राजस्थान की मृदा संसाधन | Soil Resources of Rajasthan
राजस्थान की मृदा :— भौतिक रासायनिक जैविक मानवीय क्रिया एवं जलवायु परिवर्तन से निर्मित भूपटल पर असंगठित कणों का आवरण मृदा कहलाता है ।
मृदा ( SOIL) शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के सोलम शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ अर्थ होता है । निर्माण के आधार पर मृदा के प्रकार निम्नलिखित हैं
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा निर्माण के आधार पर राजस्थान की मृदा को 8 भागों में विभाजित किया है।
Table of Contents
(1.) जलोढ़ मृदा/दोमट मृदा / कांप मृदा
इसका निर्माण नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ को या अवसादो के निक्षेपण या जमाव से हुआ है।
विस्तार क्षेत्र :- पूर्वी मैदानी प्रदेश (जयपुर दौसा भरतपुर करौली सवाई माधोपुर धौलपुर टोंक बांसवाड़ा प्रतापगढ़ )
घग्घर प्रदेश गंगानगर हनुमानगढ़
नदी निर्मित मैदान कोटा और बूंदी
विशेषताएं
- जलोढ़ मृदा में युवक तथा नाइट्रोजन की कमी होती है इस मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण तीव्र गति से होता है।
- इसमें कैल्शियम तथा फास्फोरस की अधिकता होती है। सर्वाधिक उपजाऊ मृदा जलोढ़ मृदा है।
- भारत में सर्वाधिक जलोढ़ मृदा का विस्तार है ।
वर्गीकरण :
A) भावर
उच्च भूमि क्षेत्र से नदियों द्वारा लाई गई कंकड़ पत्थर वाली जलोढ़ मृदा भावर कहलाती है। भारत में भावर का विस्तार शिवालिक क्षेत्र में है जिस कारण भावर को शिवालिक का जलोढ़ पंख कहा जाता है I
भावर में नदियां प्राय लुप्त हो जाती हैं ऐसी नदियों को गुप्त नदी कहा जाता है भावर सबसे कम उपजाऊ जलोढ़ मृदा है।
(B) तराई – डेल्टाई प्रदेश निम्न भूमि क्षेत्र में (भावर के दक्षिण में) पाई जाने वाली दलदली जलोढ़ मृदा तराई कहलाती है।
(C) बागर/बागड़
वह उच्च भूमि क्षेत्र जहां वर्षा जल आसानी से नहीं पहुंच पाता है परंतु बाढ़ की स्थिति में नदियों द्वारा लाई गई प्राचीन जलोढ़ मृदा बागड़ कहलाती है |
राजस्थान में बागड़ का विस्तार लूणी बेसिन में है बागड़ प्रदेश के अंतर्गत नागौर सीकर झुंझुनू जिले आते हैं।
(D) ख़ादर
वह निम्न भूमि क्षेत्र जहां नदियों का पानी आसानी से पहुंच जाता है वहां पाई जाने वाली नवीन जलोढ़ मृदा खादर कहलाती है। राजस्थान में खादर सर्वाधिक विस्तार चंबल बेसिन में है खादर सर्वाधिक उपजाऊ जलोढ़ मृदा है।
( 2) काली मृदा/ कपास मृदा/ रेगुर मृदा
निर्माणः- ज्वालामुखी क्रिया से निकले लावा के विखण्डन से हुआ है।
विस्तार क्षेत्र :- हाड़ोती का पठार – कोटा, बुदी, बारा, झालावाड़
विशेषताएं
- काली मृदा में लोहा तथा एलुमिनियम की प्रधानता होती है।
- काली मृदा के काले रंग का प्रमुख कारण लोहा तथा एलुमिनियम के टिटेनोफेरस मैग्नेटाइट योगीक है।
- काली मृदा में जल धारण क्षमता सर्वाधिक होती है इस कारण कपास के लिए सर्वाधिक उपयोगी है |
- काली मृदा स्वतः जुताई के लिए जानी जाती है अर्थात् (हल चलाने की आवश्यकता नहीं होती है)
(3) लाल मृदा/ पर्वतीय मृदा
निर्माण :- इसका निर्माण पर्वतों की ऊपरी परत के क्षरण से होता है।
विस्तार क्षेत्र अरावली पर्वतीय प्रदेश उदयपुर भीलवाड़ा चित्तौड़गढ़ राजसमंद सिरोही ।
विशेषता :- लाल मृदा के रंग का प्रमुख कारण लोहा ऑक्साइड की प्रधानता है। लाल मृदा मक्का के लिए उपयोगी है।
(4) रेतीली बलुई मृदा/ बालु रेत
निर्माण :- इसका निर्माण टेथिस सागर के अवशेष के रूप में हुआ है |
विस्तार क्षेत्र :- पश्चिमी राजस्थान
विशेषताएं :-
- राजस्थान में सर्वाधिक पाई जाने वाली मृदा है।
- इस मृदा की जल धारण क्षमता सबसे कम है।
- इस मृदा में कैल्शियम तथा फास्फोरस की प्रधानता है (दलहन के लिए उपयोगी)
(5) लवणीय मृदा/ रेह/ ऊसर/ कल्लर/ चॉपेन
