गोदान में भारतीय किसानों की वेदना की अभिव्यक्ति किन रूपों में हुई है ? - Rajasthan Result

गोदान में भारतीय किसानों की वेदना की अभिव्यक्ति किन रूपों में हुई है ?

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गोदान में भारतीय किसानों की वेदना की अभिव्यक्ति – प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में संपूर्ण भारतवर्ष के किसानों के दुःख-दर्द का चित्रण नहीं किया है। उन्होंने सिर्फ उत्तर भारत में ज़मींदारी-प्रथा के भीतर रहने वाले किसानों का वर्णन किया है।

गोदान में भारतीय किसानों

ब्रिटिश भारत में अंग्रेज़ों ने कुछ हिस्सों में रैयतवारी और कुछ हिस्सों में इस्तमवारी भूमि-व -व्यवस्था लागू कर रखी थी। रैयतवारी व्यवस्था में किसान अपनी लगान सीधे अंग्रेज़ सरकार को दे देता है। इस्तमवारी व्यवस्था में लगान वसूलने का काम बिचौलिए वर्ग के रूप में ज़मींदार वसूल करते थे तथा ज़मींदार ही अंग्रेज़ों के पास लगान जमा करवाते थे।

देशी रियासतों में भूमि कर की व्यवस्था स्थानीय सामंत किया करते थे, जो अपने जागीरदारों एवं अन्य लोगों के माध्यम से लगान वसूल करते थे। उन्होंने न तो देशी रियासतों के भीतर रहने वाले किसानों का वर्णन किया है और न रैयतवारी व्यवस्था में रहने वाले किसानों को उपस्थित किया है। उनकी आरंभिक रचनाओं, विशेषकर “प्रेमाश्रय’ में तो रैयतवारी व्यवस्था का समर्थन किया गया है।

भौगोलिक दृष्टि से भी उन्होंने लखनऊ फैजाबाद, बनारस, कानपुर, गोरखपुर, प्रतापगढ़ के आसपास के किसानों को चित्रित किया है। इसलिए होरी भौगोलिक दृष्टि से संपूर्ण भारत के किसानों का प्रतिनिधि पात्र नहीं है। वह तो सिर्फ उत्तर भारत की ज़मींदारी-व्यवस्था में रहने वाले किसानों के दुःख-दर्द को वहन करता है।

“गोदान” में प्रेमचंद ने मोटे तौर से तीन तरह के किसानों का वर्णन किया है। बेलारी में कुछ ऐसे लोग रहते हैं जिनके पास अपनी ज़मीन है, वे लगान देते हैं, परंतु स्वयं उस पर खेती नहीं करते। वे अपने खेत में खेत-मज़दूरों से काम करवाते हैं। ”गोदान” के सभी धनी किसान इस श्रेणी में आते हैं।

पं.दातादीन, झिंगुरी सिंह, पटेश्वरी आदि कोई खेत में जाकर काम करता हुआ नहीं दिखाई देता। प्रेमचंद इन्हें किसान नहीं मानते। इसलिए इस वर्ग के पक्ष में वे कुछ नहीं लिखते। ये लोग ज़मींदार या कारिन्दो से मिलकर ग़रीब किसानों के शोषण में सहायक की भूमिका निभाते हैं। धनिया इन्हें “हत्यारा” कहती है।

गाँव में कुछ ऐसे लोग भी रहते हैं जिनके पास अपनी ज़मीन नहीं होती। ये दूसरों की जमीन पर खेती का काम करते हैं। दलित जातियों से संबंधित ऐसे लोग खेत-मज़दूरों की श्रेणी में आते हैं। प्रेमचंद ने बहुत सहानुभूति से इन पात्रों को उपस्थित किया है। हरखू, सिलिया और उनका परिवार इसी श्रेणी में आता है। प्रेमचंद इस वर्ग को भी किसान नहीं मानते। किसान इस वर्ग में मिल रहे हैं, उनकी ज़मीन छीनी जा रही है, इसे प्रेमचंद ने देखा है, दिखाया है, चिंता की है।

परंतु वे किसान से मज़दूर बन जाने में किसान की हेठी समझते हैं। इसलिए इस प्रक्रिया का समर्थन नहीं करते। इस वर्ग की पीड़ाओं का भी विस्तृत वर्णन प्रेमचंद नहीं करते। इनके दुःख-दर्द की ओर इशारा करके वे आगे बढ़ जाते हैं।

प्रेमचंद की दृष्टि में किसान वह है जिसके पास अपनी ज़मीन है और जिसपर वह स्वयं खेती करता है। वही ज़मींदार को लगान देता है। होरी के पास पाँच बीघा मौरूसी ज़मीन है। इस वर्ग को प्रेमचंद किसान मानते हैं। प्रेमचंद इसी वर्ग के पक्षधर लेखक हैं। ऐसे लोगों के शोषण-उत्पीड़न का वे विरोध करते हैं। अपनी इस ज़मीन को बचाए रखने के लिए यह वर्ग जो संघर्ष करता है, उस संघर्ष को लेखकीय सहानुभूति का बड़ा हिस्सा मिलता है।

“गोदान” के अंतिम पृष्ठों में प्रेमचंद ने लिखा – “हारे हुए महीप की भाँति उसने अपने को इन तीन बीघे के किले में बंद कर लिया था और उसे प्राणों की तरह बचा रहा था। फाके सहे, बदनाम हुआ, मजूरी की; पर किले को हाथ से न जाने दिया; मगर अब वह किला भी हाथ से निकला जाता था।…..कहीं से रुपए मिलने की आशा न थी। ज़मीन उसके हाथ से निकल जाएगी और उसके जीवन के बाकी दिन मजूरी करने में कटेंगे। भगवान की इच्छा।” (‘गोदान”, पृ.289) –

प्रेमचंद किसान को किसान के रूप में देखना चाहते हैं। इसी वर्ग में रहते हुए इनकी दशा सुधारने की वकालत करते हैं। होरी इसी गरीब छोटी जोत वर्ग का प्रतिनिधि पात्र है। ऐसा किसान जिसके पास पाँच-छह बीघा जमीन है, बकाया लगान का बोझ है, न उतरने वाला ऋण है, अनेक सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं से जकड़ा हुआ है, असंगठित है, असहाय है और बस खेत-मज़दूर बनने ही वाला है। प्रेमचंद इसके पक्षधर हैं।

अनेक कष्टों के बावजूद होरी की किसान बने रहने की इस जिद्दनुमा आकांक्षा को प्रेमचंद ने बहुत आदर से देखा है। यह एक किसान के अस्तित्व रक्षा का सवाल है। इस आकांक्षा के लिए होरी छोटी-मोटी बेईमानी भी करता है, यहाँ तक कि अंत में अपनी बेटी बेचने पर मजबूर हो जाता है। तब भी, वह लेखकीय सहानुभूति से वंचित नहीं होता। प्रेमचंद उसकी अनैतिकता में भी नैतिक गौरव देखते हैं और दिखाते हैं।

यह भी पढ़े :–

  1. किसान जीवन के संदर्भ में गोदान का मूल्यांकन कीजिए |
  2. गोदान उपन्यास का सारांश
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