राजस्थान लोक सेवा आयोग का गठन - Rajasthan Result

राजस्थान लोक सेवा आयोग का गठन

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राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्यों तथा अध्यक्ष की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है। अनुच्छेद 316 (1) में प्रावधान है कि लोक सेवा में आयोग में आधे ऐसे सदस्यों को नियुक्त किया जाना चाहिए जिन्होंने केन्द्रीय या राज्य सरकार के अन्तर्गत 10 वर्ष तक कार्य किया हो। शेष आधे सदस्य किसी भी अन्य क्षेत्र से हो सकते हैं। सामान्यत: आयोग के वरिष्ठ सदस्य को ही आयोग का अध्यक्ष बनाया जाता है। आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का स्तर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष होता है।

 

– विनिमय राजस्थान लोक सेवा आयोग की कार्यप्रणाली को नियमित करने हेतु राजप्रमुख द्वारा 1951 में संविधान के प्रावधानों के अन्तर्गत दो विनिमय लाये गये, ये निम्न हैं।

 

राजस्थान लोक सेवा आयोग

राजस्थान लोक सेवा आयोग (कार्यों का परिसीमन) विनिमय (1951)

 

सदस्यों का कार्यकाल

आयोग के सदस्यों का कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से 6 वर्ष की सेवा अवधि अथवा 62 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक (जो भी पहले हो) होता है। 1976 से पूर्व सदस्यों के लिए यह आयु सीमा 60 वर्ष थी।

राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा जुलाई 2007 तक भरे जाने वाले आवेदन पत्रों के लिए ऊपरी आयु सीमा पार कर चुके अभ्यर्थियों को दो वर्ष की छूट देने का प्रस्ताव कार्मिक विभाग द्वारा रखा गया था परन्तु 10 जुलाई 2007 को विधि विभाग ने कार्मिक विभाग को ऊपरी आयु सीमा बढाने से इनकार कर दिया। कार्मिक विभाग ने लोक सेवा आयोग को 25 जून 2004 को जारी की गई अधिसूचना के अनुसार 01 जनवरी 1999 को ऊपरी आयु सीमा पार कर चुके अभ्यर्थियों को दो वर्ष की छूट नहीं दिये जाने का फैसला भेजा।

 

सदस्यों की पदच्युति

राज्य के लोक सेवा आयोग को हटाने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है। आयोग के किसी सदस्य या अध्यक्ष को पद के दुरूपयोग या कदाचार के आरोप में लिप्त पाये जाते हैं तो राज्यपाल उन्हें निलम्बित कर सकता है पदमुक्त नहीं कर सकता।

राष्ट्रपति ही आयोग अध्यक्ष तथा सदस्यों को उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी पाये जाने, कोई वैतनिक नौकरी करने पर, किसी न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित किये जाने, या मानसिक एवं शारीरिक दृष्टि से कर्तव्य पालन के लिये अयोग्य पाये जाने पर पदमुक्त कर सकता हैं। संविधान की धारा 319 (डी) के प्रावधानों के तहत केन्द्र व राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्य राज्य या केन्द्र सरकार के तहत किसी भी लाभ के पद पर नहीं बैठ सकते किन्तु श्री के. एल. कमल आयोग के सदस्य रहने के पश्चात् राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति बने थे।

इसी तरह श्रीमती कांता कथूरईया को भी आयोग के सदस्य रहने के पश्चात् राजस्थान राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया।

 

सदस्यों के वेतन एवं भत्ते

आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के वेतन एवं भत्ते तथा आयोग का सम्पूर्ण व्यय राज्य की संचित निधि पर आधारित होता हैं। सेवा शर्ते राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की सेवा शर्ते राज्यपाल द्वारा विनियोजित की जाती है। नियुक्ति के पश्चात राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की सेवा शर्तों में किसी प्रकार का कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

 

आयोग का सचिवालय

राजस्थान लोक सेवा आयोग का कार्यालय अजमेर मे स्थित है। आयोग के नए भवन तथा मोनोग्राम का उद्घाटन राजस्थान के पूर्व राज्यपाल श्री अंशुमान सिंह ने 21 अक्टूबर, 2000 को किया था। आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य इसके सर्वोच्च अधिकारी होते हैं।

