छुटी चंडि जागे विसनु | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |
छुटी चंडि, जागे विसनु ,
करौ युद्ध कौ साजु ।
देत सबै घटि जाहिं जिहिं,
बढ़े देवतन राजु ॥10॥
छुटी चंडि जागे विसनु
प्रसंग : प्रस्तुत पद्य दशम गुरु गोविंद सिंह की रचना ‘चण्डी- चरित्र’ में से लिया गया है। इस काव्य में कवि ने पौराणिक मान्यताओं के आधार पर चण्डी देवी की कथा कही है। भगवान विष्णु की कर्ण – मैल से उत्पन्न मधु-कैटभ नामक दैत्यों के विशाल आकार प्रकार को देखकर ब्रह्मा जी घबरा गये और जगत- माता का स्मरण करने लगे। उसके प्रभाव और प्रतिक्रिया का वर्णन करते हुए कवि कह रहा है
व्याख्या : ब्रह्मा जी का ध्यानस्थ आवाहन सुनकर भगवान विष्णु की योग निद्रा भंग हो गई या नींद टूट गई और वे जागकर सजग-सचेत हो गए।
सजग-सचेत होकर वे दैत्यों का नाश करने के लिए युद्ध के साज सजाने लगे अर्थात् युद्ध की तैयारी करने लगे। युद्ध वह इस कारण करना चाहते थे कि उससे दैत्यों का नाश होकर उनकी जातिगत स्थिति घट जाए या समाप्त हो जाए। ऐसा होने पर देवताओं के राज्य का चतुर्दिक विस्तार संभव हो सके !
भाव यह है कि राक्षसी वृत्तियों का नाश करके ही देवी वृत्तियों या सत्वृत्तियों का विकास एवं विस्तार संभव हुआ करता है । सो भगवान दानवी वृत्तियों का नाश करके दैवी वृत्तियों के विकास की दिशा में हमेशा तत्पर रहा करते हैं।
विशेष
1. भगवान विष्णु की निद्रा योग-निद्रा कही जाती है। उसका भंग होना ही अवतार एवं दैत्य – विनाश है।
2. दैत्य दुष्प्रवृत्तियों के और देव सदप्रवृत्तियों के रूप में चितारे गए हैं, ऐसा हमारा मत है।
3. कथावस्तु के विस्तार का संकेत स्पष्ट है ।
4. अन्त्यानुप्रास अलंकार और दोहा छंद है।
5. भाषा-शैली सरल, सामान्य, वर्णनात्मक है।
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