देवन थाप्यौ राज, मधु-कैटभ कौं मारिकें | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |

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देवन थाप्यौ राज, मधु-कैटभ कौं मारिकें |

दीनौ सकल समाज, बैकुंठगामी हरि भये ॥12॥

देवन थाप्यौ राज

प्रसंग : प्रस्तुत पद्य दशम गुरु गोविंद सिंह की रचना ‘चण्डी- चरित्र’ के प्रथम अध्याय के अन्त से उद्धृत किया गया है। दानवों का नाश कर भगवान विष्णु ने देवताओं का राज्य स्थापित किया, इस मूलभाव को अभिव्यंजित करते हुए इस पद्य में कवि कह रहा है

व्याख्या : भगवान विष्णु ने अपने चक्र सुदर्शन से मधु[-कैटभ नामक राक्षसों का सिर काट कर उन्हें मार दिया। इस प्रकार राक्षसों का अन्त कर उन्होंने एक बार फिर देवताओं का राज्य स्थापित किया। उन देवताओं के राज को भगवान ने कृपा करके धन-धान्य आदि सभी प्रकार की सामग्रियों से परिपूरित कर दिया। उनके राज में किसी भी वस्तु का अभाव कतई नहीं रहने दिया। इसके बाद भगवान विष्णु, अपने परमधाम बैकुण्ठ चले गए।

 

भाव यह है कि जब दैवी वृत्तियों का राज हो जाता है, तब संसार में धन-धान्य आदि किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रह जाया करता ।

विशेष

1. कवि ने दैत्य- मनोवृत्तियों पर देव – मनोवृत्तियों की जीत को स्पष्टतः रेखांकित किया है।

2. दैवी वृत्तियों के विकास एवं विजय को शुभ माना एवं सम्पन्नता के प्रतीक रूप में चितारा है।

3. भगवान विष्णु के परमधाम का नाम बैकुण्ठ पौराणिक मान्यताओं के अनुरूप ही लिखा गया है ।

4. पद्य सोरठा छंद में सिरजा गया है।

5. विषम, असंगति और अनुप्रास अलंकार हैं।

6. पद्य की भाषा – शैली सरल, सामान्य धार्मिक कथावार्ता के समान कही जा सकती है।

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