फिर वैसी ही रहस्यमयी एक आकृति दिखाई देने लगती है, जैसी कि पीछे देखने का उल्लेख कर चुका हूँ। अरे अरे तालाब के अरे अरे तालाब के अरे अरे तालाब के
विशेष
1. “कवि ने वस्तुतः अपने आस-पास चलने वाली हड़ताली वातावरण, उसमें हड़ताली वातावरण, उसमें हड़ताली श्रमिकों पर होने वाले अत्याचार, खून-खराबा और इस सबके कारण बनने वाले वातावरण की गंभीर रहस्यमयता का अपनी अन्तश्चेतना में पुनरीक्षण किया है। इस दृष्टि से (वातावरण का गम्भीर अन्धकार, वृक्ष डालियों का आपस में टकराना, बिजलियाँ चमकना, तिलस्मी खोह का शिला-द्वार, लाल मशाल, लाल कुहरा, रक्तलोक – स्नात) आदि सभी प्रतीक हैं कि जिन्हें साम्यवादी विचारधारा और उससे अन्वित श्रमिक आन्दोलनों की देन कहा जा सकता है। ”
2. मुक्तिबोध की भाषा सामर्थ्य की प्रशंसा करते हुए डॉक्टर राजनारायण मौर्य ने लिखा है:— “मुक्तिबोध शब्दों द्वारा एक ऐसा वातावरण तैयार कर देते हैं कि पाठक न जाने कब अपने वातावरण का चोला उतार कर कविता के वातावरण में प्रवेश कर जाता है और वह शब्दों के साथ चलता जाता है, तब तक जब तक शब्द अपना वातावरण स्वयं न समेट लें | रहस्य, रोमांच, जिज्ञासा आदि के वातावरण को कवि अत्यन्त साधारण शब्दों में नर्मित कर देता है ” ।
3. प्रस्तुत पंक्तियाँ रहस्य रोमांच की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं
4. बिम्ब योजना – श्रव्य एवं दृश्य बिम्बों की योजना की गई है।
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