कार्ल मार्क्स का परिचय | कार्ल मार्क्स का साहित्य चिन्तन - Rajasthan Result

कार्ल मार्क्स का परिचय | कार्ल मार्क्स का साहित्य चिन्तन

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

कार्ल मार्क्स का परिचय

कार्ल मार्क्स का परिचय

“जिस तरह डार्विन ने प्राणी जगत के विकास के सिद्धांत का आविष्कार किया था उसी प्रकार मार्क्स ने मानव इतिहास के विकास के सिद्धांत का आविष्कार किया था। अर्थात् राजनीति, विज्ञान, कला, धर्म या किसी भी दूसरे विषय पर ध्यान देने से पहले मनुष्य को रोटी, कपड़ा और मकान चाहिये। इसलिए जीवन की भौतिक आवश्यकताओं का उत्पादन और आर्थिक विकास की तत्कालीन अवस्था वह नींव है

जिस पर राष्ट्रीय संस्थाएं, कानूनी व्यवस्थाएं, कला और लोगों के धार्मिक विचार बनाये गये हैं| अत: उनकी व्याख्या को उन्हीं पर आधारित करना होगा।” एंजेल्स का यह कथन कुछ ही शब्दों में र्स के व्यक्तित्व और कृतित्व का परिचय दे देता है ।

वैज्ञानिक समाजवाद जो कि विज्ञान के आधार पर और विज्ञान की तरह सिद्धांत तथा वाद दोनों को जरूरी समझता है। उसे दुनिया के सामने लाने वाले महान जर्मन चिन्तक कार्ल मार्क्स थे । मार्क्स के साहित्य चिंतन पर जानकारी से पहले उनके जीवन वृत और व्यक्तित्व पर संक्षेप में एक टिप्पणी दी जा रही है जिससे आपको उनके दृष्टिकोण को समझने में मदद मिलेगी।

पांच मई, ‘सन् 1818 को राइनलैंड (जर्मनी) के ट्रैवेज नगर में कार्ल मार्क्स का जन्म हुआ। इनके दादा यहूदी रूबी (पुरोहित) थे। पिता जर्मन वकील तथा माँ हालैंड के एक पुरोहित की बेटी थी| उनकी उस तब 6 वर्ष की रही होगी जब उनके परिवार ने यहूदी धर्म छोड़ ईसाई धर्म अपना लिया था ।

कार्ल मार्क्स की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल तथा रईस सरकारी प्रीवी काउंसलर फानवेस्टफालेन (बाद में मार्क्स ससुर) के घर में पूरी हुई । वेस्टफालेन  साहित्यानुरागी थे और उन्होंने मार्क्स पर अपने साहित्य प्रेम का गंभीर प्रभाव छोड़ा । कालान्तर में यही प्रभाव साहित्य, कला तथा दर्शन संबंधी विचारों के रूप में परिपक्व हुआ और सारी

दुनिया के सामने एक सर्वथा नई विचारधारा लेकर प्रादुर्भूत हुआ। 17 वर्ष की उम्र में कार्ल मार्क्स ने बोन विश्वविद्यालय से मैट्रिक पास किया और पिता की इच्छा के खिलाफ कानून की पढ़ाई शुरू की। सन् 1836 में उन्होंने विश्वविद्यालय बदला और बर्लिन में पढ्ने लगे | कानून भूल वे दर्शन, इतिहास, साहित्य और कला के अध्ययन वे में डूब गए।

उन्होंने लोगों से मिलना जुलना तक छोड़ दिया और केवल पुस्तकों को अपना संसार तथा संगी साथी मान लिया । वे अपने पढ़े विषयों को संक्षेप में लिखते, ग्रीक, लातिन के अनुवाद पढ़ते, दार्शनिक वादों पर विचार करते और फिर अपने विचारों को सिलसिलेवार लिखते। इस सत्र उन्होंने दर्शन की रूप रेखाओं का मसौदा तथा तीन जिल्द कविताएं लिखीं।

सन् 1837 जब उनकी उम्र केवल 19 साल थी, वे इस नतीजे पर पहुंच गए कि कांट और फिखटे के भावुक काल्पनिक दर्शन ऊलजलूल तथा बेकार है । हेगेल का दर्शन युवा मार्क्स को आकर्षक लगा । उन्होंने अपने पिता को पत्र लिखा कि – जिस विज्ञान वाद अर्थात आदर्श अर्थात् मानसिक जगत ही सत्य है, दृश्य जगत मिथ्या है, को मैं तब तक प्रिय समझता था।

