सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला'' का व्यक्तित्व एवं कृतित्व |

सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” का व्यक्तित्व एवं कृतित्व |

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” का व्यक्तित्व एवं कृतित्व

सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” का व्यक्तित्व एवं कृतित्व

निराला के जीवन की संक्षिप्त जानकारी आप पहले ही हासिल कर चुके हैं। यहाँ कुछ विस्तृत जानकारी दी जा रही है। निराला का जन्म सन् 1896 ई. में बसन्त पंचमी के दिन बंगाल के मेदनीपुर जिले में महिषादल नामक स्थान पर हुआ। निराला की जन्म तिथि के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद भी पाये जाते हैं।

अनुश्रुति है कि उनकी माता सूर्य का व्रत रखा करती थीं और निराला का जन्म भी रविवार को हुआ। यही कारण है कि उनक नाम सुर्जकुमार रखा गया। कुछ लोगों का कहना है कि उनका जन्म महावीर हनुमान की पूजा के दिन मंगलवार को हुआ। निराला के पिता महावीर के भक्त थे, यही सोचकर पण्डित ने उनका नाम सुर्जकुमार रखा।

लेकिन सन् 1917-18 के लगभग उन्होंने अपना नाम बदलकर सूर्यकान्त त्रिपाठी कर लिया और निराला उपमान उन्होंने “मतवाला’ पत्र के सम्पादन काल में  रखा।

निराला के पिता पं. राम सहाय, गढ़ा कोला, जिला उन्नाव के रहने वाले थे किन्तु आर्थिक परिस्थिति अनुकूल न होने के कारण कलकत्ता में जाकर पुलिस के सिपाही बन गए। कालांतर में महिषादल राज्य में सौ सिपाहियों का जमादार और राज्य कोष का संरक्षक उन्हें नियुक्त किया गया। निराला के पिता राजा के विशेष कृपापात्र थे, यही कारण है कि उनका पालन-पोषण राजकीय परिवेश में हुआ।

अल्पायु में ही इन्हें मातृ स्नेह की छाया से वंचित रहना पड़ा। निराला के स्वस्थ, सुन्दर रूप एवं मातृहीन निरीहता से द्रवित होकर महिषादल राजा के छोटे भाई ने इन्हें गोद लेने का और “कॉन्वेंट” में पढ़ाने का प्रस्ताव रखा किन्तु इनके पिता ने स्वयं ही बच्चे की देखभाल करने का निश्चिय किया ।

इनकी प्रारम्भिक शिक्षा बंगाल पाठशाला में हुई और सन् 1907 ई. में उन्होंने महिषादल हाई स्कूल में आठवीं कक्षा में दाखिला ग्रहण किया । अंग्रेजी ज्ञान की शुरूआत भी यहीं से निराला ने प्रारम्भ की। हाई स्कूल से ही निराला ने द्वितीय भाषा के रूप में संस्कृत का अध्ययन किया। हिंदी भाषा, सिपाहियों के साथ रहकर उन्होंने सीखी ।

घर पर बैसवाड़ी बोली जाती थी। इस प्रकार से निराला ने बंगला, संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी और अवधी का ज्ञान हाई स्कूल से ही अर्जित कर लिया। हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं-विशेषकर ‘सरस्वती’ से -उन्हें हिंदी के प्रति विशेष लगाव अनुभव हुआ और हिंदी में लिखने की प्रेरणा भी उन्होंने यहीं से प्राप्त की।

शिक्षा अर्जन के साथ-साथ निराला को अपने शारीरिक विकास का अवसर भी मिला। कुश्ती लड़ने, घुड़सवारी करने एवं बन्दूक चलाने में निराला ने विशेष योग्यता अर्जित कर ली। इसके अतिरिक्त संगीत में भी उनकी गहन रुचि थी और निराला का कण्ठ-स्वर बहुत सधा हुआ था।

अपनी स्कूली शिक्षा को हाई स्कूल के पश्चात ही निराला ने विराम दे दिया क्योंकि निराला को किसी ने कह दिया कि प्रतिभाशाली व्यक्ति कभी परीक्षाओं के चक्कर में नहीं पड़ते, स्वयं रवीन्द्रनाथ नवीं पास हैं। बस निराला ने ठान लिया कि वे रवीन्द्र से कम थोड़े ही हैं उन्होंने भी परीक्षा नहीं दी ताकि नवीं कक्षा पास ही रहें।

