हीलीबोन की बत्तखें की समीक्षा — कहानी के तत्वों के आधार पर कीजिए | अज्ञेय | - Rajasthan Result

हीलीबोन की बत्तखें की समीक्षा — कहानी के तत्वों के आधार पर कीजिए | अज्ञेय |

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हीलीबोन की बत्तखें की समीक्षा :– कहानी मानव जीवन के किसी अंग अथवा मनोभाव की सार्थक अभिव्यक्ति है। कथा सम्राट प्रेमचंद की मान्यता है कि श्रेष्ठ कहानी वही है जो किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर आधारित हो। इस दृष्टि से अज्ञेय की ‘हीलीबोन की बत्तखें’ एक स्त्री के एकाकी जीवन के मनोविज्ञान पर आधारित है।

इस कहानी की तात्त्विक समीक्षा या विवेचन के क्रम में पहले कहानी के तत्त्वों पर एक विहंगम दृष्टिपात करना चाहिए। कहानी के तात्त्विक विवेचन से अभिप्राय है- कहानी के तत्त्वों के आधार पर किसी कहानी का मूल्यांकन।

हीलीबोन की बत्तखें की समीक्षा

सामान्यतः विद्वानों ने कहानी के छः तत्त्व निर्धारित किए हैं- 1. कथानक, 2. पात्र/ चरित्र-चित्रण, 3. देश-काल और वातारण, 4 भाषा-शैली, 5. संवाद और 6. उद्देश्य। परंतु कुछ विद्वानों ने कहानी के इन तत्त्वों को भ्रमपूर्ण भी बताया है। क्योंकि ऐसी बहुत सी कहानियाँ हैं, जिनमें इन सभी तत्त्वों का समुचित समावेश नहीं हो पाता।

डॉ. हरिमोहन की मान्यता है कि कहानी विधा के दो ही रचना तत्त्व हैंएक कथा तत्त्व और दूसरा संरचना तत्त्व। यहाँ ‘कथा-तत्त्व’ से अभिप्राय परम्परागत रूप से चला आ रहा ‘कथ्य’ नहीं है, बल्कि जीवन-जगत् के प्रतिबिम्बों का कथन, उनका प्रत्यक्षीकरण है। दूसरे शब्दों में, कहानीकार द्वारा घटनाओं, क्रिया-व्यापारों तथा चरित्रों के माध्यम से किसी एक संवेदना को जागृत करने के लिए बुना गया रचना-विधान कथातत्त्व है।

संरचना-तत्त्व के अंतर्गत कथा तत्त्व को, यानि जीवन-जगत् के प्रतिबिम्बों को प्रभावशाली ढंग से विन्यासित करने वाले उपादानों को शामिल किया जाता है। संरचना तत्त्व को हम भाषा, संवाद और इनके द्वारा निर्मित वातावरण, शैली आदि के रूप में देख सकते हैं। कहानी के ये दोनों तत्त्व परस्पर घुले-मिले रहते हैं और कहानी को प्रभावशाली बनाने में अपना योगदान देते हैं।

यह संरचना-तत्त्व ही वास्तव में कहानी का ‘रचनात्मक परिवेश’ है, जिससे कोई कहानीकार संवेदना का प्रभावपूर्ण चित्रण करता है। इन्हीं दोनों तत्त्वों के आलोक में कहानी के मूल्यांकन के तीन आधार हैं- कथ्य, रचनात्मक परिवेश तथा चरित्र। अतः किसी कहानी का मूल्यांकन इन तीन बातों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।

यहाँ यदि हम उपर्युक्त तीनों आधारों का विवेचन-विश्लेषण करें तो स्पष्ट होगा कि कथ्य में कथानक का समावेश हो जाता है। रचनात्मक परिवेश के अंतर्गत देशकाल और वातावरण, उद्देश्य, संवाद व शैली आदि आ जाते हैं और चरित्र के अंतर्गत पात्र या चरित्र-चित्रण का समाहार हो जाता है।

अज्ञेय की कहानी ‘हीलीबोन की बत्तखें’ का कथ्य अत्यंत संक्षिप्त एवं सुगठित है। हीली एक पहाड़ी प्रदेश की स्त्री है, जो कि अपने बंगलेनुमे घर में अकेली रहती है। उसके पिता सियेम के दीवान थे। उसकी दो छोटी बहनें थीं, जिनका विवाह हो चुका था। हीली बत्तखें पालकर और उनके अंडे बेचकर अपना जीवनयापन करती है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से एक लोमड़ी उसकी एक-दो बत्तखों को मारकर खा गई।

एक ऐसी ही सुबह हीली अपने बाड़े का जायजा ले रही थी कि फर्श पर बत्तख का खून एवं पंख बिखरे देखकर हीली के मुख से एक हल्की-सी चीख निकल जाती है, जिसे सुनकर वहाँ से गुजरता हुआ एक शिकारी ‘फौजी कैप्टन दयाल’ हीली के पास आता है और उसकी सहमति से वह रात को उस लोमड़ी पर गोली चला देता है।

