ज्योति जगमगे जगत में, चंडि चमुंड प्रचंड | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |
ज्योति जगमगे जगत में, चंडि चमुंड प्रचंड ।
भुज- दंडन दंडनि-असुर, मंडनि- भुव नवखंड ॥ 3 ॥
ज्योति जगमगे जगत में
प्रसंग : प्रस्तुत पद्य कविवर, दशम गुरु गोविन्द सिंह विरचित ‘ चण्डी-चरित्र’ में से लिया गया है। माता चण्डी के एक स्वरूप चामुण्डा देवी की महिमा, शक्ति एवं कार्यों आदि का सांकेतिक वर्णन करते हुए, इस पद्य में कवि कह रहा है
व्याख्या : माँ चण्डी के चामुण्डा देवी वाले स्वरूप की प्रचण्ड ज्योति चारों ओर अपनी जगमगाहट से चमत्कारपूर्ण प्रकाश भर दे। अपनी बलिष्ठ भुजा रूपी दण्डों की भयानक मार से अन्याय-अत्याचार करने वाले असुरों को दण्ड देने वाली चामुण्डा देवी की ज्योति का प्रकाश चारों ओर के वातावरण को जगमगा दे। वह देवी अपनी ज्योति के प्रकाश से नौ खण्डों में विभाजित इस संसार को सुशोभित या जगमग कर दे।
भाव यह है कि देवी चामुण्डा असुरों का नाश करके सारे संसार को सुख शान्ति का प्रकाश प्रदान करने वाली है।
विशेष
1. चण्ड और मुण्ड नामक राक्षसों का वध करने के कारण माँ चण्डिका का एक नाम चामुण्डा देवी प्रसिद्ध है।
2. कवि ने माँ चण्डी को असुर – विनाशिनी मानकर उसकी स्तुति की है।
3. जगत्माता के रूप में देवी को सम्बोधित किया है।
4. पद्य में अनुप्रास, यमक, रूपक आदि अलंकार हैं। दोहा छंद है।
5. भाषा ओज गुण प्रधान और तत्सममयी है। शैली ओजस्वी एवं प्रवाहमयी वर्णनात्मक है।
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