आर्य समाज : राष्ट्रवादी सुधार आन्दोलन | Arya Samaj
आर्य समाज, “ आर्यो का समाज” अक्षरश: श्रेष्ठ लोगों का समाज | एक आदर्श रूप हिंदू सुधार आंदोलन था जिसकी स्थापना 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी दयानंद सरस्वती जिनका जन्म 1824 में हुआ वह मृत्यु 1883 अजमेर राजस्थान में हुई जो आधुनिक भारत के सर्वाधिक क्रांतिकारी धर्म सुधारक थे |
दयानंद सरस्वती ने “वेदों की ओर लौटो” के नारे के साथ कई महत्वपूर्ण सुधारों को आरंभ किया उनका जन्म 12 फरवरी 1824 में गुजरात के एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका वास्तविक नाम मूल शंकर तिवारी था उन्हें मूर्ति पूजा जाती और बाल विवाह से अत्यधिक चिढ़ थी।
दयानंद सरस्वती ने 1845 में अपना घर परिवार त्याग दिया 1860 में हुए गुरु स्वामी विरजानंद सरस्वती जो वेदों के ज्ञाता थे और अनुशासित भी से मिले मूल शंकर ने उसके मार्गदर्शन में कठोर प्रशिक्षण लिया उन्होंने इन्हें दयानंद नाम दिया। प्रशिक्षण के अंत में दयानंद ने गुरु दक्षिणा देनी चाहिए तो उनके गुरु ने इनसे इंकार कर दिया और इसके बदले में उन्हें वैदिक हिंदुत्व के पुनरुत्थान के लिए संपूर्ण जीवन लगाने का वचन लिया।
दयानंद का वेदों की ओर लौटो
दयानंद सन्यासी वेदों की अमोघ सत्यता में विश्वास करते थे उन्होंने वेदों की विशिष्ट व्याख्या की वे न केवल वेदों के पूर्णतावाद के समर्थक थे बल्कि गतिशील यथार्थवाद के दर्शन को भी स्वीकार करते थे उनके अनुसार वेदों में सभी प्रकार के ज्ञानो और विज्ञानों के बीज निहित है। उनकी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश अर्थात सत्य का प्रकाश मैं उनके प्रमुख विचार वेदों और अन्य धर्मों की व्याख्याए में उपस्थित हैं।
वैदिक प्रतिपादन अधिकांशतः ऋग्वेद से लिए गए हैं यह प्रतिपादन दयानंद के धार्मिक और सामाजिक सुधार कार्यक्रमों संबंधित सोच और लक्ष्य को प्रतिबंधित करते हैं।
वह मूर्ति पूजा के विरोधी थे उन्होंने छात्रों से संध्या वंदन अर्थात शाम में वेदों के मंत्रोच्चार के साथ ध्यानात्मक प्रार्थना और दिन में दो बार अग्निहोत्र अर्थात यज्ञ और हवन में भागीदारी करने के लिए कहा। गैर ब्राह्मणों को भी संस्कृत के अध्ययन की छूट दी उनके अनुसार वेदों की सत्ता सर्वोच्च है और यह हिंदू समाज के पुनरुत्थान का रास्ता तैयार करेगी |
आनंद सरस्वती ने पूरे देश की यात्रा करके जाति व्यवस्था मूर्ति पूजा और बाल विवाह का खंडन किया | उनके धर्म शास्त्र में प्रौद्योगिकी और विज्ञान की उन्नति का स्वागत किया युवाओं में वैदिक मूल्य और धर्म का प्रचार और संचार करने के लिए उन्होंने पब्लिक स्कूलों के समानांतर वैदिक स्कूलों की स्थापना के साथ बहुत से सुधारों को आरंभ किया उन्होंने कर्म और संसार के सिद्धांत पर बल दिया और ब्रह्मचर्य और सन्यास के आदर्शों की सराहना की |
जैसा कि सत्यार्थ प्रकाश से स्पष्ट होता है दयानंद सरस्वती राजा राममोहन राय के सार्वभौमिकतावाद के विपरीत अन्य धर्म विशेष रूप से इस्लाम और ईसाइयत के प्रबल आलोचक थे | उनके अनुसार संपूर्ण विश्व वेदवाद को स्वीकार करें | उनसे प्रेरित हिंदुत्व आंदोलन उनकी विचारधारा और वेदों की अमोघता को स्वीकार करता है भारत निवारण संस्कार विधि, रतन माला, वेदवाद से उनकी प्रमुख रचनाएं हैं अपनी रचना और वेदों के प्रकाशन के लिए उन्होंने भारतीय शहर अजमेर में परोपकारिणी सभा की स्थापना की थी |