उसे छोड़ मैं अब वास्तविकता में ही आदर्श तलाशने लगा हूँ | मैंने हेगेल के दर्शन को अभी तक जहाँ-तहाँ से पढ़ा है, लेकिन उसका विचित्र रूखा सा राग मुझे पसंद नहीं आया । एक बार इस समुद्र में मैं फिर से डूबना चाहता हूँ ।’ अंत में मार्क्स हेगेल के दर्शन के अध्ययन में रत हो गए | उन्होंने अपनी कविताओं तथा कहानियों की हस्तलिपियों को जला दिया । इस प्रसंग में आपकी जानकारी के लिए मार्क्स की कुछ उपलब्ध कविताओं का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है जिनसे युवा मार्क्स की प्रगतिशील सोच की झलक प्राप्त की जा सकती है।

1. संकल्प जैसी महान शक्ति को

जो कि पृथ्वी से भी विराट है

कैसे आकार दे सकेंगे शब्द

धुएं की टेढ़ी लकीरों की तरह

तैरते थे शब्द

 

2. हृदय जिन चीजों को

बहुत मजबूती से थाम लेता है

संभव नहीं अंतहीन अपनी यात्रा को जारी रखना है

और द्वन्द्व के बीच से रास्ता बनाकर आगे बढ़ते जाना है ।

जो शाश्वत है, सुन्दर है

अपने जीवन में उसे उतारना होगा जीवन के कोहरों को

विज्ञान की दृष्टि से साफ करना होगा

कला और संगीत के सौन्दर्य से

जीवन को पूर्ण बनाना होगा

3. संभव असंभव की बात बिना सोचे

आगे बढ़ते जाना है ।

संघर्ष से पीछे हटना ।

स्वीकार नहीं

इच्छा शक्ति रति जड़ पदार्थ की तरह

जिन्दा रहना स्वीकार नहीं

कष्ट और परिश्रम की धुरी पर

कोल्हू के बैल की तरह

जो लोग कंधा लगा देते हैं

धिक्कार है उन्हें

परिणाम चाहे जो हो

आशा, आकांक्षा, कर्म और अपने प्रयासों को 

ये कविताएं यह तो स्पष्ट करती ही है यदि मार्क्स ने साहित्यकार बने रहने का पथ चुना होता तो भी उन्हें विश्व स्तर पर उनकी ख्याति मिली होती जो किसी भी कालजयी रचनाकार को मिलती है । लेकिन उनका सपना तो दुनिया को बदल देने का धारदार हथियार खोजना था।

अत: वे निरंतर अध्ययन कर वैविध्यपूर्ण लेखन की राह पर चल पड़े । वे दार्शनिक वाद विवाद और चर्चाओं में खुल कर भाग लेने लगे, कानून छोड़ दर्शन पढ़ने लगे और येल विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि ली । इसके शोध प्रबंध का विषय था – ‘देमोक्रितु और एपी-कुरु के प्राकृतिक दर्शन’ |

उनकी इच्छा अध्यापन जगत से जुड़ने की थी, उन्होंने आवेदन भी किए लेकिन प्रसिया की सरकार चूंकि स्वतंत्र विचारकों को पसंद नहीं करती थी, फलत: उन्हें यह नौकरी नहीं मिली । तब मार्क्स पत्रकार बन गए और अपनी सशक्त लेखनी द्वारा प्राचीन रूढ़ियों, मिथ्या विश्वासों तथा जर्जर मान्यताओं पर प्रहार करना शुरू किया । उस समय के कुछ उदार मानसिकता वाले लोग ‘राइनिशत्जाइतुर्ड’ – नामक एक अखबार निकालते थ ।

इस अखबार में छपे मार्क्स के लेखों से प्रभावित होकर पत्र के संचालकों ने मार्क्स को संपादक पद के लिए आमंत्रित किया। सन् 1842 में 24 वर्ष की उम्र में मार्क्स ने सहर्ष पत्र के संपादन का भार संभाला और एक वर्ष अत्यन्त कुशलतापूर्वक अखबार निकाला।