जो कि विभिन्न मामलों में अपना निर्णय देते हैं, किन्तु प्रशासनिक कार्यों के संचालन के लिए एक व्यापक तंत्र की आवश्यकता होती हैं। इसलिये आयोग के कार्यालय में एक सचिव (आई. ए. एस.) होता है जो कि आयोग के समस्त प्रशासकीय व वित्तिय कार्यों को संभालता है। उपसचिव, सचिव की प्रत्येक कार्य में सहायता करता है। इनके अतिरिक्त कार्यालय में सहायक सचिव, अनुभाग अधिकारी, पुस्तकालय अधिकारी तथा अन्य मंत्रालयिक कार्मिक कार्यरत हैं।

आयोग में निम्नांकित संभल या शाखाएं कार्यरत हैं

(1) प्रशासनिक संभाग

(2) परीक्षा संभाग

(3) भर्ती संभाग

(4) अनुसंधान तथा कम्प्यूटर संभाग

(5) लेखा संभाग

(6) सामान्य संभाग

(7) गोपनीय संभाग

(8) विधि संभाग

(9) स्लेट परीक्षण संभाग

(10) पुस्तकालय संभाग

(11) पत्र प्राप्ति एवं प्रेषण संभाग।

 

स्थापना के समय आयोग में 04 कर्मचारी कार्यरत थे किन्तु राज्य प्रशासन के वृहत कार्यो व दायित्वों को पूर्ण करने हेतु कर्मचारियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। आयोग के सचिवालय में लगभग 270 कर्मचारी कार्यरत हैं आयोग के कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पादित करने हेतु आयोग को आन्तरिक ढाँचे को कई संभागों तथा शाखाओं में विभक्त किया हुआ है। जिसका विवरण संगठनात्मक ढाँचे के चित्र में दिया गया है।

राजस्थान लोक सेवा आयोग

राजस्थान लोक सेवा आयोग

 

राजस्थान लोक सेवा आयोग के कार्य

संविधान की धारा 320 के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग को निम्नलिखित कार्य प्रमुख रूप से सौंपे गये हैं

 

1 राज्य सेवाओं में नियुक्ति के लिए प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित करना एवं प्रत्याशियों का चयन करना व भर्ती की रीतियों से सम्बद्ध सभी विषयों पर परामर्श देना।

2. असैनिक राजपत्रित सेवाओं और अन्य असैनिक पदों के लिए भर्ती के तरीकों के सम्बन्ध में राज्य सरकार को परामर्श देना।

3. अभ्यर्थियों की पदोन्नति, स्थानान्तरण और उनकी उपयुक्तता के बारे में अनुसरण किये जाने वाले सिद्धान्तों पर परामर्श देना।

4. भारत सरकार या राज्य सरकार की सेवा करने वाले कर्मचारियों के विरूद्ध की गई अनुशासनात्मक कार्यवाहियों के विषय में परामर्श देना।

5. राज्य कर्मचारियों के विरूद्ध की गई गैर-कानूनी कार्यवाही में खर्च के दावे के सम्बन्ध में परामर्श देना।

6. राज्यपाल द्वारा दिये गये किसी भी अन्य विषय पर परामर्श देना।

7. आयोग का सबसे महत्वपूर्ण कार्य भर्ती से सम्बन्धित है आयोग राज्य सरकार के आग्रह पर विभिन्न विभागों के कार्मिकों की भर्ती करता है तथापि कुछ विभागों तथा पदों पर भर्ती का कार्य आयोग नहीं बल्कि सम्बन्धित विभाग स्वयं या कोई समिति करती है।

विभिन्न पदों की प्रकृति, योग्यताओं तथा प्रत्याशियों की संख्या के अनुसार लिखित परीक्षा, केवल अथवा लिखित परीक्षा एवं साक्षात्कार पद्धति संयुक्त रूप से प्रयुक्त की जा सकती है। राजस्थान आयोग नियमित रूप से आवश्यकतानुसार निम्नांकित प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित करता है –

 

1. राजस्थान राज्य एवं अधीनस्थ सेवाएँ संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा।

2. उप निरीक्षक आरक्षी संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा परीक्षा

3. राजस्थान न्यायिक सेवा प्रतियोगी परीक्षा

4. जिला शिक्षा अधिकारी प्रतियोगी

5. सहायक जेलर प्रतियोगी परीक्षा

6. मोटर वाहन उप-निरीक्षक प्रतियोगी परीक्षा

7. विधि सहायक प्रतियोगी परीक्षा

8. श्रम कल्याण अधिकारी एवं श्रम निरीक्षक प्रतियोगी परीक्षा

9. शीघ्र लिपिक प्रतियोगी परीक्षा (उच्च न्यायालय)