लोमड़ी वहाँ नहीं गिरती यानि वह गोली लगने पर भी मरती नहीं बल्कि घायल होकर वह अपनी माँद में पहुँच जाती है। सुबह कैप्टन दयाल और उसके पीछे-पीछे हीली लोमड़ी की माँद तक पहुँच जाते हैं। वहाँ मृत लोमड़ी (नर लोमड़ी) और उसके परिवार- लोमड़ी व उसके बच्चों की दयनीय दशा को देखकर, हीली स्वयं को लोमड़ी-परिवार की दुर्दशा का जिम्मेदार मानती है।

वह घर आते ही उन्माद में अपनी सारी बत्तखों को मार डालती है। और कैप्टन दयाल को हत्यारा कहकर झिड़कती है। इस कहानी का कथानक बड़ा ही सुसंगठित, रोचक व प्रभावशाली है। कहानी में शुरू से अंत तक रोचकता विद्यमान है।

इस कहानी की समीक्षा में पात्र या चरित्र की दृष्टि से प्रमुख पात्र- हीली और कैप्टेन दयाल दो ही हैं। कहानी का संपूर्ण कथ्य ‘हीली बोन’ के ईर्द-गिर्द बुना गया है। एक तरह से पूरी कहानी हीली के चारित्रिक विकास एवं संवेदनात्मकता को प्रदर्शित करती है। हीली के जीवन की त्रासद स्थितियों ने उसके जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया है।

कहानी में इसे कुशलता से अभिव्यक्ति मिली है। हीली के अकेलेपन ने उसे अत्यधिक संवेदनशील बना दिया है। उसकी बातों में अकेलेपन का संत्रास साफ-साफ प्रकट होता है। उसकी यह संवेदनशीलता कहानी के अंत में बत्तखों को काटने और कैप्टन दयाल को हत्यारा कहने पर स्पष्ट रूप से झलकती है।

कैप्टन दयाल कहानी का दूसरा पात्र है जो एक फौजी है और अपनी छुट्टियाँ बिताने यहाँ यानी हिली के क्षेत्र में आया है। वह हीली के घर में डाका डालने वाले- यानी हीली की बत्तखों का शिकार करने वाली नर लोमड़ी का शिकार करता है। वह एक सहयोगी प्रवृत्ति का साहसी और कुशल शिकारी है।

कथोपकथन या संवाद कहानी के कथ्य को विकास प्रदान कर पात्रों का चरित्र चित्रण व मनोभावों को अभिव्यक्त करते हैं। यह कहानी का एक स्वाभाविक एवं महत्त्वपूर्ण अंग होता है। संवाद कहानी में एक जीवंतता का समावेश करते हैं। कहानी का यह तत्त्व अन्य तत्त्वों के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

वास्तव में संवाद कथा में रोचकता व नाटकीयता का समावेश कर लेखक के मंतव्य को संप्रेषित करता है। संवाद पात्र का चित्रांकन करने में भी मददगार होते हैं। ‘होलीबोन की बत्तखें’ जैसी घटना-प्रधान कहानियों में संवाद घटनाओं को गति प्रदान करते हैं। अज्ञेयकृत ‘हीलीबोन की बत्तखें’ कहानी में हीली और कैप्टन दयाल के कथोपकथन सजीव व प्रभावी वातारण की सृष्टि करने में सहायक सिद्ध हुए हैं।

देश, काल और वातावरण की दृष्टि से ‘हीलीबोन की बत्तखें’ कहानी में पहाड़ी क्षेत्र की खासी जाति की एक औरत का जीवन संदर्भ लिया गया है। जिसमें खासी जाति में मातृसत्ता यानी समाज में स्त्री की प्रधानता, पिता की संपत्ति पर छोटी पुत्री का अधिकार जैसे नियमों की जानकारी पाठक को मिलती है।

इसके अतिरिक्त इस पहाड़ी क्षेत्र में पलटनियों यानी फौजियों के हस्तक्षेप का भी पता चलता है। वातावरण की दृष्टि से हीली और कैप्टन दयाल शिकार के रक्त-चिह्नों का पीछा करते हैं तो पहाड़ी वातावरण बड़ा सजीव बन गया है।

जैसे- ‘कैप्टन दयाल और हीली घायल शिकार के रक्त चिह्नों का पीछा करते-करते दूर तक निकल गए। चीड़ के जंगल के पार ढलाव की ओर जरैत की झाड़ियों के बीच से होते हुए झरने तक आए। जहाँ आकर रक्त चिह्न लुप्त हो गए। कैप्टन दयाल और हीली झाड़ियों के बीच से होते हुए आगे बढ़े।’ यहाँ कहानी में पहाड़ी वातावरण और लोमड़ी की माँद का शब्दचित्र बड़ा ही सजीव और प्रभावशाली बन गया है।

कहानी की नायिका ‘हीलीबोन’ की मन:स्थिति इस कहानी के वातावरण निर्माण और कहानी के चरम विकास में प्रभावशाली बन गई है। हीली मृत लोमड़ी (नर लोमड़ी) और उसके बच्चों को कुनमुनाता देख उसके हृदय में सुप्त वात्सल्य भाव उमड़ पड़ा और अकेलेपन की संत्रासजनित वेदना के वशीभूत (उन्माद में) वह अपनी सभी बत्तखों को मार देती है।