लेकिन मार्क्स की मंजिल तो अभी भी उन्हें पुकार रही थी, उन्होंने संपादकी छोड़ दी । इसी वर्ष जेनी से विवाह किया और अर्थशास्त्र तथा अन्यान्य विषयों के अध्ययन में प्रवृत्त हुए । सन् 1844 तक मार्क्स पक्के समाजवादी बन गए । कोलोन से मई 1843 में लिखे गए एक पत्र में उन्होंने लिखा – “संचय और व्यापार की व्यवस्था मनुष्य जाति पर अधिकार करने और शोषण की व्यवस्था मौजूदा समाज को भीतर से बड़ी तेजी से कुतरने में लगी है, उससे भी तेज गति से जिस तेज गति से जनसंख्या बढ़ रही है । पुरानी व्यवस्था इस घाव को भर नहीं सकती क्योंकि उसके पास भरने या उत्पादन करने की शक्ति नहीं है । यह (व्यापारी व्यवस्था) तो सिर्फ भोग करना और जीना जानती है । मेरा काम यूटोपिया बनाना नहीं बल्कि वर्तमान सामाजिक राजनीतिक परिस्थितियों की आलोचना करना तथा युग के संघर्षों और आकांक्षाओं का सार निकालना है।

सन् 1843 में उन्हें फ्रांस-पुसिया वर्ष पुस्तक के संपादन का आमंत्रण मिला और ये अपनी पत्नी जेनी के साथ पेरिस चले गए । इसी पुस्तक में छपा एन्गेलस का एक लेख मार्क्स और एन्गेलस के परिचय का कारण बना । सामान्य परिचय गंभीर मित्रता में परिवर्तित हुआ और एन्गेलस आजीवन मार्क्स के मित्र और सहचिंतक ही नहीं उनके विचारों के संपूरक भी रहे ।

सन् 1844 में मार्क्स का पवित्र परिवार ग्रन्थ प्रकाशित हुआ जिसमें हेगेलवादियो को खुली चुनौती दी गई थी । इस आरंभिक लेखन में भी मार्क्स के मौलिक सिद्धांतों के इतिहास की भौतिकतावादी व्याख्या और वर्ग संघर्ष बीज रूप में मौजूद थे । मार्क्स ने कहा ‘तत्कालीन उद्योग धंधों के अध्ययन के बिना इतिहास के किसी काल को समझना असंभव है ।

जनता के हित के प्रतिनिधि न हों तो विचार समाज के विकास में भी समर्थ नहीं होंगे | विचार उत्साहित कर सकते हैं लेकिन उनका परिणाम नहीं निकल सकता | विचार वहीं तक काम करने में सफल होते हैं जहां तक वे जनहित में सहायक होते हैं अन्यथा विचार जिन उत्साह को जन्म देते हैं उन्हीं से भ्रम होने लगता है कि या आम तौर से मानवजाति के मुक्तिदाता हैं | अपने राजनीतिक विचारों के चलते मार्क्स को जर्मनी छोड़ पेरिस और पुसियन सरकार के दबाव से 1845 में ब्रसेल्स जाना पड़ा|

 

फ्रांस की दूसरी क्रांति सन् 1848 तक वे वहीं रहे और फुदोय ‘दरिद्रता दर्शन के उत्तर में अपना ग्रंथ ‘दर्शन दरिद्रता प्रस्तुत किया । विदेश में रहने वाले जर्मन मजदूरों ने सन् 1836 में जो न्यायिको की लीग कायम की थी 1840 से उसका केन्द्र लंदन बन गया। मार्क्स की तारीफ सुन लीग से जुड़े कुछ लोग उनसे मिलने सन् 1847 में ब्रेल्स आए | लीग का नाम कब तक कनूनिस्त लीग हो गया था ।

इसको पहली कांग्रेस सन् 1847 में लंदन में हुई जिसमें एनोल्स ने शिरकत की । इसी वर्ष दिसंबर में हुई दूसरी कांग्रेस में मार्क्स भी शामिल हुए । लीग की प्रेरणा से सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं पर मार्क्स ने जो गंभीर अध्ययन और चिन्तन किया उसी को उन्होंने कम्युनिस्ट लीग की ओर से आम जनता को समझ में आने लायक भाषा में साम्यवादी घोषणा के रूप में तैयार किया । कार्ल मार्क्स का परिचय

इस समय तक फरवरी 1848 के विद्रोह का बिगुल सारे यूरोप में बज चुका था । मार्क्स फ्रांस से निर्वासित होकर बेल्जियम में रह रहे थे । इस सरकार ने भी क्रांति के डर से उन्हें निकाल दिया । वे एक बार फिर पेरिस गए एन्गेलस को साथ ले राइनलैंड पहुँचे और जून 1848 में खुद संपादित करते हुए |

