बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार। कविता की संदर्भ सहित व्याख्या। गजानन माधव मुक्तिबोध। - Rajasthan Result

बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार। कविता की संदर्भ सहित व्याख्या। गजानन माधव मुक्तिबोध।

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बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब… अँधेरा सब ओर, निस्तब्ध जल, पर, भीतर से उभरती है सहसा सलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृति कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है और मुसकाता है, पहचान बताता है, किंतु, मैं हतप्रभ, नहीं वह समझ में आता। 

बाहर शहर के, पहाड़ी

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ मुक्तिबोध की ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ शीर्षक काव्य-संकलन की ‘अंधेरे में’ शीर्षक कविता से उद्धृत की गई हैं। संदर्भगत पंक्तियों में कवि ने अपने अशक्ति रूप या अस्मिता को एक अन्धकारपूर्ण तालाब से उभरते चित्रित किया है।

व्याख्या : पूर्ववर्ती पंक्तियों में वर्णित दृश्य के स्थान पर संदर्भगत पंक्तियों में एक नवीन बिम्ब की योजना करते हुए कवि चित्रित करता है कि नगर के बाहर स्थित पहाड़ी के दूसरी ओर एक तालाब है जहाँ सघन अन्धकार और स्तब्धता परिव्याप्त रहती है। चतुर्दिक घोर अन्धकार छाया होने के कारण उस तालाब का पानी भी काला प्रतीत होता है। मैं क्या देखता हूँ कि उस काले जल में कोई श्वेत वर्ण आकृति उभर रही है।

उस आकृति का कुहरीला चेहरा शनैः शनैः विराट् रूप धारण करने लगता है और मेरी ओर मुस्कराते हुए, यह भाव व्यक्त करता है कि हमारी पारस्परिक जान पहचान है। कवि कहता है कि उस आकृति को इस प्रकार मुस्कराते देखकर मैं जड़ित-चकित हो उठता हूँ और इस दुविधा में पड़ जाता हूँ कि मैं इस आकृति को क्यों नहीं पहचान पाता, जबकि यह आकृति मुझको पहचानती है। अभिप्राय यह है कि कवि अपनी अन्तरात्मा या अपने मालिक स्वरूप को बार-बार आंखें चुराता रहता है, वह उसको पहचान कर भी न पहचानने का बहाना करता रहता है। बाहर शहर के बाहर शहर के बाहर शहर के

विशेष

1. यद्यपि मुक्तिबोध के तालाब की अपेक्षा बावड़ी का प्रतीक अधिक प्रिय रहा है, तो उन्होंने तालाब के प्रतीक का अन्यत्र भी प्रयोग किया है।

2. कवि की निम्नांकित पंक्तियों में जिस श्वेत आकृति के फैलने का चित्रण किया गया है वह उनकी अस्मिता या आत्मिक स्वरूप की प्रतिच्छवि ही है। इन पंक्तियों में एक प्रकार के तिलस्मी वातावरण की सृष्टि की गई हैअंधेरा सब ओर पर भीतर से उभरती है सहसा सलिल के तम श्याम शीशों में कोई श्वेत आकृति कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है।

3. इन पंक्तियों में कवि द्वारा अपनी अन्तरात्मा से आँखें चुराते रहने के तथ्य की व्यंजना हुई है।

4. बिम्ब योजना – चाक्षुष बिम्ब है ।

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