हीली जब असहाय मादा लोमड़ी और उसके बच्चों को देखती है, तब वह सोचती है कि उसके स्वार्थ (अपनी बत्तखों को बचाने के उपाय) के चलते यह लोमड़ी परिवार असहाय हो गया। वह लोमड़ी पर गोली चलाने से कैप्टन दयाल को रोक देती है।

और तेजी से अपने घर आकर सीधे अपनी बत्तखों के बाड़े में जाती है। वह जिस अप्रत्याशित ढंग से बाड़े में जाती है उससे उसकी बत्तखें तितर-बितर हो जाती हैं। जब वह एक कोने में शांत बैठ जाती है तो बत्तखें उसके समीप ‘क-क’ की ध्वनि करते हुए जुट जाती हैं। होली अपनी बत्तखों को निहारती है और जैसे ही एक बत्तख उसके पास आकर उसके हाथ की ठेलती है तो वह उसकी गर्दन पकड़ कर हथियार से काट देती है।

यहाँ हीली की आंतरिक वेदना व मनस्थिति, उसके द्वारा अपनी सभी बत्तखों को मारने के कृत्य में अभिव्यक्त होती है। हीली का यह कृत्य हीली के अकेलेपन के संत्रास की परिणति को दिखाता है। इस संत्रास की अभिव्यक्ति कहानी के सूक्ष्म वातावरण की निर्मिति में प्रभावशाली भूमिका अदा करती है।

भाषा-शैली की दृष्टि से अज्ञेयकृत ‘हीलीबोन् की बत्तखें’ कहानी की भाषा शैली सहज, सरल एवं स्वाभाविक है। साथ ही मनोविश्लेषणात्मकता के गुण से ओत-प्रोत है। कहानी के शुरू में ही लेखक के भाषा प्रयोग का कौशल चमत्कृत करता है।

कहानी के प्रारंभ में ही कहानीकार हीली के घर और अंत:करण का जिस शब्दावली में वर्णन करता है वह बड़ा ही प्रभावशली है। यहाँ हीली के घर के चित्रण के साथ-साथ हीली की आंतरिक मनःस्थिति का बखूबी परिचय मिलता है। इस कहानी की भाषा पात्र और वातावरण के अनुकूल है।

यहाँ कहानीकार ने हीली के मन में अंतर्ग्रथित संवेदना की अभिव्यक्ति बड़े कलात्मक ढंग से की है। यहाँ प्रत्यक्ष स्थिति की प्रतीकात्मक व सांकेतिक रूप में प्रस्तुत करके भावाभिव्यक्ति को अधिक गहरा और व्यंजनापूर्ण बना दिया है। परिणामस्वरूप इस कहानी के रचना-विधान में अनुस्यूत सूत्र कई स्तरों पर खुलते हुए प्रभावी व परिस्थितियों की झाँकी प्रस्तुत करते है।

समीक्ष्य कहानी में अज्ञेय ने एक अकेली जीवन व्यतीत करने वाली स्त्री और उसकी कुंठाग्रस्त मन:स्थिति का सूक्ष्मता से चित्रण किया है। हीली की विक्षिप्त मानसिकता का ही परिणाम है कि वह नर लोमड़ी की मौत के लिए स्वयं को और अपनी बत्तखों को जिम्मेदार मानती हैं। इसलिए वह अपनी बत्तखों को गला काट कर मार देती है। हीली जब दौड़कर अपने घर लौटती है और बाड़े में जाती है तो-

‘उसके तुफानी वेग से चौंककर बत्तखें पहले तो बाड़े में इधर-उधर बिखर गई पर जब वह एक कोने में जाकर बाड़े के सहारे टिककर खड़ी अपलक उन्हें देखने लगी तब वे गरदनें लम्बी करके उचकती हुई-सी हीली के चारों ओर जुट गई और ‘क-क्!’ करने लगीं। हीली ने एक-एक कर अपने सभी ग्यारह बत्तखों को मार डाला और बाड़े से बाहर निकल आई।

इस प्रकार कहानी के तत्त्वों की दृष्टि से अज्ञेय की ‘हीलीबोन् की बत्तखें’ एक सक्त, सार्थक एवं मर्मस्पर्शी कहानी है, जो सहज ही पाठकों को प्रभावित करती है। गोपाल राय के शब्दों में ‘हीलीबोन बत्तखें की’ एक अच्छी कहानी इसलिए है कि उसकी पृष्ठभूमि सैनिक जीवन की होने पर भी उसके अंकित संवेदना स्त्री की संतानहीनता की मनोवैज्ञानिक स्थिति से सम्बद्ध है।

यह भी पढ़े :–

  1. हीलीबोन की बत्तखें कहानी की संवेदना स्पष्ट कीजिए ||
  2. हीलीबोन की बत्तखें कहानी का सार लिखिए ||
  3. उसने कहा था कहानी की समीक्षा कहानी के तत्वों के आधार पर कीजिए ||
  4. उसने कहा था कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र चित्रण कीजिए ||

 

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