आधुनिक सुधार आंदोलन: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य - Rajasthan Result

आधुनिक सुधार आंदोलन: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

अध्ययन का विषय क्षेत्रः- भारत में आधुनिक सुधार आंदोलन सामाजिक चुनौतियों से निपटने और पूर्व पश्चिम की टकराहट के फल स्वरुप उभरे और भारतीय चिंतकों को अपने धर्म को वैज्ञानिक और आलोचनात्मक दृष्टि से देखने के लिए विवश किया। विभिन्न सुधारको में सुधारों को लेकर अस्पष्टता के कारण वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। यह तथ्य में और अधिक अध्ययन और शोध के लिए प्रेरित करता है जब तक यह अति प्राचीन काल से भारत के नित्य सत्य की सतत् खोज के साथ सामंजस्य में रहे तब तक इस प्रकार में अध्ययन का विषय क्षेत्र वास्तव में विद्वान है।

प्रस्तुत अध्ययन उन तीन प्रमुख धार्मिक सुधार आंदोलनों का परीक्षण करता है जिन्होंने समकालीन भारत की सभी जातियों और धर्मों के लोगों को प्रभावित किया। वस्तुतः धार्मिक गुरुओं और देवदूतो जिन्होंने आज के भारत के धार्मिक सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया पर शोध और अध्ययन की व्यापक संभावना विद्वान है और यह धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में अत्यंत प्रशासनिक है।

भारत और पश्चिम: सांस्कृतिक आदान-प्रदान

जहां तक ऐतिहासिक साक्ष्य हैं उत्तरी यूरोप के देशों के आर्यों ने भारत पर पहला मुख्य आक्रमण किया था अनुमानित व्यय अवश्य 15 से ईसा पूर्व के आसपास पश्चिमोत्तर सीमांत क्षेत्र से आए होंगे। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में पुरातात्विक खोजों के अनुसार उस समय भारत पहले से ही जीवन स्तर और शहरी जीवन शैली और सुविधाओं की दृष्टि से अत्यंत विकसित था सिंधु सभ्यता के धार्मिक लक्षण आधुनिक हिंदू धर्म के पूर्वज माने जाते हैं|

326 ईसा पूर्व में सिकंदर महान ने पहले ही भारत में प्रवेश कर लिया था और पंजाब तथा सिंधु घाटी के राज्यों को जीत लिया था। 622 ईसवी से अरबों का व्यापार पर नियंत्रण हो गया था वह पश्चिमी तट के समुंद्र के मालिक थे और उन्होंने फारस की खाड़ी से भारत और चीन को जाने वाली समुद्र तटीय मार्ग को अपने नियंत्रण में कर लिया था। 15 वीं सदी के अंत तक भारत का पश्चिम से संपर्क केवल समुद्री व्यापार और उसके पश्चिमी भाग तक सीमित था। आज भारत में दुनिया के सभी प्रमुख नस्लों के लोग रहते हैं नीग्रिटो, ऑस्ट्रोलायड़, मंगोलायड़, कोकासायड़ और प्रभुत्वशाली द्रविड़ियन और आर्यन|

इन सभी नस्लों के लोग भारत को कभी पूरी तरह से जीत नहीं पाए वह या तो प्रभुत्वशाली संस्कृति में घुल मिल गए अथवा समाप्त हो गए इससे भारत विभिन्न संस्कृतियों और नस्लों की मिश्रित संस्कृति वाला देश हो गया।

 

पश्चिम का प्रभाव

1498 में वास्को डी गामा भारत के लिए समुद्री यात्रा के माध्यम से रवाना हुआ और दक्षिण भारत में कालीकट के तट पर पहुंचा। उस के आगमन के साथ ही भारत के पश्चिम से संपर्क ने नई दिशा प्राप्त की उसके पीछे पीछे बहुत से यात्री और ईसाई धर्म प्रचारक भारत आए। इनके वृतांत 15 वीं सदी के भारत को जानने के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं 16 शब्दों में डचों ने डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की और पूर्वी भारत के तटों पर अपनी कोठियां स्थापित की। 1595 से 1601 के बीच उन्होंने 16 बार भारत की जल यात्रा की|

विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के संगम के फल स्वरुप आज भारत एक जटिल और विभाजितसमाज का प्रतिनिधित्व करता है यद्यपि अंग्रेज प्राथमिक रूप से भारत के साथ व्यापार करने आए थे और बाद में उन्होंने इसे एक औपनिवेशिक साम्राज्य बना लिया लेकिन उनके इस व्यवहार ने भारतीयों की वर्तमान नैतिक और बौद्धिक स्थिति में सुधार किया। सबसे अधिक उनकी शिक्षा व्यवस्था ने भारत की पश्चिम से भारी स्पर्धा करने का रास्ता तैयार किया |

विलियम बेंटिक भारत के गवर्नर जनरल 1828 1835 नए विद्यालयों और महाविद्यालयों में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को लागू किया और भारत के शैक्षिक और सामाजिक उत्थान की संभावना प्रस्तुत की।

पश्चिमी शिक्षा प्रणाली और 19वीं सदी के यूरोप के वैज्ञानिक विचारों ने भारतीय बुद्धिजीवियों को अपनी आस्थाओं परंपराओं और सामाजिक संस्थाओं के प्रति आलोचनात्मक होने के लिए बाध्य किया। इस प्रकार 19 वीं सदी का भारतीय नवजागरण दो स्रोतों में प्रस्फुटित हुआ पहला तर्कसंगत और लोकतांत्रिक आदर्श वाली पश्चिमी शिक्षा और दर्शन जो भारतीय शैक्षिक संस्थानों में लागू किए जा चुके थे।

भारतीयों को और अधिक उदार और व्यापक दृष्टिकोण संपन्न बनाया। दूसरे भारत के देसी बुद्धिमत्ता और अध्यात्म की खोज ने भारतीय युवाओं को अपने धर्म ग्रंथों का गंभीर अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया उन्होंने संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया और उनके मूल भावना तथा प्रचलित व्यवहार के मध्य गंभीर विसंगतियां पाई। इसने भारतीयों में अपने को प्रखर बनाने और धर्म और समाज को अपनी मूल शुद्धता में स्थापित करने के लिए नया आवेग भर दिया।

पूर्वी नवजागरण

प्राच्यवादियों की रचनाओं ने 19वीं सदी में हिंदुत्व के नवजागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया उनमें से सबसे उल्लेखनीय थे। अंक्वैटील दु पैरो, विलियम जोन्स, चाल्स विल्किन्सन और हेनरी कॉलब्रुक| उन्होंने संस्कृत धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया और उन्हें अंग्रेजी में अनूदित करने लगे यहीं से तथाकथित पूर्वी नवजागरण का आरंभ होता है। सर विलियम जॉन्स अपनी भाषा ही प्रतिभा के लिए मशहूर थे यह 28 भाषाएं जानते थे।

उन्होंने भारतीय धर्म ग्रंथों की गहरी जांच पड़ताल आरंभ की और हितोपदेश एक आदर्श समाज के दंत कथा और कहानियों का संग्रह का अंग्रेजी अनुवाद किया उन्होंने कालिदास के नाटक शकुंतला का भी अनुवाद किया जो इतना लोकप्रिय हुआ कि बहुत से लोग उसकी तुलना शेक्सपियर की रचनाओं से करने लगे ।

जोन्स की अन्य उपलब्धियां थी 1784 में बंगाल में एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना इसने भारतीय संस्कृति और धर्म का ध्यान को प्रोत्साहित किया इसके बाद कॉल ग्रुप का नाम आता है जो बाद में प्राच्यवादियों में सर्वश्रेष्ठ के रूप में जाने गए | उन्होंने एशियाई सभ्यता की पूंजी की खोज की और इसकी संस्कृति के अध्ययन को प्रोत्साहित किया |

उन्होंने जाति व्यवस्था की पुस्तक किया और व्यवहारिक रूप में अंतरों की खोज की वह वेदों की विषय वस्तु का विश्लेषण करने वाले और उन को व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करने वाले पहले व्यक्ति थे। उनकी सबसे महत्वपूर्ण खोज यह थी कि वेद ईश्वर की एकता की बात करते हैं 1840 में उन्होंने एसेज का संपादन किया ।

