राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग -

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग

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राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग, एक संवैधानिक निकाय है। संविधान के अनुच्छेद- 338 में यह प्रावधान किया गया है कि अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए वर्णित संवैधानिक रक्षापायों के संबंध में जांच करने तथा राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देने के लिए एक विशेष अधिकारी होगा।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति

इस प्रावधान के अनुसरण में भारत सरकार ने संविधान प्रवर्तन के साथ ही इन वर्गों के विशेष अधिकारी (आयुक्त) तथा क्षेत्रीय कार्यालयों की स्थापना की। कालान्तर में संसद में तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयुक्त के द्वारा बार बार यह मांग की गई कि इस कार्यालय को एक सदस्यीय आयुक्त के बजाए बहु सदस्यीय बनाया जाए। इसी क्रम में अनुच्छेद- 338 में संशोधन करने हेतु 48 वाँ संविधान संशोधन प्रस्तुत किया गया।

यह संशोधन पारित न हो सका किन्तु 1 जुलाई 1978 को गृह मंत्रालय के आदेश द्वारा एक अध्यक्ष तथा चार सदस्यों से युक्त आयोग के गठन का निर्णय लिया गया, अतः अगस्त, 1978 में श्री भोला पासवान शास्त्री की अध्यक्षता में प्रथम “अनुसूचित जाति एंव अनुसूचित जनजाति आयोग” गठित हुआ।

इस समय आयोग को पिछड़ी जातियों के कार्य भी सौंपे गए थे। 1 सितम्बर, 1987 को कल्याण मंत्रालय के आदेशों द्वारा इस आयोग का नाम “राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग” किया गया।

सन् 1990 में पारित संविधान के 65वें संशोधन के माध्यम से “राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग” के स्वरूप, कार्यों तथा शक्तियों का वर्णन कर दिया गया है। यह संशोधन (अनु. 338 ) 8जून, 1990 को अधिसूचित किया गया तथा 3 नवम्बर, 1990 को तत्सम्बन्धी नियम प्रकाशित 65 वें संविधान संशोधन के पश्चात् 12 मार्च, 1992 को श्री रामधन की अध्यक्षता में नया आयोग गठित हुआ। संगठन

 

(i) संगठन

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्य होते हैं जिनमें एक सदस्य महिला होती है। आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति की मुहर तथा हस्ताक्षर द्वारा की जाती है।

यदि आयोग का अध्यक्ष अनुसूचित जाति का हो तो उपाध्यक्ष अनुसूचित जनजाति का होता है अथवा इसके विपरित स्थिति रखी जाती है। आयोग के अध्यक्ष को पद से हटाने हेतु कदाचार के आधार पर राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा (अनु. 145) करवा सकता है। उपाध्यक्ष एवं सदस्यों को साधारण कारणों से हटाया जा सकता है।

आयोग की रिपोर्ट संसद तथा राज्य विधान मण्डलों में प्रस्तुत की जाती है। आयोग के प्रशासनिक कार्यों को पूरा करने के लिए एक सचिव, एक संयुक्त सचिव तथा कई निदेशक एवं अन्य कार्मिक कार्यरत है। आयोग के मुख्यालय के सचिवालय को चार प्रमुख खण्डों में विभक्त किया गया है।

1. प्रशासन एवं समन्वय खण्ड

2. सेवा रक्षोपाय खण्ड

3. अत्याचार तथा नागरिक अधिकार संरक्षण खण्ड

4. आर्थिक एवं सामाजिक विकास खण्ड

आयोग के यह प्रमाण अपने- अपने क्षेत्र से संबंधित कानूनों, नीतियों, कार्यक्रमों तथा सरकारी योजनाओं पर नियन्त्रण रखते हैं जो अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु बनाई एवं क्रियान्वित की जा रही है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग के राज्यों में भी क्षेत्रीय कार्यालय है। राज्यों में स्थित आयोग के कार्यालयों का संचालन निदेशक, उपनिदेशक, सहायक निदेशक अथवा अनुसंधान अधिकारी करते हैं। आयोग के राज्य स्तरीय कार्यालयों का विवरण इस प्रकार है:—

 

(ii) कार्य

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के निम्नलिखित कार्य है

1. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को अधिकारों तथा सुरक्षापायों से वंचित करने संबंधी विशेष शिकायतों की जांच करना ।

2. संविधान के अन्तर्गत या किसी अन्य कानून अथवा सरकार के किसी आदेश के तहत अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियों को प्रदान किए गए सुरक्षापायों के सम्बद्ध में सभी मामलों की जांच करना और मॉनीटर करना तथा ऐसे सुरक्षापायों के कार्यकरण का मूल्यांकन करना |

3. राष्ट्रपति को सुरक्षा के उपाय के कार्यकरण पर वार्षिक रूप से या किसी ऐसे अन्य समय में जिसे आयोग उचित समझे, रिपोर्ट प्रस्तुत करना ।

4. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना तथा सलाह देना एवं संघ या किसी राज्य के अन्तर्गत उनके विकास की प्रगति की समीक्षा करना ।

5. अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कल्याण, सुरक्षा, विकास तथा उन्नति के सम्बन्ध में ऐसे अन्य कार्यों को करना, जो राष्ट्रपति द्वारा संसद के किसी कानून द्वारा या किसी नियम द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए।

6. उन उपायों के बारे में ऐसी रिपोर्ट या सिफारिश करना जो अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के आर्थिक विकास, कल्याण सुरक्षा किसी राज्य या संघ सरकार द्वारा किये जाने चाहिए।

 

(iii) शक्तियाँ 

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को सिविल न्यायालय की शक्तियाँ (सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908) भी दी गई हैं, जो विशेष रूप से निम्नलिखित के सम्बन्ध में होगी – –

 

1. भारत के किसी भी भाग से किसी भी व्यक्ति को बुलाने और उसकी उपस्थिति सुनिश्चत करने तथा शपथ-पत्र परीक्षण करने।

2. किसी दस्तावेज की तलाश करवाने और उसे पेश करवाने ।

3. शपथ-पत्रों पर साक्ष्य लेने।

4. किसी भी अदालत अथवा कार्यालय से कोई सार्वजनिक अभिलेख या उसकी प्रति प्राप्त करने ।

5. साक्षियों और प्रलेखों के परीक्षण के लिए आदेश जारी करने तथा

6. अन्य कोई मामला जिसे राष्ट्रपति नियम दारा निर्धारित करें ।

आयोग का प्रशासनिक मंत्रालय भारत सरकार का सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय है। इस नाते इस आयोग को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार से प्रशासकीय तथा तकनीकी सहायता प्राप्त होती है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग मुख्यतः नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1950, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) अधिनियम, 1989, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1986, बाल श्रम (प्रतिषेध एवं नियमन) अधिनियम, 1986 तथा बन्धुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 की क्रियान्वयन में आ रही बाधाओं तथा कमियों के क्रम में कार्यवाही की जाती है।

उपर्युक्त कानूनों के अलावा अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण, विकास तथा संरक्षण के लिए बने संवैधानिक प्रावधानों, प्रशासकीय नियमों आरक्षण एवं अत्याचारों के संबंध में शिकायतों का निस्तारण, जांच तथा मॉनीटरिंग का कार्य करता है।

अनुच्छेद 388 (9) यह प्रावधान करता है कि संघ तथा राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के क्रम में नीतिगत निर्णय लेते समय इस आयोग से परामर्श करेगी।

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