10. तहसील राजस्व लेखाकार प्रतियोगी परीक्षा

11. कनिष्ठ लिपिक संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा

12. राजस्थान वन सेवा (सहायक ग्रेड वन संरक्षक एवं रेंजर्स ग्रेड-प्रथम) संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा

13. राजस्थान अधीनस्थ सेवाएँ परीक्षा

14. विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय शिक्षकों के व्याख्याता पद हेतु पात्रता (स्लेट) परीक्षा। आयोग द्वारा कुछ पद केवल साक्षात्कार द्वारा भी भरे जाते हैं। इनमें चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग तथा आरक्षी विधि विज्ञान प्रयोगशाला के चिकित्सक, महाविद्यालयी एवं माध्यमिक शिक्षा के व्याख्याता तथा अन्य विभागों जैसे प्राविधिक शिक्षा, अभियोजन, भूजल, गृह रक्षा एवं नागरिक सुरक्षा, राजस्थान राज्य अभिलेखागार तथा समाज कल्याण इत्यादि के पद सम्मिलित हैं।

प्रतियोगी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में आयोग, परिशोधन तथा संशोधन करता है। 2001 से राजस्थान प्रशासनिक सेवाओं में कृषि अभियांत्रिक, खनिज एवं कम्प्यूटर अभियांत्रिकी, गृह विज्ञान, डेयरी विज्ञान को आर. ए. एस. परीक्षा में अन्य विषयों की तरह ऐच्छिक विषय का दर्जा दिया गया है। अनियमित नियुक्तियाँ व सेवा नियमों की जाँच भी आयोग के दायित्वों के अन्तर्गत आती है।

आयोग राज्य सरकार की विभिन्न विभागीय पदोन्नति समितियों (डी. पी. सी.) में अध्यक्षता तथा सम्बन्धित पदोन्नति सूची को अन्तिम रूप से स्वीकृति प्रदान करता है। डी. पी. सी. के द्वारा 1995-96 में 410, 1996-97 में 357, 1997-98 में 378, 199899 में 300 व 1999-2000 में 203 पदोन्नतियाँ की गई।

आयोग द्वारा अनुशासनात्मक मामलों की अपीलों पर भी परामर्श दिया जाता है। 1995-96 में 75, 1996-97 में 57, 1997-98 में 57, 1998-99 में 101 व 1999-2000 में 92 अनुशासनात्मक मामलों पर परामर्श दिया गया है। इन कार्यों के अतिरिक्त लोक सेवा आयोग स्वयं अपनी पहल पर अनुच्छेद 320 में निर्दिष्ट कार्यों के अलावा किसी अन्य कार्य का सम्पादन तक नहीं कर सकता, जब तक कि अनुच्छेद 321 की प्रक्रिया द्वारा उसे अतिरिक्त कार्यों का दायित्व न सौंपे जाये। संविधान और विधान मण्डल ऐसे दो स्त्रोत हैं जिनसे राज्य लोक सेवा आयोग को अतिरिक्त शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।

 

आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन

यद्यपि लोक सेवा आयोग की भूमिका एक परामर्शदात्री निकाय की है परंतु अधिकांश मामलों सरकार आयोग के परामर्श को स्वीकार कर लेती है। कुछ मामलों में आयोग के परामर्श को अस्वीकार भी कर देती है। आयोग द्वारा प्रतिवर्ष तैयार की जाने वाली रिपोर्ट में समस्त मामलों का स्पष्टीकरण व पूर्ण विवरण दिया जाता है। संघ लोक सेवा आयोग का प्रतिवेदन राष्ट्रपति के माध्यम से संसद में तथा राज्य लोक सेवा आयोग का प्रतिवेदन राज्यपाल के माध्यम से राज्य विधान मंडल में प्रस्तुत की जाती है। (अनुच्छेद 323 (2)

आयोग के क्षेत्राधिकार के बाहर के मामले

निम्नलिखित मामलों में आयोग का परामर्श नहीं लिया जाता है, जैसे

(1) नई लोक सेवाओं तथा पदों का सृजन,

(2) सेवाओं तथा पदों का वर्गीकरण

(3) लोक सेवाओं की प्रथम नियुक्ति के समय वेतन का निर्धारण,

(4) सेवाओं तथा पदों की सामान्य पद्धति,

(5) वेतन निर्धारण,

(6) लोक सेवकों के प्रशिक्षण, परिवीक्षा तथा स्थायीकरण की शर्ते इत्यादि।

 