निराला का विवाह चौदह वर्ष की आयु में मनोहरा देवी के साथ हुआ । मनोहरा देवी देखने में तो मनोहर थी ही, गुण सम्पन्न और गृह कार्य दक्षा भी थीं। निराला को हिंदी में साहित्य-सृजन करने की प्रेरणा भी मनोहरा देवी से मिली। निराला अपनी पत्नी के प्रति अनन्य प्रेम का भाव रखते थे किन्तु निराला का वैवाहिक जीवन चार-पाँच वर्ष की अल्प आयु पर आकर बिखर गया। पत्नी की मृत्यु से निराला का अन्तर्मन टूट गया। निराला के काव्य में इस पीड़ा की गहन अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।

कवि की यह पीड़ा यहीं समाप्त नहीं हो जाती, परिवार के अनेक सदस्य इसी बीच निराला को छोड़ कर संसार से विदा हो लिए। निराला के भावुक मन के लिए पत्नी-विछोह वज्रपात से कम नहीं था, ऊपर से अपने दो बच्चों और परिवार के अन्य बच्चों के पालन-पोषण की व्यवस्था का भार भी इन्हीं पर आन पड़ा।

इन सभी विषम परिस्थितियों में निराला के व्यक्तित्व का निर्माण हुआ। निराला के व्यक्तित्व में एक ओर करुणा तथा जगत की नश्वरता का भाव मिला हुआ है तो दूसरी ओर विद्रोह एवं क्रान्ति का स्वर भी। निराला के जीवन में दुःख और अभावों का सिलसिला जीवन पर्यन्त चलता रहा। पत्नी की मृत्यु के पश्चात् जबरदस्त आघात उन्हें लगा, वह था पुत्री ‘सरोज’ का युवावस्था में अकाल मृत्यु-मुख में चले जाना ।

एक के बाद एक प्रिय जन के विछोह से निराला जहाँ टूटे हैं, वहीं अपने अन्तर से शक्ति ग्रहण कर जीवन-संघर्षों से जूझे भी हैं। यही कारण है कि निराला के व्यक्तित्व में हम संघर्ष-प्रियता, रुढ़ियों के विरोध तथा विद्रोह के स्वर को विशेष रूप से देखते हैं। दूसरी ओर, करुणा का ऐसा मोहक रूप पाते हैं जो दूसरे के दुःखों और अभावों में अपनी वास्तविक स्थिति को भूल जाता है। फकीरी में भी उन्हें सुख मिलता है। निराला ने कविता को ही निबन्ध नहीं किया, अपने आप में भी निबन्ध रहे। निराला स्वभाव के स्वाभिमानी और निर्भीक व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैं।

उन्हें अवढर दानी कहकर सभी सम्मानित किया करते थे और अपनी मस्ती में वे फक्कड़ थे। उनके बाह्य व्यक्तित्व की झलक कुछ इस प्रकार से थीः “कद लगभग छ: फुट, चौड़ा सीना, विशाल मस्तक, दिव्य तेज से परिपूर्ण आंखें, बैल की तरह चौड़े कन्धे, विशाल बाहू, तीखी सुडौल नासिका, लम्बे बाल।” उनकी आकृति और शारीरिक संरचना ग्रीक योद्धाओं के समान थी, इसीलिए कोई उन्हें ‘अपोलो’ कहता था तो कोई ‘विवेकानन्द’।

जो अन्य सरस्वती के इस वरद् पुत्र ने आजीवन साहित्य साधना की । सन् 1920 ईस्वी में राज्य की नौकरी छोड़ कर पूर्ण संकल्प से निराला ने साहित्यक जीवन में प्रवेश किया और अन्त तक उसी को ही अपना जीवन मानकर चले। 15 अक्तूबर, 1961 को महाप्राण निराला ने अपने इस नश्वर-शरीर का त्याग किया।

यह भी पढ़े :–

  1. प्रेमचंद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का वर्णन कीजिए |
  2. विद्यापति के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालिए |
  3. महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay

 

सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” का व्यक्तित्व एवं कृतित्व – अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। और हमारे “FaceBook Page”  को फॉलो करें || अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे || धन्यवाद ||

सूर्यकांत त्रिपाठी सूर्यकांत त्रिपाठी सूर्यकांत त्रिपाठी

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!