एच.एच. विल्सन ने रिलिजियस सेकट्स की रचना 1828 में कीऔर विष्णु पुराण पर 1840 में लिखा मैक्स मूलर ने दे दो विशेष रुप से ऋग्वेद के अनुवाद पर 30 साल तक काम किया। हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर और दी सेक्रेड बुक अप ईस्ट जैसे ग्रंथों के माध्यम से उन्होंने प्राच्यवादी अध्ययन में बहुमूल्य योगदान दिया।

 

ईसाइयत और हिन्दुत्व: पारस्परिक धार्मिक व्यवहार

आरंभिक ईसाइयत भारतीय समाज में घुली मिली थी और देसी धर्म के रूप में विकसित हुई थी तथापि ईसाइयत और हिंदुत्व में कोई सार्थक और गैरी पारस्परिकता नहीं थी किंतु वे शांतिपूर्ण सह अस्तित्व में रहते थे।

17 मई 1964 को सभी ईसाइयों में पूर्व गृह और अज्ञानता को समाप्त करने और सभी अन्य धर्मावलंबियों के साथ सफल सकारात्मक संपर्क स्थापित करने के लक्ष्य से एक नया सचिवालय गठित किया गया।

दूसरे धर्मों के अनुयायियों के साथ संवाद पूर्वक विवेक और प्रेम से रहने तथा ईसाई आस्था और जीवन के साक्षी बने रहने उनसे मिली आध्यात्मिक और नैतिक गुणों के साथ ही साथ उनके समाज और संस्कृतियों के मूल्यों की रक्षा और प्रोत्साहन करने के उपदेश के कानूनी आदेश जारी किया गया |

अंतर्धार्मिक प्रभाव

बीसवीं सदी में मिशनरी से सामना

पश्चिम के मिशनरियों के पहुंचने के साथ भारतीय चर्च में नई दिशा पकड़ ली यह वास्कोडिगामा था जिसने भारत की जल यात्रा की और यूरोपीय मिशनरियों के लिए भारत आने का मार्ग प्रशस्त किया | रोवर्तों दे नोबिलीट्ट अपनाया। उसके धर्म शास्त्र ने ईसा को गुरु मानने की अवधारणा की ओर रुख किया उसका समाया तक सिद्धांत हिंदू धार्मिक मूल्यों के प्रति खंडनात्मक आवश्यक था किंतु कभी आलोचनात्मक नहीं था |

19वीं सदी में ईसाई मिशनरियों ने भारत के बौद्धिक नवजागरण का भी काम किया विलियम कैरे जो 11 नवंबर 1793 में कोलकाता पहुंचे ने एक बड़ा ही सराहनीय कार्य आरंभ किया वार्ड और जोशुआ मार्समैन के साथ जिसे सेरंपोरे त्रयी के नाम से जाना गया उन्होंने पश्चिमी और ईसाई सांस्कृतिक से आदान-प्रदान के लिए बंगाल के सेरंपोरे में एक केंद्र की स्थापना की | इतने पुणे पूर्व और पश्चिम के मिलन का अवसर प्रदान किया मिशनरियों की सेवाओं को संज्ञान में लेते हुए अंग्रेजी सरकार ने ऐसी मिशनरियों जिसने भारतीय नवजागरण में सकारात्मक योगदान दिया की बड़ी प्रशंसा की और उन्हें अपना सहयोगी बताया |

पश्चिम में प्रभाव और प्रति फलित भारतीय प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति को नव जागृत भारत में खोजा जा सकता है हिंदू धर्म और समाज ने बहुत से सुधारो और अनुरूप सामाजिक व्यवहारों को प्रस्तुत किया ब्रह्म समाज आर्य समाज और रामकृष्ण मिशन आधुनिक भारत के उल्लेखनीय धार्मिक सुधार आंदोलन थे।

इसे भी पढ़े👇

 

आधुनिक सुधार आंदोलन :- अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। और हमारे फेसबुक पेज को फॉलो करें। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरूर लिखे ।। धन्यवाद 🙏 ।।

आधुनिक सुधार आंदोलन, आधुनिक सुधार आंदोलन, आधुनिक सुधार आंदोलन

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!