Kamika Ekadashi : जानें क्या है कामिका एकादशी की व्रत कथा और वाजपेय यज्ञ का महत्व - Rajasthan Result

Kamika Ekadashi : जानें क्या है कामिका एकादशी की व्रत कथा और वाजपेय यज्ञ का महत्व

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Kamika Ekadashi Vrat Katha: श्रावण माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को कामिका एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष यह एकादशी आज यानी गुरुवार के दिन पड़ी है। कामिका एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है और आज गुरुवार भी है जो कि विष्णु जी का ही दिन है। ऐसे में यह एकादशी और भी विशेष हो जाती है। इस दिन लोग व्रत कर विधि-विधान से पूजा करते हैं। साथ ही कामिका एकादशी की व्रत कथा भी करते हैं। तो चलिए जानते हैं कामिका एकादशी की व्रत कथा।

Kamika Ekadashi व्रत कथा:

 

एक कथा के अनुसार, पुराने समय में एक गांव में ठाकुर रहा करते थे। इनका स्वभाव बेहद क्रोधी था। एक बार ठाकुर का झगड़ा एक ब्राह्मण से हो गया। क्रोध में आकर ठाकुर ने ब्राह्मण का खून कर दिया। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और अपने अपराध की क्षमा याचना मांगनी चाहिए। इसके लिए ठाकुर ने ब्राह्मण की क्रिया करनी चाही। लेकिन पंडितों ने उस क्रिया में शामिल होने से साफ मना कर दिया।

पंडितों ने ब्रह्माण की हत्या का जिम्मेदार ठाकुर को माना और वो दोषी बन गया। साथ ही ब्राह्मणों ने भोजन करने से भी मना कर दिया। ठाकुर ने एक मुनि से पूछा कि उसका पाप कैसे दूर हो सकता है। मुनि ने ठाकुर से कामिका एकादशी व्रत करने को कहा। जैसा मुनि ने कहा था वैसा ही ठाकुर ने किया। रात को ठाकुर विष्णु जी मूर्ति के पास सो रहा था तब ही विष्णु जी ने उसकी नींद में दर्शन दिए और उसे क्षमा दान दिया।

Kamika Ekadashi वाजपेय यज्ञ का महत्व:

 

कुंतीपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा कि हे भगवान मुझे आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी और चातुर्मास्य माहात्म्य का भली-भांति ज्ञान है। आप मुझे श्रावण कृष्ण एकादशी के बारे में बताएं। तब श्री कृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर! ब्रह्माजी ने एक समय यह एकादशी की कथा देवर्षि नारद को सुनाई थी। वहीं मैं तुम्हें सुनाता हूं।” नारदजी ने एक बार ब्रह्माजी से पूछा था, “हे पितामह! मेरी इच्छा है कि मैं श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनूं। कृप्या कर मुझे बताएं इसकी क्या विधि है और महत्व क्या है।”

तब ब्रह्माजी ने कहा कि हे नारद तुमने लोकों के हित में बेहद सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। अगर कोई इस कथा को सुन ले तो उसे वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान की पूजा विधि-विधा के साथ की जाती है। उन्होंने कहा कि जो फल गंगा या काशी जैसी जगहों पर जाने से नहीं मिलता है वो भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है। यही नहीं, जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से भी नहीं मिलता है वो भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।

जो भक्त श्रावण मास में भगवान की आराधना करते हैं उनसे सिर्फ देवता ही नहीं बल्कि गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। जो मनुष्य पापों से डरते हैं उन्हें कामिका एकादशी का व्रत करना चाहिए। साथ ही विष्णु भगवान को श्रद्धापूर्वक याद करना चाहिए और उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। पाप से मुक्ति पाने के लिए यह एक उचित उइ का कोई उपाय नहीं है।

 

हे नारद! स्वयं भगवान ने कहा है कि कामिका व्रत करने से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता है। कामिका एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक जो मनुष्ट तुलसी दल विष्णु जी को अर्पित करते हैं उन्हें समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। तुलसी दल किसी भी रत्न, मोति, मणि, चार भार चांदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। विष्णु जी तुलसी दल से बेहद खुश हो जाते हैं। ब्रह्माजी ने नारद से कहा, ”

हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को हमेशा नमस्कार करता हूं। अगर मनुष्य तुलसी का पौधा अपने घर में सींचता है तो उसकी यातनाएं खत्म हो जाती हैं। तुलसी के दर्शन से ही पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही स्पर्श से मनु्ष्य पवित्र हो जाता है।”

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