आर्य समाज की स्थापना
वेदों की ओर लौटो के नारे के साथ साथ दयानंद सरस्वती ने कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्वीकार किया और ब्रह्मचर्य और सन्यास के आदर्शों पर जोर दिया उनकी प्रसिद्ध पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश 1875 में आर्य समाज की स्थापना और आगे के संगठन के विकास के मूल नियमों को प्रस्तुत करती है। अन्य धर्मों की असत्यता को प्रदर्शित करने वाला और वेदों की शुद्धता और वैज्ञानिकता को दिखाने वाला या एक क्रांतिकारी आंदोलन था| आर्य समाज में मूर्ति पूजा, पशु बलि, तीर्थ यात्रा, जाति व्यवस्था, बाल विवाह इत्यादि का खंडन किया और सार्वभौम धर्म संप्रदाय होने का दावा किया|
आर्य समाज के नियमों की व्याख्या
- ब्रह्म यज्ञ ( वेदाध्ययन और ध्यान)
- देव यज्ञ हवन (जिसमें घी और अन्य पदार्थ होम किए जाते हैं)
- सामाजिक सेवा (भिक्षुओं और दरिद्रों को भोजन देना)
- गायत्री मंत्र का जाप ध्यान से पूर्व शुद्धिकरण की क्रियाएं|
- वैदिक कर्मकांडो के अनुसार आहुतियां |
आर्य समाज ने देश-विदेश में विद्यालयों और मिशनरी संस्थाओं की स्थापना की समाज तेजी से फैलने लगा आज पूरी दुनिया में आर्य समाज की शाखाएं चल रही है |
आर्य समाज के विश्वास और सिद्धांत
आर्य समाज की अवधारणाएं 10 सिद्धांतों में समाहित है :-
ईश्वर सभी विज्ञान और इसके द्वारा ज्ञेय संपूर्ण वस्तुएं जगत का प्राथमिक स्रोत हैं।
ईश्वर सत चित आनंद है निराकार, सर्वशक्तिमान, न्याय संगत, दयालु, अजन्मा, अनंत चुनौतियो से परे, अनादि, अतुलनीय सभी का मालिक, अमर, अभय, पवित्र ब्रह्मांड का स्रष्टा है । केवल उसी की पूजा की जा सकती है ।
वेद सच्चे ज्ञान के धर्म ग्रंथ है यह सभी आर्यों का कर्तव्य है कि वे उनका ध्यान करें अध्ययन करते हुए सुने और दूसरों को सुनाएं |
सभी व्यक्तियों को असत्य को त्यागने और सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए ।
सभी व्यवहार धर्म के अनुकूल उचित और अनुचित का विचार करके ही करनी चाहिए |
आर्य समाज का मूल लक्ष्य है सबकी भलाई करना सबका सामाजिक भौतिक और आध्यात्मिक कल्याण करना ।
सभी व्यक्तियों के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करना चाहिए और उनकी योग्यता का सम्मान करना चाहिए |
अज्ञानता को मिटाना और ज्ञान का प्रसार व्यक्ति का लक्ष्य होना चाहिए |
व्यक्ति को केवल अपने कल्याण तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि दूसरों के कल्याण का भी विचार करना चाहिए |
दयानंद ने पुराणों का खंडन किया यहां तक कि ब्राह्मण और उपनिषदों को भी तुच्छ ठहराया। उनका लक्ष्य था वेदों के झंडे तले सभी हिंदुओं को एक साथ लाने के लिए हिंदू मिशनरी आंदोलन चलाना उन्होंने भारत के स्वराज के लिए कर्म और संसार के सिद्धांत का समर्थन किया यद्यपि यह आंदोलन परंपरागत हिंदुओं के बीच सफल रहा लेकिन दूसरी संस्कृतियों और धर्मों के सार्वभौमिक सोच के प्रति असहिष्णु था इसलिए इसे एक अतिवादी आंदोलन कहकर इसकी आलोचना की गई |
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