भारत में लोकतंत्र: उद्देश्य, उपलब्धियां, चुनौतिया - Rajasthan Result

भारत में लोकतंत्र: उद्देश्य, उपलब्धियां, चुनौतिया

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇
लोकतंत्र का अर्थ है, एक ऐसी जीवन पद्धति जिसमें स्वतंत्रता, समता और बंधुता समाज-जीवन के मूल सिद्धांत होते हैं। -बाबा साहब अम्बेडकर 
लोकतंत्र, अपनी महंगी और समय बर्बाद करने वाली खूबियों के साथ सिर्फ भ्रमित करने का एक तरीका भर है जिससे जनता को विश्वास दिलाया जाता है कि वह ही शासक है जबकि वास्तविक सत्ता कुछ गिने-चुने लोगों के हाथ में ही होती है। -जॉर्ज बर्नार्ड शॉ

अनुच्छेद 19 (2) में यह उल्लेखित है कि देश की एकता अखंडता तथा संप्रभुता के आधार पर स्वतंत्रता के ऊपर रोक लगाई जा सकती है।

अनुच्छेद 51 A के अंतर्गत उल्लेखित मूल कर्तव्य में सामासिक कर्तव्य का उल्लेख है।
संविधान की प्रस्तावना में हम भारत के लोग जैसे शब्द उल्लेखित हैं इसमें पंथनिरपेक्षता शब्द का भी उल्लेख 42 वें संशोधन के द्वारा किया गया।
लोकतंत्र

भारत में लोकतंत्र

लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां

नक्सलवाद
भूमि सुधार कानूनों का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं होने पर पश्चिम बंगाल में 60 व 70 के दशक में किसान आंदोलन हुए।
1967 मैं पश्चिम बंगाल के नक्सलवादी क्षेत्र में हुए हिंसक किसान आंदोलन से नक्सलवाद का उदय माना जाता है। माओत्से तुंग के अनुसार सत्ता बंदूक की गोली से निकलती है इस विचार में विश्वास करने वाले माओवादी कहलाते हैं। कानू सान्याल, चारू मजूमदार तथा जंगल संथाल प्रारंभिक नक्सलवादी थे। नक्सलवादी प्रभावित क्षेत्रों को लाल गलियारा कहा जाता है नेपाल के पशुपति मंदिर से आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर तक नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र है।
सीआरपीएफ द्वारा नक्सलवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन कोबरा चलाया जा रहा है मीडिया ने इसे ऑपरेशन ग्रीन हंट नाम दिया। सलवा जुडम छत्तीसगढ़ में नक्सलवादियों के विरुद्ध ग्रामीणों द्वारा चलाया गया अभियान है इसके द्वारा ग्रामीणों को नक्सलवादियों के विरुद्ध कार्यवाही करने हेतु प्रशिक्षण दिया जाता है।

छत्तीसगढ़ के जनजातीय नेता महेंद्र कर्मा का सलवा जुडम अभियान में योगदान है नंदिनी सुंदर बनाम छत्तीसगढ़ 2010 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने सलवा जुडम को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन मानते हुए रोक लगा दी| नंदिनी सुंदर दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की समाजशास्त्र के प्रोफेसर है |उन्होंने नक्सलवाद पर बर्निग फॉरेस्ट नामक पुस्तक लिखी है।

2. सांप्रदायिकता

मूल कर्तव्य में सामासिक संस्कृति का उल्लेख है 1909 मार्ले मिंटो अधिनियम द्वारा मुसलमानों के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत की गई इसे सांप्रदायिकता की वैधानिक शुरुआत कहा जाता है |
सांप्रदायिक की समस्या पर विचार करने हेतु पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार पर राष्ट्रीय एकता परिषद की स्थापना हुई | 1963 में इसकी पहली बैठक हुई अब तक 16 बार बैठक हो चुकी है अंतिम बैठक वर्ष 2013 में हुई थी। प्रधानमंत्री इस का पदेन अध्यक्ष होता है इसमें कुल 147 सदस्य हैं।

3. जातिवाद

डॉक्टर अंबेडकर ने जातिवाद की समस्या पर निम्न पुस्तक लिखी हैं

  1. अनटचेबल्स
  2. हिंदू धर्म की पहेलियां
  3. शूद्र कौन थे

सीएसडीएस के संस्थापक प्रोफेसर रजनी कोठारी ने कास्ट इन इंडियन पॉलिटिक्स नामक पुस्तक लिखी है पुस्तक में उन्होंने राजनीति में जाति की भूमिका के 3 आयाम बताए हैं।

  • टिकट का बंटवारा जाति के आधार पर।
  • जाति के आधार पर मतदान।
  • जाति के आधार पर मंत्री परिषद का गठन।

रामचन्द्र गुहा अपनी पुस्तक इंडिया आफ्टर गांधी (पिकाडोर, 2007) में जवाब देते हैं- ‘जवाब है फिप्टी-फिप्टी (50:50)।’ जब चुनाव कराने और आंदोलन व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति की बात आती है, तब यह बात लागू होती है। लेकिन जब राजनेताओं और राजनीतिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली की बात आती है तो ये लागू नहीं होती है। लोकतंत्र की खामियां, विशेष रूप से इसके संचालन में, ‘अनिवार्य रूप से इसकी संरचना में नहीं पाई जाती हैं।’ अक्सर ये खामियां इसको चलाने वाले लोगों के चरित्र और कार्यप्रणाली में होती हैं।

यह भी पढ़े 👇

लोकतंत्र – अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। और हमारे फेसबुक पेज को फॉलो करें। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।। धन्यवाद 🙏 ।।

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!