shaheed bhagat singh | शहीद भगत सिंह के जीवन की अनसुनी बातें - Rajasthan Result

shaheed bhagat singh | शहीद भगत सिंह के जीवन की अनसुनी बातें

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bhagat singh biography in hindi

देश की सरकार bhagat singh को शहीद नहीं मानती है, जबकि आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले bhagat singh हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं।

 

bhagat singh का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे। bhagat singh पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे।

 

bhagat singh करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने bhagat singh के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला।

लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर bhagat singh ने 1920 में भगत सिंह महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे।

 

14 वर्ष की आयु में ही bhagat singh ने सरकारी स्‍कूलों की पुस्‍तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद इनके पोस्‍टर गांवों में छपने लगे।

 

bhagat singh पहले महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्‍य थे। 1921 में जब चौरा-चौरा हत्‍याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित हुई गदर दल के हिस्‍सा बन गए।

 

उन्‍होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है।

 

इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था।

काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए। भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार करो।

 

वे bhagat singh की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे। भगतसिंह कागज-पेंसिल ले दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते।

 

bhagat singh को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे।

 

bhagat singh ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।

 

क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे।

bhagat singh क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था।

 

हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने ‘अकाली’ और ‘कीर्ति’ दो अखबारों का संपादन भी किया।

 

जेल में भगत सिंह ने करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं।

 

अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।

 

23 मार्च 1931 को शहीद भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे ‘बिस्मिल’ की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिंध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी।

पाकिस्तान में शहीद भगत सिंह के नाम पर चौराहे का नाम रखे जाने पर खूब बवाल मचा था। लाहौर प्रशासन ने ऐलान किया था कि मशहूर शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक किया जाएगा। फैसले के बाद प्रशासन को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा था।

 

bhagat singh

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bhagat singh कितने दिन जेल में रहे?

23 मार्च 1931. कहते हैं 1 साल और 350 दिनों में जेल में रहने के बावजूद, भगत सिंह का वजन बढ़ गया था. खुशी के मारे. खुशी इस बात की कि अपने देश के लिए कुर्बान होने जा रहे थे।

क्या भगत सिंह?

भगत सिंह (जन्म: 28 सितम्बर 1907 , मृत्यु: 23 मार्च 1931) भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। …

bhagat singh को फांसी क्यों दी?

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कौन नहीं जानता है। उन्हीं की याद में 23 मार्च को शहीदी दिवस मनाया जाता है। साल 1931 में इसी दिन तीनों वीर सपूतों को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दे दी थी। लाहौर षड्यंत्र के आरोप में उन्हें फांसी दी गई।

bhagat singh की आयु कितनी थी?

फांसी के समय भगत सिंह की उम्र महज 23 साल थी। भगत सिंह का जन्म सितंबर 1907 में हुआ था। (शहीद भगत सिंह की वास्तविक तस्वीरें।) 28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह महज 23 साल की उम्र में शहीद हो गये।

bhagat singh ने जेल में कौन सी पुस्तक लिखी?

यह डायरी सितम्बर 1929 से मार्च 1931 के बीच लिखी गयी और उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार को सौंप दी गयी थी। कुछ समय पहले आई किताब, ‘द जेल नोटबुक एंड अदर राइटिंग्स’ में भगत सिंह द्वारा लिखी गयी कविताओं और बातों के बारे में लिखा गया है।

bhagat singh को कौन सी जेल में फांसी दी गई थी?

पाकिस्तान के लाहौर में स्थित कोट लखपत जेल को भारतीयों के लिए कब्रगाह के रूप में जाना जाता है। यह वही जेल है जहां 23 मार्च 1931 को शहीदे आजम भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दी गई थी। इस जेल को अब लाहौर सेंट्रल जेल के नाम से जाना जाता है।

bhagat singh के गुरु कौन थे?

‘ कोर्ट में ऐसी इच्‍छा जाहिर करने वाले क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा (Kartar Singh Sarabha) को सरदार भगत सिंह अपना गुरु मानते थे. भगत सिंह (Bhagat Singh) उन्‍हें इतना मानते थे कि पूरी जिंदगी उनकी तस्‍वीर अपने पास रखी. करतार सिंह को 16 नवंबर 1915 को लाहौर (Lahore) सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई।

bhagat singh को फांसी की सजा कब हुई थी?

वर्ष 1931 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च को ही फांसी दी गई थी।

bhagat singh का जन्म कब हुआ और मृत्यु कब हुई?

वो कई क्रन्तिकारी संगठनों के साथ मिले और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। भगत सिंह जी की मृत्यु 23 वर्ष की आयु में हुई जब उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।

bhagat singh की मृत्यु कब और कहां हुई थी?

तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई. इस मामले में सुखदेव को भी दोषी माना गया था. बता दें, केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी।

bhagat singh के बचपन का नाम क्या है?

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गांव (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम सरदारनी विद्यावती कौर था। उनके पिता और उनके दो चाचा अजीत सिंह व स्वर्ण सिंह भी अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई का एक हिस्सा थे।

भाखना सम्मेलन क्या था?

इसके खिलाफ कुछ भारतीयों ने लड़ाई भी लड़ी थी. इसी दौरान कई लोग एक दूसरे के संपर्क में आए और एकजुट होकर भारत से ब्रिटिश शासन को ही उखाड़ फेंकने का प्लान बनाने लगे. 1912 में ही अमेरिका के पोर्टलैंड में भारतीय लोगों का बहुत बड़ा सम्मेलन हुआ. इसमें सोहन सिंह भाखना, हरनाम सिंह जैसे लोगों ने भाग लिया था।

bhagat singh कैसे शहीद हुए?

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद सेंट्रल एसेंबली में बम फेंक दिया. बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं, जिसके नतीजतन उन्हें फांसी की सजा हुई थी. तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई थी।

23 मार्च 1931 को क्या हुआ था?

23 मार्च, 1931 को सेंट्रल जेल, लाहौर में भगतसिंह व राजगुरू के साथ इन्हें भी फांसी दे दी गई। सुखदेव का नाम भारत के अमर क्रांतिकारियों और शहीदों में गिना जाता है। आपने अल्पायु में ही देश के लिए जान कुर्बान कर दी। सुखदेव का पूरा नाम ‘सुखदेव थापर’ था।।

 

Also Read :- भगत सिंह की फ़ोटो के बारे में जाने

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