सिखवति चलन जसोदा मैया | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूरदास |
सिखवति चलन जसोदा मैया ।
अरबराइ कर पानि गहावत, डगमगाइ धरनी धरै पैया ॥
कबहुँक सुंदर बदन बिलोकति, उर आनँद भरि लेति बलैया ।
कबहुँक कुल देवता मनावति, चिरजीवहु मेरौ कुँवर कन्हैया ॥
कबहुँक बल कौं टेरि बुलावति, इहिं आँगन खेलौ दोउ भैया ।
सूरदास स्वामी की लीला, अति प्रताप बिलसत नँदरैया ॥
सिखवति चलन जसोदा मैया
प्रसंग :— प्रस्तुत पद भक्तिकालीन सगुण काव्यधारा के कृष्ण भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ में ‘गोकुल लीला’ से लिया गया है। श्रीकृष्ण के बाल्य-मन की विभिन्न झाँकियों को प्रस्तुत करने वाले सूर ने इस पद में माता यशोदा के वात्सल्य सुख का वर्णन किया है। उन्होंने बालक की स्वाभाविक क्रियाओं का अत्यन्त सूक्ष्म एवं मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।
व्याख्या :— सूरदास जी कहते हैं कि माता यशोदा श्रीकृष्ण को चलना सिखा रही हैं। जब कृष्ण डगमगाते हुए धरती पर पैर रखते हैं तो (इस डर से कि कहीं कृष्ण लड़खड़ाकर गिर न जाएँ और गिरने से कहीं चोट न लग जाए) माँ अनायास ही अपने हाथ से कृष्ण का हाथ पकड़ लेती है। कभी माता कृष्ण के मुख- – सौंदर्य को एकदम देखती हुई आनंदातिरेक में भावविभोर हो उनकी बलैया लेने लगती है
तो कभी माता यशोदा अपने कुल देवता से प्रार्थना करती है कि मेरा कुंवर कन्हाई चिरंजीवी हो । कभी माता बलदाऊ (बलराम) को आवाज देकर बुलाती हुई कहती है कि दोनों भाई इसी आँगन में एक साथ मिलकर खेलो। सूरदास कहते हैं कि इस प्रकार अनेक तरह की प्रेममयी नित्य लीलाओं से माता यशोदा और नन्दजी अत्यन्त प्रसन्न होकर उल्लसित हो रहे हैं ।
विशेष
1. वात्सल्य भाव की अभिव्यक्ति इस पद में हुई है। कृष्ण के बालपन पर माता यशोदा के प्रफुल्ल हृदय को दर्शाया गया है।
2. कोमलकांत पदावली है। प्रसाद गुण है।
3. भक्ति रस का चित्रण है।
4. भाषा ब्रज है।
5. छन्द पद है।
6. ‘बलाएँ लेना’ मुहावरे का सटील प्रयोग हुआ है।
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