राज्य लोक सेवा आयोग की कार्यप्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन

भारत में कई राज्यों में लोक सेवा आयोगों को उतना महत्व नहीं दिया गया है जितना अपेक्षित है। कई राज्य सरकारें आयोग के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले पदों को छिनने लगी है। कई बार यह भी देखने में आया है कि नियुक्ति सम्बन्धी मामलों में सरकार आयोग की सलाह को ठुकरा देती है। वास्तव में यह एक आपत्तिजनक परम्परा है।

 

पिछले कई वर्षों में राजस्थान राज्य लोक सेवा आयोग अपनी कछुआ चाल, लेटलतीफी और मनमानी प्रकृति से पहचाना जाता था। राजस्थान लोक सेवा आयोग परीक्षा में वर्ष 1999 में 2. 25 लाख से भी अधिक प्रत्याशी प्रारम्भिक परीक्षा में सम्मिलित हुए थे जबकि इससे पूर्व वर्ष (1998) में यही आँकड़ा 125 लाख प्रत्याशियों का था। वर्ष 2007 की प्रारंभिक परीक्षा के लिए 3 लाख 6 हजार 200 अभ्यार्थियों ने आवेदन किया है। यह परीक्षा 25 नवम्बर 2007 को होगी।

परीक्षाएँ आयोजित करवाने में देर की जाती थी फिर परिणाम देर से घोषित किये जाते थे, परिणामों में विलम्ब के बाद भी विसंगतियों की भरमार होती थी। आयोग द्वारा मेरिट की न्यूनतम अंक सीमा के बारे में भी कुछ नहीं बताया जाता। सन 2003 राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा परीक्षा करीब चार वर्ष पश्चात् आयोजित की गई।

भारत के अधिकांश लोक सेवा आयोगों के पास कार्य का भारी दब रहता है। आयोग के सदस्यों पर राजनीतिक व जातीय दबाव भी काफी देखने को मिलता है। महत्वपूर्ण परीक्षाओं के प्रश्नपत्र भी परीक्षा पूर्व लीक होते रहते हैं जिससे अभ्यर्थियों को काफी मुश्किल होती है।

आर. ए. एस. परीक्षा में कई बार ज्यादातर प्रश्न किसी गाइड अथवा पासबुक विशेष से लिये जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ प्रश्न पत्रों में कुछ सवालों के या तो एक से ज्यादा उत्तर सही होते हैं या एक भी उत्तर सही नहीं होता इससे प्रश्नपत्र तैयार करने के तरीकों की विश्वसनीयता संदिग्ध कही जा सकती है।

आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में नये विषय सम्मिलित करने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। आयोग के कार्यो व क्षेत्राधिकार में विधायिका को संशोधन करने का अधिकार है। हाल के वर्षों में राज्य आयोग द्वारा किया गया कार्य गुणवत्ता में भी घटिया है। इसका मूलभूत कारण यह प्रतीत होता है कि कुछ राज्यों की यह प्रवृति होती है जिसके अनुसार वे राज्य आयोगों में निम्न स्तर के सदस्यों की राजनीतिक कारणों से भर्ती कर देते हैं। इसलिये आवश्यकता है राज्य लोक सेवा आयोगों के विषय में एक राष्ट्रीय नीति का विकास किया जाए जिससे यह सुनिश्चित किया जाए कि वे स्वतंत्रता तथा उच्च दर्जे की निपुणता से कार्य करेंगे।

प्रशासनिक सेवाओं में ज्यादातर शहरी क्षेत्र के युवा चयनित होते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्र के युवा उनसे ज्यादा योग्य होते हैं परंतु हिन्दी अंग्रेजी का ज्ञान कम होने के कारण उनका चयन नहीं हो पाता है। साक्षात्कार के समय भी आत्मविश्वास की कमी के कारण वे अपना प्रभाव साक्षात्कार समिति पर नहीं छोड़ पाते। इस समस्या से निजात पाने के लिए 16 दिसम्बर 1988 को राज्य सभा एवं विपक्षी पक्ष के अनेक सदस्यों ने यह माँग की कि परीक्षाओं का माध्यम हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषाएँ रखा जाए। वर्तमान में अभ्यर्थियों को क्षेत्रिय भाषा में परीक्षा देने का अधिकार दे दिया गया है।

 

