त्रास कुटुंब के होइ उदास अवास | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |
त्रास कुटुंब के होइ उदास अवास कौ त्यागि बसौ बन राई |
नाम सुरथ्य मुनीसर वेष समेत समाधि समाधि लगाई।
चंडि अखंड खंडे करि कोप भई सुर-रक्षन कौं समुहाई |
बूझह जाइ तिनै तुम साध अगाध कथा किहि भांति सुनाई ॥7॥
त्रास कुटुंब के होइ उदास
प्रसंग : प्रस्तुत पद्य दशम गुरु गोविन्द सिंह विरचित ‘चण्डी- चरित्र’ नामक काव्य में से लिया गया है। अपने इस काव्य में कवि ने पौराणिक मान्यताओं के आधार पर देवी चण्डी के चरित्र का चित्रण एवं गायन किया है। सुरथ नामक राजा और समाधि नामक वैश्य ने मार्कण्डेय ऋषि के पास जाकर वह (चण्डी की) विचित्र कथा सुनाने को कहा । इस प्रकार काव्य के कथानक का चित्रण करते हुए कवि इस पद्य में कह रहा है
व्याख्या : सुरथ नामक राजा ने घने वन में प्रवेश किया। वह वहां उस समाधि नामक वैश्य के समीप पहुंचा, जो अपने परिवारजनों के अपमानजनक दुर्व्यवहारों से संत्रस्त एवं प्रपीड़ित होकर, संसार के प्रति विरक्ति की भावना से भरकर घर-बार का त्याग करके यहां घोर वन में चला आया था। यहां आकर उसने मुनीश्वरों जैसा वेश-भूषा बना लिया था और योग-साधना के मार्ग पर चलते हुए समाधि लगाने का अनवरत अभ्यास कर रहा था।
इस प्रकार वह सांसारिकता और उसके रिश्ते-नातों से ऊब कर वन में आकर रहते हुए अब समाधि के द्वारा ध्यान-धारणा के उपाय एवं अभ्यास करने लगा था। अखण्ड खण्डा धारण करने वाली चण्डिके क्रोध से भरकर जब देवता और राक्षसों में युद्ध हो रहा था, तब वह सामने आई अर्थात् उसने राक्षसों से मुठभेड़ कर उनका नाश किया और देवताओं को उनके विनाशकारी कोप से बचाया | राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य दोनों मिलकर मार्कण्डेय ऋषि के पास गए और उनसे विनती करते हुए कहा- हे महामुने! आप हमें वह अद्भुत और गम्भीर कथा सुनाइये।
अंतिम पंक्ति की व्याख्या कुछ इस प्रकार से भी की जाती है – राजा सुरथ और मुनीश्वर (वैश्य) दोनों मिलकर ऋषिवर मार्कण्डेय के पास गए और कहा कि यों तो हमें सब कुछ ज्ञात है, फिर भी जाने क्यों मन का मोह नहीं मिटता ? इस कारण आप हमें वह गम्भीर एवं अद्भुत कथा सुनाइये !
भाव यह है कि महामाया भगवती स्वयं ही सारे बंधन में बाधा करती हैं। अतः उसके अनुग्रह से ही वह छूट भी सकता है। छुटकारे के लिए यही आवश्यक है कि उसके चरित्र का श्रवण एवं पाठ करके उसे समझा जाए। उसकी गहराई में पहुंच कर ही छुटकारा पाया जा सकता है।
विशेष
1. कवि ने सांसारिका के भाव को संत्रास और समस्त उत्पीड़िनों का मूल कारण संकेतित किया है।
2. कथा का आरम्भ ‘सप्तशती’ के अनुरूप किया गया है।
3. देवासुर-संग्राम को चण्डी के प्रकाट्य का कारण बताया है।
4. राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य की अन्तर्कथाएं संकेतित हैं।
5. ‘तिनै’ पद महर्षि मार्कण्डेय की ओर संकेत करता है। अतः स्पष्ट है कि अन्तर्कथाओं के ज्ञान के अभाव में अर्थ – बोध संभव नहीं।
6. ‘समाधि’ पद में यमक अलंकार का चमत्कार दर्शनीय है। पद्य में सवैया छन्द है।
7. भाषा-शैली सहज वर्णनात्मक और अन्वय के अभाव में काफी दुर्बोध्य है।
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