स्वामी दयानंद सरस्वती, दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ? दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई? आर्य समाज की उत्पत्ति कैसे हुई? आर्य किसकी पूजा करते थे?
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स्वामी दयानंद सरस्वती को एक महान मानवतावादी क्यों माना जाता है?
उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। ‘वेदों की ओर लौटो’ यह उनका प्रमुख नारा था।
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स्वामी दयानंद सरस्वती
महर्षि दयानंद सरस्वती
दर्शन वेदों की ओर चलो, आधुनिक भारतीय दर्शन
खिताब/सम्मान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रणेता
धर्म हिन्दू
स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु कैसे हुई?
स्वामी दयानंद सरस्वती का निधन एक वेश्या के कुचक्र से हुआ। स्वामी दयानंद सरस्वती को जोधपुर के महाराज यशवंत सिंह ने आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। स्वामी दयानंद जोधपुर गए और एक दिन वहां के दरबार में महाराज की वेश्या नन्हींजान को समीप देखकर उसकी कड़ी आलोचना कर दी।
दयानंद सरस्वती का जन्म कब हुआ?
12 फ़रवरी 1824
दयानंद सरस्वती ने शिक्षा पर विशेष जोर क्यों दिया?
समाज सुधारक व शिक्षा के पक्षधर थे महर्षि दयानंद सरस्वती
सरला भारद्वाज ने कहा कि महर्षि दयानंद समाज सुधारक, योगी और समाज एवं राष्ट्र को दिशा देने वाले महापुरूष थे। उन्होंने वेदों के आधार पर घोषणा की कि जन्म से सब शुद्ध होते है। संस्कारों से ही व्यक्ति श्रेष्ठ होते है। … उन्होंने नारी शिक्षा पर विशेष जोर दिया।
दयानंद सरस्वती के अनुसार संस्कार कितने प्रकार के हैं?
इसमें प्रथम ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना, पुनः स्वस्तवाचन, शान्तिपाठ, तदनन्तर सामान्य-प्रकरण, पश्चात् गर्भाधानादि अन्त्येष्टिपर्यन्त सोलह संस्कार क्रमशः लिखे हैं और यहाँ सब मन्त्रों का अर्थ नहीं लिखा है, क्योंकि इसमें कर्मकाण्ड का विधान है, इसलिए विशेषकर क्रिया-विधान लिखा है और जहाँ-जहाँ अर्थ करना आवश्यक है, वहाँ- …
बीमार अवस्था में दयानंद जी को जोधपुर से कहाँ ले जाया गया?
बाद में जब स्वामी दयानंद को जोधपुर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया। बाद में जब स्वामी दयानंद की तबीयत बहुत खराब होने लगी तो उन्हें अजमेर के अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन तब तक काफी विलम्ब हो चुका था।
राजतंत्र पर दयानंद सरस्वती के विचार क्या थे?
राजतंत्र के विषय में स्वामी दयानंद के विचार…
वह गणतंत्र के समर्थक थे। … उनके अनुसार यदि किसी गणतंत्र में शासन तंत्र वेद विरुद्ध आचरण करे तो जनता को उसका विरोध करना चाहिए और यह बिल्कुल धर्म संगत होगा। ऐसे विरोध से ही राजनीतिक क्रांति का उदय होता है। स्वामी दयानंद ने शासन के विकेंद्रीकरण का समर्थन किया था।
पंजाब में स्वामी दयानन्द सबसे पहले कहाँ पहुँचे?
Answer: दयानंद सरस्वती का जन्म १२ फ़रवरी टंकारा में सन् १८२४ में मोरबी (मुम्बई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था।
स्वराज्य के विषय में स्वामी दयानंद जी के क्या विचार हैं?
अध्ययन पूरा करने पर गुरु ने स्वामी दयानंद को देश से अज्ञान, अन्धविश्वास, सामाजिक असमानता व विषमता दूर करने का आग्रह किया। … स्वामी जी सन् 1874 में काशी में यथार्थ वेदोक्त धर्म का प्रचार, समाज सुधार के कार्य व अन्धविश्वासों का खण्डन कर रहे थे।
हरियाणा में आर्य समाज की स्थापना कब हुई?
1 हरियाणा के पिछड़े हुए गांवो में बसने वालों में सर्वप्रथम चेतना लाने का श्रेय आर्य समाज को दिया जाता है । 2 आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल 1875 को हिन्दू समाज में फैली बुराइयों एवं कुरितियों को दूर करके एक स्वस्थ समाज के निर्माण हेतु बम्बई में हुई थी।
आर्य समाज से आप क्या समझते हैं?
आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आन्दोलन है जिसकी स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने १८७५ में बंबई में मथुरा के स्वामी विरजानन्द की प्रेरणा से की थी। … यह आंदोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू धर्म में सुधार के लिए प्रारम्भ हुआ था।
स्वामी दयानंद ने विरजानन्द जी से कितने वर्ष विद्या ग्रहण किया?