आयोग अभ्यार्थियों की मानक उत्तर तालिकाओं को समाचार पत्रों में प्रकाशित नहीं कर सकता है ना ही मैरिट की न्यूनतम अंक सीमा के बारे में ही कुछ बताता है। अत: आयोग को मैरिट की न्यूनतम अंक सीमा विषयवार समाचार पत्रों में प्रकाशित करनी चाहिए ताकि आयोग का कार्य पारदर्शी बन सके। राजस्थान राज्य प्रशासनिक तथा अधीनस्थ सेवाओं की प्रतियोगी परीक्षाओं में राज्य में जयपुर, सीकर, अलवर, झुंझुनूं तथा सवाई माधोपुर जिलों के ही प्रत्याशी अधिक सफल रहे हैं। डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, राजसमन्द, भीलवाड़ा, वारां, चितौड़गढ और सिराही जिलों में तो अनुसूचित जनजाति के लोग बड़ी संख्या में होने के बावजूद उनका प्रतिनिधित्व नगण्य रहता है। अभी तक अनुसूचित जाति व जनजाति के तीन चौथाई से अधिक अभ्यर्थी जयपुर, दीसा, करौली व सवाईमाधोपुर के थे।

आयोग के प्रत्येक कार्य को न्यायालय में भी चुनौती दी जा सकती है। राजस्थान लोक सेवा आयोग के विरूद्ध विगत कुछ वर्षों में कई याचिकाएँ दायर की गई हैं। इससे आयोग तथा सरकार को न्यायालय के निर्देशों को मानने के लिए विवश होना पड़ता है। कई परीक्षार्थियों को यह पता ही नहीं होता कि बहु विकल्पात्मक प्रश्न पत्रों में प्रश्न की जाँच के समय ऋणात्मक अंकन प्रणाली अपनाई जाती है। कई बार परीक्षार्थी को यह भी पता नहीं होता कि मूल्यांकन कार्य में ऋणात्मक अंकन होगा या नहीं? इस प्रकार के विवाद, आयोग के कार्यों के प्रति अविश्वास उत्पन्न करते हैं।

 

कई बार आयोग में सरकार की निश्चिन्तता के अभाव में पूर्णकालिक अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो पाती। जुलाई 2006 में आयोग के पूर्णकालिक अध्यक्ष जी. एस टाक से करीब तीन महिने के लिए श्री हरनारायण मीणा ने कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्य भार ग्रहण किया। सितम्बर 2006 में श्री हरनारायण मीणा का पदभार आयोग के वरिष्ठ सदस्य सी. आर. चौधरी ने कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में ग्रहण किया। राजस्थान लोक सेवा आयोग के इतिहास में शायद यह पहली बार देखा गया है कि सितम्बर 2008 से आयोग का कार्यभार मात्र दो सदस्यों के कंधों पर ही है। दो सदस्यों से गणपूर्ति पूर्ण नहीं हो सकती थी।

दुर्भाग्य से आयोग को रोजमर्रा के कार्यों के संदर्भ में निर्णय लेने में भी बाधा आती है, क्योंकि आयोग में गणपूर्ति करने के लिए अध्यक्ष सहित तीन सदस्यों का होना अनिवार्य है। प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्ययन दल ने जो, कि संघ लोक सेवा आयोग के विषय में अध्ययन कर रहा था, इस बात की आवश्यकता पर बल दिया कि राज्य लोक सेवा आयोग के सचिवालयों के अधिकारियों में वृद्धि कर दी जानी चाहिए। राज्य लोक सेवा आयोग के अधिकारियों को कुछ समय के लिए संघ लोक सेवा आयोग के सचिवालय के साथ जोड़ दिया जाए ताकि वे अपने आप भर्ती की परिष्कृत विधियों से परिचित हो सके।

इसमें कोई शक नहीं है कि धीरे- धीरे आयोग अपनी छवि व स्थिति सुधारने का प्रयास कर रहा है। राजस्थान प्रशासनिक सेवा में महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का कमाल दिखाना शुरू कर दिया है। 1991 से 2004 तक राजस्थान प्रशासनिक सेवा में जहाँ 33 बेटियों को कामयाबी मिली, वहीं 2005 और 2006 में ही 30 स्थान महिलाओं ने हासिल किये हैं। राजस्थान प्रशासनिक सेवा के 800 अफसरों में हालांकि महिला अधिकारियों की संख्या अब भी 100 से कम है, लेकिन अगर ऐसे ही महिलाएं आगे बढती रहीं तो अगले दशक में उनकी संख्या तिगुनी हो जायेगी, जो कि सकारात्मक परिवर्तन का सूचक है।

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