नोये राइनिशेल्लाइतुड (नवीन राइन काल) नामक पत्र निकाला । इस पत्र के लेखों और संपादकों के जरिए बुर्जुआजी शोषण के खात्मे और सशस्त्र क्रांति सेना के समर्थन पर जोर दिया । पत्र मुश्किल से डेढ़ वर्ष चल कर बंद हो गया । मार्क्स

को पेरिस लौटना पड़ा । 1849 में उन्हें पेरिस छोड देने का हुक्म मिला । वे लंदन चले गए  और तब से प्राय अपना पूरा जीवन वही बिताया । लंदन – वास के शुरू के कुछ महीनों में उन्होंने ‘लुई बोनापार्ट का अठारहवाँ ब्रूमिए’ पुस्तक लिखी और क्रांति प्रतिक्रांति शीर्षक से कुछ लेख न्यूयार्क ट्रिब्यून के लिए लिखे । मार्क्स ने विश्लेषण करते हुए बताया कि फरवरी – मार्च (1848) की क्रांति का असली कारण व्यापारिक मंदी था ।

लंदन प्रवास के 34 वर्ष वे रोज ब्रिटिश म्यूजियम जाते रहे और हजारों पन्ने नोट लेते रहे । इन्हीं नोटों के आधार पर उन्होंने ‘कैपिटल’ गन्ध लिखा । 1887 में 8000 पृष्ठों में कैपिटल को प्रथम खंड का जर्मन संस्करण प्रकाशित हुआ जिसमें पूंजीवादी उत्पादन का बारीकी से विश्लेषण किया गया है । इस दौरान मार्क्स और उनके परिवार को भयंकर आर्थिक दुरावस्था झेलनी पड़ी लेकिन उनके संकल्प और साहस को कोई नहीं तोड़ पाया । कार्ल मार्क्स का परिचय कार्ल मार्क्स का परिचय

कैपीटल के प्रकाशन के बाद मार्क्स का ध्यान संसार के मजदूरों के अन्तरराष्ट्रीय संगठन की ओर गया और 1864 में प्रथम इन्टरनेशनल स्थापित हुआ जिसमें पूधो के अराजकवादी अनुयायी बड़ी संख्या में शामिल हुए । 1865-67 ई० तक इन्टरनेशनल पर अराजकवादियो का दबाव रहा, 1868-70 तक मार्क्स का फिर मृतप्राय इन्टरनेशनल पर 1871 से 1872 तक पूधो के शागिर्द काबिज रहे ।

1872 में इन्टरनेशनल के महासचिव पद से इस्तीफा दे मार्क्स ने फिर से अध्ययन में मन लगाया । सन् 1875 से 1883 में अपनी मृत्यु तक वे प्रायः बीमार रहे लेकिन बीमारी की हालत में भी वे अमेरिकी और रूसी किसानों की दशा का विशेष तौर पर अध्ययन करते रहे । स्वास्थ्य सुधार के लिए वे कई स्वास्थ्यकर स्थानों पर भी जाकर रहे लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ । निरंतर संघर्ष करते इस पथिक की जीवन यात्रा 14 मार्च, 1883 को समाप्त हो गई।

उनकी मृत्यु पर उनके मित्र एगेल्स ने कहा – ‘मानव जाति के एक मस्तिष्क से, आज जितने मस्तिष्क इसके पास है, उनमें सबसे महत्वशाली मस्तिष्क से वह वंचित हो गई । मजदूर वर्ग का आंदोलन अपने रास्ते चलता रहेगा लेकिन उसका वह केंद्र बिंदु चल बसा, जिसकी ओर फ्रेंच, रूसी, अमेरिकन तथा जर्मन अपनी इच्छा से मुश्किल के समय दृष्टि केंद्रित किया करते थे और सदा ऐसी स्पष्ट दो टूक सलाह पाते थे जिसे प्रतिभा और (तत्संबंधी ज्ञान पर) पूर्ण अधिकार (रखने वाला) व्यक्ति ही दे सकता था ।

यह भी पढ़े 👇

  1. कार्ल मार्क्स का साहित्य चिन्तन :- Marx’s literary thought
  2. मार्क्सवाद का भारतीय साहित्य पर प्रभाव | कार्ल मार्क्स का साहित्य चिन्तन

कार्ल मार्क्स का परिचय कार्ल मार्क्स का परिचय

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!