इस मिट्टी का निर्माण लवणीय पदार्थों की मिलने से हुआ है राजस्थान में इसका विस्तार पश्चिमी राजस्थान में खारे पानी की झीलों के आसपास लवणीय चट्टानी क्षेत्र भूमिगत लवण के मिलने वाली क्षेत्रों में है सर्वाधिक अनुपयोगी मृदा है।
(6) लाल पीली मृदा/ भूरी मृदा
निर्माण ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों के अपक्षरण से इसका निर्माण होता है |
विस्तार क्षेत्र बनास बेसिन भीलवाड़ा, टोक, अजमेर, सवाई माधोपुर|
विशेषता लाल पीली मृदा मोटे अनाज अर्थात ज्वार के लिए उपयोगी है।
(7) लेटेराइट मृदा
निर्माण लेटराइट मृदा का उच्च तापमान तथा उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में आकस्मिक जलवायु परिवर्तन के कारण होता है।
विस्तार क्षेत्र मालाबार तट केरल कोरोमंडल तट, तमिल नाडु|
विशेषता नारियल तथा काजू के लिए उपयोगी है।
(8) पीट मृदा/ जेविक मृदा
निर्माण दलदल क्षेत्रों में जैविक पदार्थों के मिलने से इसका निर्माण होता है।
विस्तार क्षेत्र सुंदरवन डेल्टा, कच्छ का रण, अल्मोड़ा (उत्तराखंड), एलेप्पी केरल|
विशेषताएं जैविक मृदा में मैंग्रोव वनस्पति, ज्वारीय वन, अनूप वन, कच्छ वन पाए जाते हैं इनको पृथ्वी की किडनी कहा जाता है।
राजस्थान की मृदा का वेज्ञानिक वर्गीकरण
सन 1975 में अमेरिका के मृदा संरक्षण विभाग द्वारा विश्व की मृदा का एक विस्तृत एवं वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत किया जिसे वृहद मृदा वर्गीकरण योजना 1975 के नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार विश्व की मृदा को 10 श्रेणियों में विभाजित किया गया है।
- स्पीडोसोल
- माँलीसोल
- अल्टीसोल
- आक्सिसोल
- हिस्टोसोल
- वर्टीसोल
- एल्फीसोल
- इनसेप्टीसोल
- एन्टीसोल
- एरीड़ीसोल
वृहद मृदा योजना वर्गीकरण के अनुसार वैज्ञानिक दृष्टि से राजस्थान की मृदा को पांच भागों में विभाजित किया गया है :-
- एन्टीसोल (रेतीली बलई मृदा)
- एरीडीसोल ( शुष्क मृद)
- इनसेप्टीसोल (लाल मृदा)
- एल्फीसोल (जलोढ मृदा)
- वर्टीसोल (कालीमृदा)
राजस्थान में सर्वाधिक मात्रा में एंटिसोल मृदा पाई जाती है। एंटिसोल मृदा वायु द्वारा अपरदन की समस्या से सर्वाधिक ग्रसित है इस कारण इसका विकास नहीं हो सका इसलिए इसे अविकसित मृदा की श्रेणी में शामिल किया गया है |
इनसेप्टिसोल्स में एक या दो मृदा संस्तरो का निर्माण होता है इस कारण इसे अल्पविकसित मृदा की श्रेणी में रखा जाता है।
एल्फिसोल मृदा भारत में सर्वाधिक पाई जाती है यह एक विकसित मृदा का उदाहरण है इस कारण सर्वाधिक उपजाऊ है|
वर्टीसोल
इस मिट्टी दक्षिण भारत में सर्वाधिक पाई जाती है वर्टिसोल मृदा शुष्क मौसम में निर्जलीकरण के कारण ऊपरी परत में दरारे पड़ जाती है। वर्षा के मौसम में गीली तक मुलायम हो जाती है इस कारण स्वतः पुताई के लिए जानी जाती है वर्टिसोल मृदा उदासीन में रहता है जिसका PH – 7 है ।
वर्टिसोल मिट्टी में मुर्तिका खनिज, बलुआ पत्थर, माण्टमोरिल्लो नाइट की प्रधानता होती है।
एरीड़सोल मिट्टी शुष्क एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है | राजस्थान में एरीड़सोल मृदा का विस्तार चूरू, नागौर, सीकर, झुंझुनू, जोधपुर आदि जिलों में है ।
कृषि में उपयोगिता उपलब्धता प्रधानता के आधार पर राजस्थान की मृदा को 9 भागों में विभाजित किया गया है जो निम्नलिखित हैं
- लाल पीली मृदा भीलवाड़ा अजमेर टोंक सवाई माधोपुर
- लाल लोमी मृदा उदयपुर डूंगरपुर बांसवाड़ा चित्तौड़गढ़
- लाल काली मृदा चित्तौड़गढ़ कोटा बूंदी भीलवाड़ा
- भूरी रेतीली मृदा नागौर सीकर झुंझुनू जोधपुर जालौर
- भूरी दोमट मृदा जालौर पाली सिरोही
- रेतीली बलुई मृदा बीकानेर जैसलमेर गंगानगर बाड़मेर
- जलोढ़ मृदा जयपुर अलवर भरतपुर दौसा करौली धौलपुर
- मध्यम काली मृदा कोटा बूंदी बांरा झालावाड़
- लवणीय मृदा जैसलमेर बाड़मेर बीकानेर जोधपुर नागौर सीकर
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