उनके समान अन्य कोई आचार्य दयानन्द जी के जीवन में नहीं आया था। स्वामी विरजानन्द जी ने स्वामी दयानन्द जी की सभी आशंकाओं व भ्रमों का निवारण किया था। सन् 1863 में उनकी विद्या पूर्ण हुई और उन्होंने गुरु जी से दीक्षा व विदा ली।
दयानंद निर्वाण दिवस कब मनाया जाता है?
महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस आज
अजमेर| स्वराजके प्रथम मंत्र दृष्टा एवं सामाजिक क्रांति के अग्रदूत आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का 133वां निर्वाण दिवस 30 अक्टूबर की शाम उनकी निर्वाण स्थली भिनाय कोठी आगरा गेट में मनाया जाएगा।
स्वामी दयानंद मूर्ति पूजा के विरोधी कैसे बने?
भगवान शिव के परम भक्त और हिंदू होने के बावजूद आखिर क्या वजह थी कि उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया। दरअसल इसके पीछे एक घटना थी, उनके आस्था भाव को उस वक्त ठेस पहुंची जब उन्होंने भगवान शिव पर चढ़ा प्रसाद एक चूहे को खाते हुए देख लिया। उसके बाद से ही उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध करना शुरू कर दिया।
स्वामी दयानंद ने कौन सा नारा दिया?
लोगों को वैदिक धर्म से जोड़ने के लिए स्वामी दयानंद ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में उन्होंने नारा दिया, ‘वेदों की ओर लौटो। ‘ 10 अप्रैल 1875 को उन्होंने मुंबई में आर्यसमाज की स्थापना की।
आर्य समाज की उत्पत्ति कैसे हुई?
उनका कहना है कि ये इंडो-यूरोपीय भाषा बोलने वाले या आर्य शायद उन प्रागैतिहासिक ख़ानाबदोशों में से थे, जो पहले की किसी सभ्यता के कमज़ोर होने के बाद भारत आए थे. यह हड़प्पा (या सिंधु घाटी) सभ्यता थी जो आज भारत के उत्तर-पश्चिम और पाकिस्तान में है. यह सभ्यता लगभग मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के समय ही पनपी थी।
देश में आर्य समाज के बढ़ने का क्या कारण था?
Answer: चूंकि भारत धीरे-धीरे पश्चिमी विचारों की ओर बढ़ने लगा था, अतः प्रतिक्रिया सामाजिक क्षेत्र से आना स्वाभाविक कार्य थी। यह प्रतिक्रिया १९वीं शताब्दी में उठ खड़े हुए सामाजिक सुधार आन्दोलनों के रूप में सामने आई। ऐसे ही समाज सुधार आंदोलनों में आर्यसमाज का नाम आता है।
आर्य समाज के प्रमुख उद्देश्य क्या है?
आर्यसमाज के 6ठे नियम में कहा गया है कि संसार का उपकार करना आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य है। किसी भी समाज, देश व संसार की उन्नति सद्ज्ञान, सद्कर्म, सदाचरण, परोपकार, सेवा सहित ईश्वर के सच्चे स्वरूप को जानकर उसकी उपासना व यज्ञादि कर्मों को करके ही हो सकती है।
राष्ट्रीय जागरण में आर्य समाज का क्या योगदान था?
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने 12 अप्रैल, 1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी। आर्य समाज जसे जागरूक मंच से उन्होंने देश में फैली कुरीतियों और धर्म के नाम पर पाखंडों को जड़ से उखाड़ फेंकने के साथ-साथ गुलामी की बेड़ियों से जकड़ी मातृभूमि को विदेशियों से मुक्त कराने का आह्वान किया।
आर्य समाज का वैधानिक मंतव्य क्या है?
आर्यसमाज का मूल मन्तव्य वस्तुत: कर्मफल व्यवस्था ही है। इसका स्पष्ट और सुनिश्चित रूप ही आर्यसमाज को दूसरों से अलग करता है। जैसे कि कर्मफल से बचने के लिए आज अनेकों ने अनेक ढंग अर्थात् इष्टदेव का दर्शन-पूजन, नामस्मरण, तीर्थयात्रा, स्नान समझ लिये गये हैं।
आर्य किसकी पूजा करते थे?
ऋग्वैदिक के समय के आर्य जन प्रकृति के देवों कि पूजा करते थे. उस समय मूर्ति पूजा नही थी। न राम, कृष्ण, विष्णु, परशुराम आदि जैसे मानव अवतारी महापुरुष पूजे जाते थे बल्कि इंद्र, यम, सुर्य, वरुण, वायु, अग्नि आदि जैसी प्राकृतिक शक्तियों कि पूजा उपासना होती थी।
स्वामी दयानंद गुरु दक्षिणा में क्या वस्तु लेकर गुरु के पास गए?
उनके पास ऐसा कोई द्रव्य नहीं था, जिसे वे गुरुचरणों में समर्पित कर देते, फिर भी प्रयास पूर्वक उन्होंने कुछ लौंग कहीं से प्राप्त कर और गुरु-कुटिया पर उपस्थित हो, उनके चरणों में सिर धर दयानन्द ने गुरु जी से निवेदन किया-“गुरुवर, मेरा अध्ययन-काल समाप्त हुआ। अब मैं देश भ्रमण के लिए आपकी आज्ञा चाहता हूँ।
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